________________
[ ४ ] ११ पुरोहित समुन्देश
२१०-२२१ पुरोहित ( राज-गुरु ) का लक्षण या गुण, मंत्री-पुरोहितके प्रति राज-फत व्य, आपशियोंका स्वरूप व भेद, राजपुत्रको शिक्षा, गुरु-सेवाके साधन, विनय, और विद्याभ्यासका फल, शिष्यकर्तव्य, माता-पितासे प्रतिकूलयर्ती पुत्रकी कड़ी मालोचना, पुत्र कर्तव्य, गुरु, गुरुपत्ती, गुरुकुत्र और सहपाठीके प्रति शिष्यका वर्ताव, शिष्य-फर्तव्य, अतिथियोंस गुप्त रखने योग्य बात, परगृह में प्रविष्ट हुए पुरुषोंकी प्रवृत्ति, महापुरुषका लक्षण दूसरोंके कार्य साधनमें लोक-प्रकृति, राज कर्मचारीको प्रकृति, धनिक कपणोंके गुण-गानसे हानि राज-कर्मचारियोंमें पक्षपात-शून्य समष्टि, दरिद्रसे धन ग्रहण, असमर्थसे अपना प्रयोजन कहना, हठी, कर्तव्य-ज्ञान-शून्य व विचार-शून्यको नैतिक उपदेश देने और नीचफे उपकार करनेको निरर्थकता, मुर्खको समझानेमें परिश्रम करने, पीठ पीछे उपकार करने और बिना मौके की . घात कहनेको निष्फलता, चपकारको प्रकट करनेसे हानि, उपकार करने में असमर्थ पुरुषको प्रसन्न । करना, गुण दोषका निश्चय किये बिना अनुमह व निमत करना-मादिकी निष्फलता, झूठी बहादुरी मताने वालोंकी भौर कपणके धनकी कड़ी मालोचना एवं उदारकी प्रश'सा, ईर्ष्यालु गुरु, पिता, मित्र, तथा स्वामीकी कड़ी मालोचना
२१८-२२१ १२ सेनापत्ति-समुद्देश
२२२-२२३ ( सेनापतिक गुण-दोष-आदि) १३ दत-ममुद्देश
२२४-२३० दूतका लक्षण, गुण, भेद. दुत-कर्तव्य, निरर्थक विलम्बसे हामि, दूतास सुरता मष्टान्त, शत्र द्वारा भेजे हुए लेख और उपहार के विषयमें राजकर्तव्य सदृष्टान्त, दूतके प्रति राजाका पाक, दत-लक्षण एवं उसके वचनोको सुनना, शत्रका रहस्य जानने के लिये इतके प्रति राजाका कर्तन्य
एवं शत्र भूत राजाके पास भेजे हुए लेख के विषयमें विजिगीपका कर्तव्य १४ चार-समृद्देश
२३१-२३६ गुप्तचरोंका लक्षण, गुण, वेतन व फल, उनके वचनों पर विश्वास. गुप्तचर-रहितको हानि सदृष्टान्त, गुप्तचरों के भेद और लक्ष्य १५ विचार-समुदेश
२३६-२४१ विचार पूर्वक कर्तव्यमें प्रवृत्ति विचार व प्रत्यक्षका लक्षण, ज्ञान मात्रसे प्रवृति-निवृत्ति न करना, विचारशका लक्षण, विना घिनारे कार्य करनेसे हानि, राज्य, प्राप्तिके चिन्ह, अनुमानका लक्षण-फल, भवितव्यता प्रदर्शक चिन्ह, बुद्धिका असर, मागम व आप्तका स्वरूप, निरर्थक वाणी,
वचनोंकी महत्ता, कृपण के धनको कटु आलोचना और जन साधारण की प्रवृत्ति १६ व्यसन.समुद्देश
२४२-२४८ व्यसनका लक्षण, भेद, सहज व्यसनोंसे निवृत्तिका उपाय, शिष्ट पुरुषका लक्षण कृत्रिम व्यसनोंसे निवृत्ति, निजस्त्रीमें आसक्ति, मद्यपान, मृगया, दूत थौर शुन्य-मादि १८ प्रकार के व्यसनोका स्वरूप हानि ।