Book Title: Nitivakyamrut
Author(s): Somdevsuri, Sundarlal Shastri
Publisher: Gyansagar Vagarth Vimarsh Kendra Byavar

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Page 12
________________ [६] २१ कोश-समद्दश २६२-२६६ शशब्दार्थ, गुण, राजकतव्य, क्षीणकोश राजाका भविष्य, कोश-माहात्म्प 4 ससमें हीन राजाके दुष्कृत्य, विजयश्रीका स्वामी, निधनको बालाचना, कुलीन होते परभी सेवा अयोग्य पुरुष, पन-माहात्म्य, कुशीनवा, चड़ापनकी ज्ञान एवं खाली खानेको वृद्धि का उपाय २२ बल-समद्देश २४६-३०२ बल शब्दार्थ, प्रधान मैन्य, हाथी-माहात्म्य, उनको युद्धोपयोगी प्रधान शक्ति, प्रशिक्षित हाथियोंसे हानि, हाथियों के गुण, घोड़ोंकी सेना, उसका तथा उत्तम जातीय घोड़ोंका माहात्म्य, रथ, सैन्यका माहास्य, उत्साही सैन्य व उसके गुण, औत्सादिक सैन्य के प्रवि विजिगोषु कर्तव्य, प्रधान सैन्य-माहात्म्य, सेवकों को दिये हुए सन्मानका प्रभाव, सैन्य, विक्ति, उसकी देख देख न करनेका दुष्प्रभाव, दूसरों द्वार! न कराने योग्य कार्य, धन-वेतन न मिलने परमी सेवकोंका फस य, पण राजाके विषयमें दृष्टान्त, कटु आलोचता-योग्य स्वामी व विचारशून्य राजाकी ति २३ मित्र-समुद्दश ३०२-३०५ मित्र-लक्षण, भेद, गुण, दोष, मित्रता-विध्व'सक काय , निष्कपट मैत्रीका उज्वल दृष्टान्त, पसका आदर्श प्रत्युपकार की सोदाहरण दुर्लभता २४ राजरक्षा-समुदःश ३०५-३२३ राजकीय रक्षा परिणाम व उपाय, स्वामी-हीन प्रांत (अमात्य बानि) की हानि प्राय शून्य पुरुष द्वारा किये हुए प्रयत्नोंको निरफलता, राज-कतव्य ( आत्मरक्षा), स्त्रो-सुवार्थ लोक प्रति, जिसका धन संग्रह निष्फल है, स्त्रियों की प्रकृति, सुन्दर स्त्री की प्राप्तिका नाय, त्रियों की रक्षा इन्हें अनकूल रखने का उपाय, पतिकर्तव्य (विवाहित कुरूप स्त्रियोंके प्रति), त्रा-संवन का समय, ऋतुकालीन उपेक्षासे हानि, घोरक्षा, उनके प्रतिकृत्त होनेक कारण, उनकी प्रकृति, दुनीपन, स्त्री रक्षाका उहश्य, वेश्यासेबन का त्याग, राजाको स्त्री-गृह में प्रविष्ट होनका निषेध, उनके विश्यमें राजकस व्य, स्वच्छाचारिणी स्त्रियोंक अनथ, उनका इतिहास, स्त्री-माहात्म्य, उनकी सीमित स्वाधीनता, उनमें भनि प्रासक्ति प्रादिका कटु फल, पतिव्रता-माहात्म्य तथा मनुष्य-कत व्य । ३२५-३१३ वेश्या गमनके परिणाम, प्रकृति, कृतन कुम्बियोंके पोपण का फुफल, शारीरिक पौन्दर्य. कुम्धियोंका संरक्षण, स्वामीकी आज्ञा पालन, वैर विरोध करने वाले शनिशा जी पुत्रों व कुटुम्बियों का वशीकरण, वनता करने का दुष्परिणाम, अकुलीन माता-पिताका सन्तान पर कुप्रभाव एत्र' इत्तम पत्र-प्राप्तिका उपाय, निरोगी व दोध जीवी मन्ताम होने का कारगा, गज्य व दीक्षा के अयोग्य परुष, महीनोंको राज्याधिकारकी सीमा, विनयका प्रशव, पुत्रोंकी विनय व भिमामका अमछाबरा असर, पितासे द्रोह न करने वाले राजकुमार, नन्हें माता पिताकी भक्ति की शिक्षा, माता पिनाक अनावरसे हानि, उससे प्रात राज्यको निरर्थकता, पत्र-तनय पिन-मान दुपित राज्यलक्ष्मी, निरर्थक कार्य से हानि, राज्य योग्य उत्तराधिकारी तथा अपराधीकी पहिचान । ३१४-३२ २५ दिवसानुष्ठान समुन्द्रेश ३२३-३३५ नित्यक्रतव्य, यथेष्ट व अयोग्य कालोन निद्रा लाभ-हानि, बीय मान-मूत्रादिक वेग रोकनेसे

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