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( १० )
अब ज़रा ध्यान से देखें कि जब तुच्छ स्त्री की मूर्ति को देखकर साक्षात् स्त्री का भान होता है तो क्या तीर्थङ्कर भगवान की मूर्ति को देखकर उनका स्मरण नहीं आएगा ? अवश्य ही स्मरण आएगा । और आप लोक अपने गुरुओं के चित्रों का सम्मान तो करते हैं, यदि उनके चित्रों का अपमान करें, तो उसको बहुत ही अयोग्य प्रतीत होता है, तो फिर क्या परमात्मा की ही मूर्ति से द्वेष है ? यदि आप यह कहेंगे कि हम अपने गुरुओं की मूर्ति का सन्मान नहीं करते हैं तो आपका यह कथन भी मिथ्या है क्योंकि यह बात तो हम उस समय मानें जब आपके गुरु की मूर्ति किसी ऐसे स्थान पर गिरी पड़ी हो जो कि अपवित्र स्थान हो, और आप न उठाएं। फिर तो हम भी मानें कि निस्सन्देह आप लोक सन्मान नहीं करते, आप लोक तो विरुद्ध इसके शशि में जड़ा कर अपने निवासस्थान में अपने शिर के ऊपर लटकाते हैं |
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यथा सती पार्वतीजी और उदयचन्दजी और सोहनलालादि अपने गुरुओं के चित्र क्यों बनवाते हो ? क्योंकि आपकी धार्मिक युक्ति से मूर्ति को सम्मान करना और शिर झुकाना विरुद्ध है। क्योंकि वह भी तो स्याही और पत्र के विना और कोई वस्तु नहीं हैं | जैसे आप तीर्थङ्कर महाराज की मूर्तिओं को जड़ कहते हैं, इसप्रकार वे भी तो जड़ हैं ? इसलिये आप के गुरुओं को भी योग्य नहीं कि वे खिचवाएं, क्योंकि बनाने में असंख्य जीवों का नाश होता है, आप लोग मूर्ति से कुछ लाभ ही नहीं समझते हैं तो फिर आपके गुरु हिंसा समझकर रात्रि को जलतक भी नहीं रखते, परन्तु चित्रकार
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