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महाबंधे हिदिबंधाहियारे [आबाधृ० कम्महि० कम्मणि.] । कोधसंज० जह• हिदि. चत्तारि मासं । अंतो.
आबा० । [श्राबाधू० कम्महि० कम्मणि०] । माणसंजल• जह• हिदि. बे मासं । अंतो० आबा । [आबाधृ० कम्महि कम्मणि०] । मायासं० जह० द्विदि० मासं० । अंतो• आवा० । [आबाधू० कम्महि० कम्मणि.] । पुरिसवे. जह० हिदि० सोलसवस्साणि । अंतो० आबा० । [आबाधू० कम्मट्टि० कम्मणि.] । जसगि०-उच्चागो जह• हिदि० सोलसमुहुत्तं । अंतो० आबा०। [आवाधृ० कम्महि० कम्मणि.] । सेसाणं श्रोधिभंगो। सासणे तिरिक्ख-मणुसायु० णिरयोघं । देवायु० जह० हिदि० दसवस्ससहस्साणि । अंतो० आवा०। कम्महिदी कम्पणिसेगो] । सेसाणं संजदासंजदभंगो। एवं सम्मामि० । मिच्छादि० अन्भवसिद्धियभंगो । सएिण. मणुसभंगो। असणिण तिरिक्खोघं । आहार• मूलोघं । अणाहार० कम्मइगभंगो । एवं जहएणहिदि० समत्तं । एवं अद्धच्छेदो समत्तो ।
सव्वबंध-णोसव्वबंधपरूवणा ६४. यो सो सव्वबंधो पोसव्वबंधो णाम इमो दुविधो णिसो-ओघेण आदेसेण य । ओघेण पंचणाणावरणीयाणं किं सव्वबंधो कोसव्वबंधो ? सव्वबंधो क्रोध संज्वलनका जघन्य स्थितिबन्ध चार महीना है। अन्तर्मुहूर्तप्रमाण आबाधा है और पाबाधासे न्यून कर्मस्थितिप्रमाण कर्मनिषेक है। मान संज्वलनका जघन्य स्थितिबन्ध दो महीना है । अन्तर्मुहूर्त प्रमाण आबाधा है और पाबाधासे न्यून कर्मस्थितिप्रमाण कर्मनिषेक है। माया संज्वलनका जघन्य स्थितिबन्ध एक महीना है । अन्तर्मुहूर्तप्रमाण आवाधा है और श्राबाधासे न्यून कर्मस्थितिप्रमाण कर्मनिषक है। पुरुषवेदका जघन्य स्थितिबन्ध सोलह वर्ष है । अन्तर्मुहूर्तप्रमाण आबाधा है और अबाधासे न्यून कर्मस्थिति प्रमाण कर्मनिषेक है। यश-कीर्ति और उच्चगोत्रका जघन्य स्थितिबन्ध सोलह मुहूर्त है । अन्तर्मुहूर्तप्रमाण आवाधा है और आबाधासे न्यून कर्मस्थितिप्रमाण कर्मनिषेक है। तथा शेष प्रकृतियोंका भङ्ग अवधिशानियोंके समान है। सासादनसम्यग्दृष्टि जीवोंमें तिर्यश्चायु और मनुष्यायुका जघन्य स्थितिबन्ध आदि सामान्य नारकियोंके समान है। देवायुका जघन्य स्थितिबन्ध दश हजार वर्षप्रमाण है। अन्तर्मुहूर्त प्रमाण आबाधा है और कर्मस्थितिप्रमाण कर्मनिषेक है। तथा शेष प्रकृतियोंका भङ्ग संयतासयतके समान है। इसी प्रकार सम्यग्मिथ्यादृष्टि जीवोंके जानना चाहिए । मिथ्यादृष्टियोंके अपनी सब प्रकृतियोंका भङ्ग अभव्योंके समान है। संशी जीवोंमें अपनी सब प्रकृतियोंका भङ्ग मनुष्योंके समान है। असंशी जीवोंमें तिर्यञ्चोंके समान है। आहारक जीवोंमें मूलोघके समान है तथा अनाहारकोंमें कार्मण काययोगियोंके समान है।
इस प्रकार जघन्य स्थितिबन्ध अद्धाच्छेद समाप्त हुआ।
इस प्रकार श्रद्धाच्छेद समाप्त हुआ।
सर्वबन्ध-नोसर्वबन्धप्ररूपणा ६४. जो सर्वबन्ध और नोसर्वबन्ध है,उसका यह निर्देश दो प्रकारका है-मोष और आदेश । ओघसे पाँच ज्ञानावरणका क्या सर्वबन्ध होता है या नोसर्वबन्ध होता है ? सर्व
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