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[ ] आचरण, पुत्र, शान, सौजन्य, सम्पत्ति एवं उपकार तथा नियुक्ति अयोग्य व्यक्ति, पानकी हुई वस्तु निःस्युहवा, लसू- कर्तव्य, सत्कार, धर्मे ( दान पुण्य प्रभृति) प्रकाशित न करना, दोष-शुद्धिका उपाय, धनार्जन संबन्धी कष्टको सार्थकता, नोच पुरुषोंका स्त्ररूप बन्ध चरित्र-युक्त व्यक्ति, पीड़ा जनक कार्य तथा पंचमहापातकी । ३४६-३४२ प्रयोजन दश नीचपुरुषका संसर्ग, स्वार्थीकी प्रकृति, गृहदास्त्रीके साथ अनुराग करने व वेश्या संपइसे हानि, दुराचारियोंकी चित्तवृत्ति, एक स्त्रीसे लाभ, पर स्त्री व वेश्या सेवनका स्याग, सुखके कारण, कोभ व याचनासे हानि, दारिद्र्य दोष, धनाढ्यकी प्रशंसा, जलकी पवित्रता, उत्सव, पर्व, तिमि, तीर्थयात्रा, तथा पारिवत्यका अलङ्कार, चातुर्य व लोक व्यवहार- पटुता, सज्जनवा व धीरताका स्वरूप, भाग्यशाली पुरुष, सभाकी जघन्यता, हृदयहीनके अनुरागकी निष्फलता, निम्य स्वामी, arth पे लेख सत्यता, विश्वास न करने जायक लेख, तत्काल अनिष्ट करने वाले पाप, निके स्नाथ लड़ाई करनेसे तथा बलवानका श्राश्रय पाकर उससे उदण्डता करने से हानि, प्रवाससे होने वाला कष्ट तथा उसकी निवृत्तिका उपाय ३५२-३५० ३५८-३६६
२८ - विवाद - समुद्देश
राजाका स्वरूप, उसकी निष्पक्ष समटिका प्रभाव, विधान परिषत्के अधिकारियों या सभासदों का स्वरूप एक्जीक्यूटिव कौन्सिल या पार्लियामेन्ट के अधिकारियोंकी अयोग्यता, न्यायाधीश श्री पक्षपात दृष्टिसे होने वाली हानि वाद विवाद में पराजित हुए व्यकिके लक्षण, अयोग्य सभासदों के काम, वाद विवाद में प्रमाण, और उन प्रमाणको असत्य साबित करने वाले कारण कलाप, वेश्या व जुमारी द्वारा कही हुई बात को भी प्रमाण मानने का अवसर विवादकी निष्फदा, धरोहर सम्बन्धी विवादका निर्णय, गवाहीको सार्थकता, शपथके योग्य अपराधी व उसका निर्णय होने पर दंड विधान, शपथके अयोग्य अपराधी व वनको शुद्धिका उपाय, मुद्दईके स्टाम्प वगैरह लेस और साक्षी के संदिग्ध होने पर फैसला देनेका तरीका, न्यायाधीशके बिना निर्णयकी निरर्थकता, प्राम व नगरसम्बन्धी मुकद्दमा, राजकीय निर्णय व उसकी अवहेलना करनेवाले को कड़ी सजा । ३१८-३६२ -निग्रह, सरलतासे हानि, धर्माध्यक्षका राजसभा कालीन कर्तव्य, कलह के बीज व प्राणांके साथ आर्थिक क्षतिका कारण, वाद विवाद में ब्राह्मण आदि के योग्य शपथ, क्षणिक चीजें, वेश्या स्थाग, परिग्रह से हानि, सद्दष्टान्स, मूर्खका आम एवं उसके प्रति विवेकीका कर्तव्य-प्रादि ३६२--३६६ २६--पाड्गुण्य-समुद्देश ३६७-३८६
शम व उद्योगका परिणाम, लक्षण, भाग्य- पुरुषार्थ, धर्म-परिणाम व धार्मिक राजाकी प्रशंसा, राज कर्तव्य (दासीन प्रभृति राजमंडल को देखरेख), सदासीन, मध्यस्थ, विजिगीषु कर्तव्य, शत्रुओं के भेद, शत्रुता और मित्रताका कारण, मंत्रशक्ति, प्रभु शक्ति और उत्साह शक्तिके प मंत्र शक्ति-माहात्म्य ष दृष्टान्तमाला एवं शक्ति श्रयसे व्याप्त विजिगीषुकी श्र ेष्ठता, इनसे रहितकी. जघन्यता आदि तथा षाड्गुण्य (संधि-विग्रह-मदि) का लक्षण - आदि २६७-३७५ शक्तिहीन व अस्थिर के आश्रयसे हानि, स्वाभिमानीका कर्तव्य प्रयोजनवश विजिगीषु कर्तव्य, राजकीय कार्य में विलम्बका निषेध, द्वैधीभाव, दोनों बलिष्ठ विजिगीषुओं के मध्यवर्ती शत्र, सोमाधिपति के