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( ११ ) के मिसाले से असंख्य जीवों की हिंसा के पाप के भागी होते हैं, सो यह बात विचारास्पद है, हठ को छोड़िए और पक्षपाद से मुख मोड़िए सन्मार्ग में अनुराग जोड़िये ।
हँढिया-हां साहिब ! युक्ति से तो निस्सन्देह सिद्ध हो गया परन्तु सूत्रपाठ के विना हम नहीं मान सक्ते ॥
मन्त्री-यदि जैनसूत्रों से मूर्तिपूजा सिद्ध होजाए तो आप मान जायेंगे ? द्वंदिया-हां साहिब ! अवश्य २॥
मन्त्री-लो तनक ध्यान दीजिए, आवश्यक सूत्र की नियुक्ति में लिखा है कि भरत चक्राी ने अष्टापद पर्वत पर जिनमन्दिर बनवाए, और चौबीस तीर्थङ्करों की मूर्तिएं विराजमान की।
द्वंदिया-श्रीमानजी, तनक धैर्य करें,हम लोग 'नियुक्ति' 'भाष्य"चूर्णी"टीका' इत्यादि नहीं मानते हम को तो सूत्र का मूलपाठ ही स्वीकार है ॥
मन्त्री-आप घबराते क्यों हो, लो सुन लीजिए, श्री भगवती सूत्र में साफ लिखा है कि नियुक्ति को मानना चाहिए जो नहीं मानता यह सूत्र के अर्थ का शत्रु है यदि इस बात में सन्देह हो तो श्रीभगवती सूत्र का पाठ मुनलो
पाठ यह हैनिज्जुतिमन्तव्या सुत्तत्थो खलु पढमो बीओनिज्जुति
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