Book Title: Mahabandho Part 2
Author(s): Bhutbali, Fulchandra Jain Shastri
Publisher: Bharatiya Gyanpith

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Page 491
________________ ૮ महाबंधे द्विदिबंधाहियारे जह० २६८. असरणी पंचरणा० णवदंसणा०-सादासादा०-मिच्छ०-सोलसक० -रणवक० - पंचजादि- तिरिणसरीर - बस्संठा० - श्रोरालि ० श्रंगो ० - इस्संघ ० - वण्ण०४अगु०४ - आदाव - दोविहा० - तस - थावरादिदस युगल - णिमि० - पंचत० जह० तो०, उक्क० असंखेज्जा लोगा । अज० जह० एग०, उक्क० तो ० । चदु श्रयु०वेडव्वियछ ०- मणुसग ०- मणुसाणु० उच्चा० तिरिक्खोघं । तिरिक्खग ० - तिरिक्खाणु०उज्जो०- णीचा० जह० जह० अंतो०, उक्क० अतिकालं० । अज० जह० एग०, उक्क ० तो ० । उक० २६६. आहारगे खवगपगदीरणं जह० णत्थि अंतर । अज० जह० एग०, उक्क० अंतो० | थीणगिद्धि ० ३ - मिच्छत्त - श्रणंताणुबधि ०४ - इत्थि० जह० जह० अंतो०, सगहिदी० । अज० श्रघं । खिद्दा- पचला - असादा० - दणोक० - पंचिंदि०तेजा ० क० समचदु० - वरण ०४ - अगु०४ - पसत्थवि० -तस०४ - थिराथिर - सुभासुभ-सुभगसुसर दे० - [जस० ]णिमि० जह० जह० अंतो०, उक्क • अंगुलस्स असंखे० । अज० जह० एग०, उक्क • अंतो० । अट्ठक० जह० जह० अंतो०, उक्क० सगहिदी० | ज० श्रो । एस० पंचसंठा० - पंचसंघ० - अप्पसत्थ० -- दूर्भाग- दुस्सर - अरणादे० -णीचा० २९८. असंज्ञी जीवोंमें, पाँच ज्ञानावरण, नौ दर्शनावरण, सातावेदनीय, असातावेदनीय, मिथ्यात्व, सोलह कषाय, नौ नोकषाय, पाँच जाति, तीन शरीर, छह संहनन, श्रदारिक भाङ्गोपाङ्ग, वर्णचतुष्क, अगुरुलघुचतुष्क, आतप, दो विहायोगति, त्रस और स्थावर आदि दस युगल, निर्माण और पाँच अन्तराय प्रकृतियोंके जघन्य स्थितिबन्धका जघन्य अन्तर अन्तर्मुहूर्त है और उत्कृष्ट अन्तर असंख्यात लोकप्रमाण है । अजघन्य स्थितिबन्धका जघन्य अन्तर एक समय है और उत्कृष्ट अन्तर अन्तर्मुहूर्त है । चार श्रायु, वैक्रियिक छह, मनुष्यगति, मनुष्यगत्यानुपूर्वी, और उच्चगोत्र के जघन्य और प्रजघन्य स्थितिबन्धका अन्तरकाल सामान्य तिर्यञ्चके समान है । तिर्यञ्चगति, तिर्यञ्चगत्यानुपूर्वी, उद्योत और नीचगोत्रके जघन्य स्थितिबन्धका जघन्य अन्तर अन्तर्मुहूर्त है और उत्कृष्ट अन्तर अनन्तकाल है जो असंख्यात पुद्गल परिवर्तन प्रमाण है । अजघन्य स्थितिबन्धका जघन्य अन्तर एक समय है और उत्कृष्ट अन्तर अन्तर्मुहूर्त है । २९९. श्राहारक जीवोंमें क्षपक प्रकृतियोंके जघन्य स्थितिबन्धका अन्तरकाल नहीं है। अजघन्य स्थितिबन्धका जघन्य अन्तर एक समय है और उत्कृष्ट अन्तर अन्तर्मुहूर्त है । स्त्यानगृद्धि तीन, मिथ्यात्व अनन्तानुबन्धी चार और स्त्रीवेदके जघन्य स्थितिबन्धका जघन्य अन्तर अन्तर्मुहूर्त है और उत्कृष्ट अन्तर अपनी स्थितिप्रमाण है । जघन्य स्थितिबन्धका अन्तर ओके समान है। निद्रा, प्रचला, असातावेदनीय, छह नोकषाय, पञ्चेन्द्रिय जाति, तैजस शरीरं, कार्मण शरीर, समचतुरस्र संस्थान, वर्णचतुष्क, अगुरुलघुचतुष्क, प्रशस्त विहायोगति, त्रस चतुष्क, स्थिर, अस्थिर, शुभ, अशुभ, सुभग, सुखर, आदेय, अयशः कीर्ति और निर्माणके जघन्य स्थितिबन्धका जघन्य अन्तर अन्तर्मुहूर्त है और उत्कृष्ट अन्तर अङ्गुलके असंख्यातवें भाग प्रमाण है । अजघन्य स्थितिबन्धका जघन्य अन्तर एक समय है और उत्कृष्ट अन्तर अन्तर्मुहूर्त है । श्राठ कषायके जघन्य स्थितिबन्धका जघन्य अन्तर अन्तर्मुहूर्त है और उत्कृष्ट अन्तर अपनी स्थितिप्रमाण है । जघन्य स्थितिबन्धका अन्तरकाल के समान है । नपुंसकवेद, पाँच संस्थान, पाँच संहनन, अप्रशस्त विहायोगति, दुभंग, Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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