Book Title: Mahabandho Part 2
Author(s): Bhutbali, Fulchandra Jain Shastri
Publisher: Bharatiya Gyanpith

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Page 411
________________ ३५८ महाधे द्विविधाहियारे बजरस जह० अजह० जह० ए०, उक्क० अंतो० । संसारणं जह० अज० हिदि० जह० एग०, उक्क अंतो० । २००, वेजव्वियकां०-वेडव्नियभि० आहार० - आहारमि० उक्कस्तभंगो । कम्मइगका० पंचणा०-णवदंसणा ० - सादा सादा० - मिच्छ० - सोलसक० - एस० - हस्स-रदिअरदि-सोग- भय० - दुगुच्छ-तिरिक्ख० - एइंदिय० - तेजा०१०-कम्म०० - हुडसं०१०- वरण०४तिरिक्खाणु ० गु०४ - आदाउजो०-यावर - बादर- मुहुम ०-पज्जत्तापज्ज०-पत्तेग-साधारा -विरार-गुभासुभ- दुभग-अणादे० ० - जस० - अजस० - गिमिण-णीचा०- पंचत० जह० हिदि० ० एग०, उक्क० वे सम० । अज० जह० एग०, उक्क० तिरिण सम० । सेखलं जह० अजह जह० एग०, उक्क० तिरिण सम० । ] २०१. इत्थि० खवगपगदीगं जह० जहर तो । अज० जह० एग०, उक्क० पलिदोवमसदपुत्तं । पंचदंसणा०-मिच्छत्त-वारसक०-भय-दुगु' ०-तेजा०-०वराण०४-अगु०-उप०-णिमि० जह० हिदि० जह० एग०, उक्क० अंतो० । अज० जह० एग०, उक्क० पलिदोव मसदपुत्तं । सादा० - आहार० - आहार० अंगो०-जस० जह० अ० श्रघो । असादा० - इत्थि० एस० - हस्स-रदि-यरदि-सोग-दोगदि-चदु शेष प्रकृतियोंके जघन्य और अजघन्य स्थितिबन्धका जघन्य काल एक समय है और उत्कृष्ट काल अन्तर्मुहर्त है। २००, वैक्रियिक काययोगी, वैक्रियिकमिश्रकाययोगी, आहारक काययोगी और आहारक मिश्र काययोगी जीवोंमें अपनी-अपनी प्रकृतियोंके जघन्य और अजघन्य स्थितिबन्धका काल उत्कृटके समान है। कार्मणकाययोगी जीवों में पाँच ज्ञानावरण, नौ दर्शनावरण, सातावेदनीय, असाता वेदनीय, मिथ्यात्व, सोलह कषाय, नपुंसकवेद, हास्य, रति, अरति, शोक, भय, जुगुप्सा, तिर्यञ्चगति, एकेन्द्रिय जाति, तैजस शरीर, कार्मण शरीर, हुण्डसंस्थान, वर्णचतुष्क, तिर्यञ्चगत्यानुपूर्वी, अगुरुलघुचतुष्क, श्रातप, उद्योत, स्थावर, बादर, सूक्ष्म, पर्याप्त, अपर्याप्त, प्रत्येक शरीर, साधारण शरीर, स्थिर, अस्थिर, शुभ, अशुभ, दुर्भग, छानादेय, यशःकीर्ति, अयशःकीर्ति, निर्माण, नीचगोत्र और पाँच अन्तराय प्रकृतियोंके जघन्य स्थितिबन्धका जघन्य काल एक समय है और उत्कृष्ट काल दो समय है । अजघन्य स्थितिबन्धका जघन्य काल एक समय है और उत्कृष्ट काल तीन समय है । शेष प्रकृतियोंके जघन्य और जघन्य स्थितिबन्धका जघन्य काल एक समय है और उत्कृष्टकाल तीन समय है । २०१. स्त्रीवेद में क्षपक प्रकृतियोंके जघन्य स्थितिबन्धका जघन्य और उत्कृष्ट काल अन्तर्मुहूर्त है । जघन्य स्थितिबन्धका जघन्य काल एक समय है और उत्कृष्ट काल सौ पल्य पृथक्त्व है । पाँच दर्शनावरण, मिथ्यात्व, बारह कपाय, भय, जुगुप्सा, तैजस शरीर, कार्मण शरीर, वर्णचतुष्क, अगुरुलघु, उपघात और निर्माण प्रकृतियोंके जघन्य स्थितिबन्धका जघन्य काल एक समय है और उत्कृष्ट काल अन्तर्मुहूर्त है । अजघन्य स्थितिबन्धका जघन्य काल एक समय है और उत्कृष्ट काल सौ पल्य पृथक्त्व है । साता वेदनीय, श्राहारक शरीर, श्राहारक श्राङ्गोपाङ्ग और यशःकीर्ति प्रकृतियोंके जघन्य और श्रजघन्य स्थितिबन्धका काल के समान है । असातावेदनीय, स्त्रीवेद, नपुंसकवेद, हास्य, रति, अरति, शोक, दो गति, चार जाति, पाँच संस्थान, पाँच संहनन, दो श्रनुपूर्वी, आतप, उद्योत, अप्रशस्त विहायोगति, For Private & Personal Use Only Jain Education International www.jainelibrary.org

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