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महाबंधे ट्ठिदिबंधाहियारे तप्पाअोग्गसंकिलिहस्स उक्कस्सियाए हिदीए तप्पाओग्गसंकिलेसे वट्टमाणस्स ।
६६. णिरयायु० उक्क० हिदिबंधो कस्स ? अएणदरस्स मणुसस्स वा तिरिक्खजोणिणीयस्स वा सणिण मिच्छादिहिस्स सव्वाहि पज्जत्तीहि पज्जत्तगदस्स सागारजागार-सुदोवजुत्तस्स तप्पाओग्गसंकिलिहस्स उक्कस्सियाए आबाधाए उक्कस्सहिदि. वट्टमाणयस्स । तिरिक्ख-मणुसायु० उक्क हिदि० कस्स ? अएण. मणुसस्स वा पंचिंदियतिरिक्खजोणिणीयस्स वा सएिण० मिच्छादिहिस्स सागारजागार० तप्पाप्रोग्गविसुद्ध० उक्कस्सियाए आबाधाए उक्क० हिदिबं० वट्ट० । देवायु.' उक्क० द्विदिबं. कस्स ? अएणदरस्स पमत्तसंजदस्स सागार-जागारसुदोवजोगजुत्तस्स तप्पाप्रोग्गविसुद्धस्स उक्कस्सियाए आबाधाए उक्क० हिदिवं. बट्ट ।
७०. णिस्यग-बेबि०-वेबि अंगोनं०-णिरयगदिपाश्रोग्गा० उक्क० हिदि० कस्स ? अएण. मणुसस्स वा पंचिंदियतिरिक्खस्स वा सएिण० मिच्छादिहिस्स सागार-जागारसुदोवजोगजुत्तस्स सव्वसंकिलिहस्स उक्क० ट्ठिदि० वट्टमाणस्स अथवा ईसिमझिमपरिणामस्स वा । 'तिरिक्खगदि-अोरालिय-ओरालिय अंगोवं०-असंपत्तसेवट्टसंघ-तिरिक्खाणुपु०-उज्जोव० उक्क० हिदि कस्स० ? अएणदरस्स णिरयस्स णाममें अवस्थित है,ऐसा पूर्वोक्त चार गतिका संज्ञी जीव ही उक्त प्रकृतियोंके उत्कृष्ट स्थितिबन्धका स्वामी है।
६६. नरकायुके उत्कृष्ट स्थितिबन्धका स्वामी कौन है ? जो संशी है, मिथ्यादृष्टि है, सब पर्याप्तियोंसे पर्याप्त है, साकारजागृतश्रुतोपयोगसे उपयुक्त है, तत्प्रायोग्यसंक्लेश परिणामवाला है और उत्कृष्ट आवाधाके साथ उत्कृष्टस्थितिबन्ध कर रहा है,ऐसा अन्यतर मनुष्य या तिर्यञ्चयोनि जीव नरकायुके उत्कृष्ट स्थितिबन्धका स्वामी है। तिर्यञ्चायु और मनुष्यायुके उत्कृष्ट स्थितिबन्धका स्वामी कौन है ? जो संक्षी है, मिथ्यादृष्टि है, साकार जागृत है, तत्प्रायोग्यविशुद्ध परिणामवाला है और उत्कृष्ट आवाधाके साथ उत्कृष्ट स्थितिबन्ध कर रहा है,ऐसा अन्यतर मनुष्य या तिर्यश्चयोनि जीवतिर्यञ्चायु और मनुष्यायुके उत्कृष्ट स्थितिबन्धका स्वामी है । देवायुके उत्कृष्ट स्थितिबन्धका स्वामी कौन है ? जो साकार जागृत श्रुतोपयोगसे उपयुक्त है, तत्प्रायोग्यविशुद्ध परिणामवाला है और उत्कृष्ट पाबाधाके साथ उत्कृष्ट स्थितिबन्ध कर रहा है,ऐसा अन्यतर प्रमत्तसंयत जीव देवायुके उत्कृष्ट स्थितिबन्धका स्वामी है।
७०. नरकगति, वैक्रियिकशरीर, वैक्रियिक प्राङ्गोपाङ्ग और नरकगति प्रायोग्यानुपूर्वीके उत्कृष्ट स्थितिबन्धका स्वामी कौन है ? जो संज्ञी है, मिथ्यादृष्टि है, साकार जागृत श्रुतोपयोगसे उपयुक्त है, सबसे अधिक संक्लेश परिणामवाला है, उत्कृष्ट स्थितिबन्ध कर रहा है अथवा ईषत् मध्यम परिणामवाला है,ऐसा अन्यतर मनुष्य या पञ्चेन्द्रिय तिर्यञ्च उक्त चार प्रकृतियोंके उत्कृष्ट स्थितिबन्धका स्वामी है। तिर्यश्चगति, औदारिकशरीर, औदारिक प्राङ्गोपार, असम्प्राप्तास्पाटिकासंहनन, तिर्यञ्चगति प्रायोग्यानुपूर्वी और उद्योतके उत्कृष्ट स्थितिबन्धका स्वामी कौन है ? जो मिथ्यादृष्टि है, साकार जागृत है, उत्कृष्ट संक्लेश परिणामवाला
१. 'देवाउगं पमत्तो'-गो० क०,गा० १३६ । २. णरतिरिया.... 'वेगुम्वियछक्कवियलसुहमतियं ।'-गो. क०,गा० १३७ । ३. सुरणिरया ओरालियतिरियदुगुज्जोवसंपत्तं ।'-गो० क०,गा.१३७ ।
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