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महाबंधे ट्ठिदिबंधाहियारे
४. सव्वत्थोवा' संजदस्स जहएओ हिदिबंधो । बादरएइंदिय-पज्जत्तस्स जहएओ द्विदिबंधो असंखेज्जगुणो । सहुम- एइंदिय-पज्जत्तस्स जहरणओ हिदिबंध विसेसाहि । बादर- एइंदिय- अपज्ज० जहरण - द्विदिबं० विसे । मुहुमेईदिय - अपज्जत्तस्स जह० द्विदिबं० विसे० । तस्सेव अपज्ज० उक्क० द्विदिबं० विसे० । बादरएइंदि० अपज्ज० उक्क० डिदि ० विसे० । सुहुमएइंदि० पज्जत्त० उक० हिदिबं० विसे० । बादर एइंदि० पज्जत उक्क० हिदिबं० विसे० । बेइंदि० पज्जत्त० जह० द्विदिबं० संखेगु० । तस्सेव पज्ज० जह० हिदिबं० विसे० । तस्सेव अपज्ज० उक्क० द्विदिबं० विसे० । तस्सेव पज्ज० उक्क० द्विदिबं० विसे० । तेइंदि० पज्जत्त ० जह० द्विदिबं० विसे । तस्सेव अपज्ज० जह० हिदि ० विसे० । तस्सेव अपज्ज० उक्क० हिदि० विसे० । तस्सेव पज्जत्त ० उक्क० द्विदि० विसे० । चदुरिंदिय-पज्जत्त० जह० हिदि० विसे । तस्सेव अपज्जत ० जह० हिदि० विसे० । तस्सेव अपज्ज० उक्क० द्विदि० विसे० । तस्सेव पज्जत्त० उक्क० हिदि विसे० । पंचिदिय अस रिण पज्जत्त० जह० हिदि० संखे० गु० | तस्सेव अपज्ज० जह० द्विदि० विसे० । तस्सेव अपज्ज० उक्क० द्विदि० विसे० । तस्सेव पज्ज० उक्क०
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विशेषार्थ - ज्ञानावरण आदि कर्मोके बन्ध योग्य परिणामोंकी संक्लेशविशुद्धिस्थान संज्ञा है। इनमें से जो साताके बंध योग्य परिणाम होते हैं । अर्थात् जिन परिणामोंके होनेपर असाता प्रकृतिका बंध न होकर साता प्रकृतिका बंध होता है उनकी विशुद्धि संज्ञा है और साताके बंधके योग्य जो परिणाम होते हैं उनकी संक्लेश संज्ञा है । यहाँ स्थितिविकल्पोंको ध्यान में रखकर संक्लेशविशुद्धिस्थानोंका यह अल्पबहुत्व कहा गया है ।
४. संयतके जघन्य स्थितिबंध सबसे स्तोक है । इससे बादर एकेंद्रिय पर्याप्तके जघन्य स्थितिबंध श्रसंख्यातगुणा है। इससे सूक्ष्म एकेन्द्रिय पर्याप्तके जघन्य स्थितिबंध विशेष अधिक है । इससे बादर एकेंद्रिय अपर्याप्तके जघन्य स्थितिबंध विशेष अधिक है। इससे सूक्ष्म एकेंद्रिय
पर्यातके जघन्य स्थितिबंध विशेष अधिक है। इससे सूक्ष्म एकेंद्रिय अपर्याप्तके उत्कृष्ट स्थितिबंध विशेष अधिक है । इससे बादर एकेंद्रिय अपर्याप्तके उत्कृष्ट स्थितिबंध विशेष अधिक है । इससे सूक्ष्म एकेंद्रिय पर्याप्तके उत्कृष्ट स्थितिबंध विशेष अधिक है। इससे बादर एकेंद्रिय पर्याप्त उत्कृष्ट स्थितिबंध विशेष अधिक है। इससे द्वींद्रिय पर्याप्तके जघन्य स्थितिबंध संख्यातगुणा है । इससे द्वींद्रिय अपर्याप्तके जघन्य स्थितिबंध विशेष अधिक है। इससे द्वींद्रिय अपर्याप्त उत्कृष्ट स्थितिबंध विशेष अधिक है। इससे द्वींद्रिय पर्याप्तके उत्कृष्ट स्थितिबंध विशेष अधिक है । इससे श्रींद्रिय पर्याप्तके जघन्य स्थितिबंध विशेष अधिक है । इससे त्रींद्रिय अपर्याप्तके जघन्य स्थितिबंध विशेष अधिक है। इससे श्रींद्रिय अपर्याप्तके उत्कृष्ट स्थितिबंध विशेष अधिक है। इससे त्रींद्रिय पर्याप्तके उत्कृष्ट स्थितिबंध विशेष अधिक है। इससे चतुरिंद्रीय पर्याप्तके जघन्य स्थितिबंध विशेष अधिक है। इससे चतुरिंद्रिय अपर्याप्त के जघन्य स्थितिबंध विशेष अधिक है । इससे चतुरिंद्रिय अपर्याप्तके उत्कृष्ट स्थितिबंध विशेष अधिक है । इससे चतुरिंद्रिय पर्याप्तके उत्कृष्ट स्थितिबंध विशेष अधिक है। इससे पंचेंद्रिय अशी पर्याप्तके जघन्य स्थितिबंध संख्यातगुणा है। इससे पंचेंद्रिय असंशी पर्यात जघन्य स्थितिबंध विशेष अधिक है। इससे पंचेंद्रिय असंशी अपर्याप्तके उत्कृष्ट स्थितिबंध विशेष अधिक है। इससे पंचेंद्रिय अशी पर्याप्तके उत्कृष्ट स्थितिबंध विशेष 1. पंच, बंधन, गा० ९९-१०० ।
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