Book Title: Mahabandho Part 2
Author(s): Bhutbali, Fulchandra Jain Shastri
Publisher: Bharatiya Gyanpith

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Page 397
________________ ३४४ महाबंधे टिदिबंधाहियारे १८३. जहएणए पगर्द। दुवि०-ओघे० आदे। ओघे०-पंचणा०-चदुदंस०पंचंत० जह• हिदिबंधो केवचिरं कालादो होदि ? जहएणु० अंतो०, अजह चदुसंज०हिदि० केवचिरं०? तिभंग । सादि० जह० अंतो०, उक्क० अद्धपोग्गलपरियई। पंचदस-बारसकल-भय-दुगु. तेजा-क० वएण०४-अगु०-उप०-णिमि० जह• हिदि० केवचिरं० १ जह० एम०, उक्क० अंतो० । अज० जह• अंतो०, उक्क० असंखेज्जा लोगा। सादा०-[ आहारसरीर ] आहार०अंगो-जस० जह• हिदि० जहएणु० अंतो• अज० जह० एग०, उक्क० अंतो० । असादा०-इत्थि०-णवूस०-हस्स-रदिअरदि-सोग-णिरयग-चदुजादि-पंचसंठा०-पंचसंघ-णिरयाणु०-आदाउज्जो०-अप्पसत्थवि०-थावरादि०४-थिराथिर-सुभासुभ-दूभग-दुस्सर-अणादे०-अजस० जह 'अजह० जह० एग०, उक्क अंतो० । पुरिस० जह० जहएणु० अंतो० । अज. हिदि० जह० एग०, उक्क० वेछावहिसाग० सादि० । बातको ध्यानमें रखकर यहाँ प्रथम दण्डकमें कही गई प्रकृतियोंके अनुत्कृष्ट स्थितिबन्धका उत्कृष्ट काल अङ्गुलके असंख्यातवें भागप्रमाण कहा है । शेष कथन स्पष्ट ही है। इस प्रकार उत्कृष्ट काल समाप्त हुआ। जघन्य बन्धकाल १८३. जघन्य कालका प्रकरण है। निर्देश दो प्रकारका है-ओघ और आदेश । ओघकी अपेक्षा पाँच ज्ञानावरण, चार दर्शनावरण, चार संज्वलन और पाँच अन्तराय प्रकतियोंके जघन्य स्थितिबन्धका कितना काल है जघन्य और उत्कृष्ट काल अन्तर्मुहूर्त है। अजघन्य स्थितिबन्धका कितना काल है ? अजघन्य स्थितिबन्धके तीन भङ्ग है-अनादि अनन्त, अनादि सान्त और सादि सान्त । उनमेंसे सादि सान्त अजघन्य स्थितिबन्धका जघन्य काल अन्तर्मुहूर्त है और उत्कृष्ट काल कुछ कम अर्द्धपुद्गल परिवर्तनप्रमाण है। पाँच दर्शनावरण, बारह कषाय, भय, जुगुप्सा, तैजस शरीर, कार्मा शरीर, वर्णचतुष्क, अगुरुलघु, उपधात और निर्माण प्रकृतियोंके जघन्य स्थितिबन्धका कितना काल है ? जघन्य काल एक समय है और उत्कृष्ट काल अन्तर्मुहूर्त है। अजघन्य स्थितिबन्धका जघन्य काल अन्तर्मुहूर्त है और उत्कृष्ट काल असंख्यात लोकप्रमाण है। साता वेदनीय, आहारक शरीर, आहारक आङ्गोपाङ्ग और यशःकीर्ति प्रकृतियोंके जघन्य स्थितिबन्धका जघन्य और उत्कृष्ट काल अन्तमुहर्त है। अजघन्य स्थितिबन्धका जघन्य काल एक समय है और उत्कृष्ट काल अन्तर्महर्त है। असाता वेदनीय, स्त्रीवेद, नपंसकवेद, हास्य, रति, अरति, शोक, नरकगति, चार जाति, पाँच संस्थान, पाँच संहनन, नरकगत्यानु. पूर्वी, आतप, उद्योत, अप्रशस्त विहायोगति, स्थावर आदि चार, स्थिर, अस्थिर, शुभ, अशुम, दुर्भग, दुस्वर, अनादेय और अयशाकीर्ति प्रकृतियोंके जघन्य और अजधन्य स्थितिबन्धका जघन्य काल एक समय है और उत्कृष्ट काल अन्तर्मुहूर्त है। पुरुषवेदके जघन्य स्थितिबन्धका जघन्य और उत्कृष्ट काल अन्तर्मुहूर्त है। अजघन्य स्थितिबन्धका जघन्य काल एक समय है और उत्कृष्ट काल साधिक दो छयासठ सागर है। 1. मूलप्रतौ प्रज्जह० इति पाठः । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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