Book Title: Mahopadhyay Yashvijay ke Darshanik Chintan ka Vaishishtya
Author(s): Amrutrasashreeji
Publisher: Raj Rajendra Prakashan Trust
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________________ शुभ संदेश भारतीय संस्कृति में दर्शन विज्ञान एवं अध्यात्म की गुणवत्ता सदैव रही है। दर्शन वस्तुतः सत्य एवं वास्तविकता का समग्र रुप में बौद्धिक विवेचन है / विज्ञान वास्तविकता के विविध रुपों एवं पक्षों के परिक्षण एवं निरीक्षण के आधार पर की गयी गुणात्मक एवं विश्लेषणात्मक दृष्टि है। आध्यात्म की भूमिका अविचल अवस्थाओं से बनती है। जैन शासन अगाध ज्ञान राशि का गहनतम सागर है / जो इस विराट सागर में गोते लगाता है। वह सिद्धांतरूपी गुण रत्न को प्राप्त करते हैं / एवं स्वयं के जीवन को सम्यग्ज्ञानमय बनाकर अक्षय अनुपम सुख की अनुभूति के साथ आत्मानद को प्राप्त करते हैं / उस उत्कृष्ट सुख की अनुभूति चारित्रवान एवं श्रद्धावान आत्माओं को विशेष रुप से होती है। क्योंकि चारित्रवान आत्मा विषयों से विरक्त होकर ज्ञान की और आकर्षित होते हुए प्रत्येक पदार्थ के परमार्थ को ज्ञात कर जीवन पर्यन्त उसको हृदय में स्थिर करते हैं। यही वास्तविक परिस्थिति महोपाध्याय यशोविजय के व्यक्तित्व में उपलब्ध होती है। _ विशेष साः श्री अमृतरसाश्रीजी म.सा. की शोध ग्रन्थ की तैयारी 2-3 साल से चल रही थी / योगानुयोग 2013 का चातुर्मास उनकी शरीर की अस्वस्थता की वजह से अहमदाबाद में हुआ / हमारे श्री संघ के प्रबल पुण्योदय से साध्वीजी की पुस्तक की अंतिम तैयारी तथा डिग्री प्राप्ति से पूर्व की अंतिम मौखिक परीक्षा आदि का लाभ श्री थराद त्रिस्तुतिक जैन संघ अहमदाबाद को मिला / लाडनुं विश्व विद्यालय के प्रोफेसर श्री आनंदप्रकाशजी त्रिपाठी एवं जयपुर से डॉ. 'अरविंद सिंहजी विक्रम सिंहजी परीक्षण हेतु अहमदाबाद पधारे / एवं साध्वीजी की अंतिम मौखिक * परीक्षा लेकर उन्हें उत्तीर्ण घोषित कर Ph.D. की पदवी से सम्मानित किया / इस अनुठे अवसर पर अहमदाबाद सकल संघ के हर्ष का पार नहीं था / आपश्री ने सदैव दादा गुरुदेव, वर्तमानाचार्य एवं अपनी गुरुमैया के प्रति समर्पण भाव रखा हैं / इसी गुण की वजह से आपश्री ने छोटी वय में ही इतने कठिन परिश्रम का काम बडी . सरलता से पूर्ण कर Ph.D. की डिग्री प्राप्त की है। मेरे लिए तो और भी खुशी की बात है कि बचपन में पाठशाला में पढ़ाने का मौका 'मुझे मिला था / बीज से वे आज वटवृक्ष का रुप हुआ है / ज्ञान के क्षेत्र में, ये मेरे लिए गौरव की बात है। "यशोविजयजी के दार्शनिक चिन्तन का वैशिष्ट्य" इस विषय पर Ph.D. करना बहुत ही कठिन कार्य था / फिर भी कहते हैं कि जहाँ चाह होती है वहाँ राह अपने आप बन जाती है। यही सोचकर कठिन परिश्रम करके इस कार्य को साध्वीजी म.सा.ने बखुबी पूर्ण किया है। इस चातुर्मास दरम्यान आपका काम करने का या सेवा करने का जो अवसर प्राप्त हुआ वो सभी पल हमारे लिए सदैव अविस्मरणीय रहेंगे / आप इसी तरह स्वाध्याय में दिन दुगुनी रात चौगुनी प्रगति करें तथा जगत के सभी जीवों को प्रतिबोध कर उन्हें भव पार करें ऐसी परम 17 Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org