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महाबंधे द्विदिबंधाहियारे अथिरादिलक-णिमिण-णीचागो०-पंचतरा० उक्क० हिदि० सागरोवमसहस्सस्स तिरिण सत्तभागा सत्त सत्तभागा [चत्तारि सत्तभागा]|बे सत्तभागा। अंतोमु० आबा० । [आवाधू० कम्मदि० कम्म-] णिसे । सेसाणं सागरोवमसहस्सस्स तिगिण सत्तभागा बे सत्तभागा पलिदोवमस्स संखेजदिभागण ऊणिया। अंतोमु० आबा० । [आबाधू० कम्पट्टि कम्मणि.]। णिरय-देवायुगस्स उक्क० हिदि० पलिदोवमस्स असंखेजदिभागो। पुवकोडितिभागं च आबाधा । [कम्महिदी कम्मणिसेगो] तिरिक्ख-मणुसायुगाणं उक्त हिदि० पुव्वकोडी। पुच्चकोडितिभागं च आवाधा । [कम्महिदी कम्मणिसेगो] । आहार० मूलोघं । अणाहार० कम्मइगभंगो। एवं उक्कस्सियं समत्तं ।
४६. जहएणए पगदं । दुवि०-ओघे० आदे। ओघे० पंचणा०-चदुदंसणालोभसंज-पंचतरा० जहएणओ हिदिबंधो अंतोमुहुत्तं । अंतोमु० आबाधा। आबाधृणिया कम्महिदी कम्मणिसेगो । पंचदंसणा-असादावे. जहएण. हिदि० सागरोवमस्स तिषिण सत्तभागा पलिदोवमस्स असंखेजदिमागेण ऊणिया । अंतोमु० आबा० । आबाधू० । सादावेद० जह० हिदि० बारस मुहुत्तं । अंतोमु० आबा० । आबाधू०। और पॉच अन्तराय प्रकृतियोंका उत्कृष्ट स्थितिबन्ध एक सागरका तीन बटे सात भाग, सात बटे सात भाग, चार बटे सात भाग और दो बटे सात भाग प्रमाण है। अन्तर्मुहूर्तप्रमाण आबाधा है और आबाधासे न्यून कर्मस्थिति प्रमाण कर्मनिषेक है। तथा शेष प्रकृ. तियोंका उत्कृष्ट स्थितिबन्ध एक हजार सागरका पल्यका संख्यातवाँ भाग कम तीन बटे सात भाग, सात बटे सात भाग,चार बटे सात भाग और दो बटे सात भाग है । अन्तर्मुहूर्तप्रमाण आबाधा है और आवाधासे न्यून कर्मस्थितिप्रमाण कर्मनिषेक है । नरकायु
और देवायका उत्कष्ट स्थितिबन्ध पल्यका असंख्यातवाँ भाग प्रमाण है। पूर्वकोटिका विभाग प्रमाण आबाधा है और कर्मस्थितिप्रमाण कर्मनिषेक है। तथा तिर्यञ्चायु और मनुष्यायुका उत्कृष्ट स्थितिबन्ध एक पूर्वकोटिप्रमाण है । पूर्वकोटिका त्रिभाग प्रमाण आबाधा है और कर्मस्थितिप्रमाण कर्मनिषेक है। आहारक जीवोंके सब प्रकृतियोंका उत्कृष्ट स्थितिबन्ध मूलोधके समान है। तथा अनाहारक जीवोंके सब प्रकृतियोंका उत्कृष्ट स्थितिबन्ध कार्मणकाययोगियोंके समान है।
इस प्रकार उत्कृष्ट अद्धाच्छेद समाप्त हुआ। ४६. अब जघन्य स्थितिबन्ध श्रद्धाच्छेदका प्रकरण है। उसकी अपेक्षा निर्देश दो प्रकारका है-ओघ और आदेश । श्रोघसे पाँच ज्ञानावरण, चारः दर्शनावरण, लोभसंज्वलन और पाँच अन्तराय प्रकृतियोंका जघन्य स्थितिबन्ध अन्तर्मुहूर्त प्रमाण है। अन्तर्मुहूर्तप्रमाण आबाधा है और आबाधासे न्यून कर्मस्थिति प्रमाण कर्मनिषेक है । पाँच दर्शनावरण और असाता वेदनीयका जघन्य स्थितिबन्ध एक सागरका पल्यका असंख्यातवाँ भाग कम तीन बटे सात भाग प्रमाण है। अन्तर्मुहूर्त प्रमाण आबाधा है और पाबाधासे न्यून कर्मस्थिति प्रमाण कर्मनिषेक है । सातावेदनीयका जघन्य स्थितिबन्ध बारह मुहूर्त है । अन्तर्मुहूर्त प्रमाण आबाधा है और आबाधासे न्यून कर्मस्थिति प्रमाण कर्मनिषेक है।
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