Book Title: Mahabandho Part 2
Author(s): Bhutbali, Fulchandra Jain Shastri
Publisher: Bharatiya Gyanpith

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Page 425
________________ ३७२ महाबंधे द्विदिबंधाहियारे 1 1 उक्क० द्विदि० जह० तो०, उक्क० पुव्वकोडिपुधत्तं । अणु० जह० एस० उक्क० अंतो० । सेसाणं सव्वपगदीगं उक्क० जह० अंतो०, उक्क० पुव्वकोटिपुधत्तं । ऋ० द्विदि० पगदिअंतरं । वरि तिरिणयु० तिरिक्खोघं । तिरिक्खायु० उक्क० जह० पुव्वकोडी समयूर्ण, उक्क० पुव्वकोडि धत्तं । पंचिदियतिरिक्ख ज० सव्वपगदी उक्क० जह० [उक्क० ] अंतो० । अणु० जह० एग०, उक्क० तो० । वरि तिरिक्खायु० उक्क० अणु० जह० अंतो० । मणुसायु० उक्क० त्थि अंतरं । अणुक्क जहराणु० तो ० । २२४. मणुस ० ३ पंचिंदियतिरिक्खभंगो । वरि पच्चक्खाणा ०४ अपच्च क्खायावरणभंगो | मणुसायु० उक्क० जह० पुव्वकोडी समयू ०, उक्क ० पुव्वकोडिyधत्तं । अणु० जह० अंतो, उक्क० पुव्वकोडी सादि० | आहार ०२ उक्क० अणु ० तो०, उक्क० पुव्वकोडिषुधत्तं । तित्थय० उक्क० णत्थि अंतरं । अणु० जहण्णु० तो० । मणुस अपज्ज० तिरिक्ख पज्जत्तभंगो । वरि तिरिक्खायु० उक्क० णत्थि जह० अन्तरपूर्वकोटि पृथक्त्वप्रमाण है । अनुत्कृष्ट स्थितिबन्धका जघन्य अन्तर एक समय है और उत्कृष्ट अन्तर अन्तर्मुहूर्त है। शेष सब प्रकृतियोंके उत्कृष्ट स्थितिबन्धका जघन्य अन्तर अन्तमुहूर्त है और उत्कृष्ट अन्तर पूर्वकोटिपृथक्त्वप्रमाण है । अनुत्कृष्ट स्थितिबन्धका अन्तर प्रकृतिबन्धके अन्तरके समान है। इतनी विशेषता है कि तीन आयुओंका अन्तर सामान्य तिर्यञ्चोके समान है । तिर्यञ्च श्रयुके उत्कृष्ट स्थितिबन्धका जघन्य अन्तर एक समय कम एक पूर्वकोटि है और उत्कृष्ट अन्तर पूर्वकोटि पृथक्त्व प्रमाण है । पञ्चेन्द्रिय तिर्यञ्च श्रपर्यातक सब प्रकृतियोंके उत्कृष्ट स्थितिबन्धका जघन्य और उत्कृष्ट अन्तर अन्तर्मुहूर्त है । अनुत्कृष्ट स्थितिबन्धका जघन्य अन्तर एक समय है और उत्कृष्ट अन्तर अन्तर्मुहूर्त है । इतनी विशेता है कि तिर्यञ्चाके उत्कृष्ट और अनुत्कुष्ट स्थितिबन्धका जघन्य और उत्कृष्ट अन्तर अन्तमुहूर्त है। मनुष्यायुके उत्कृष्ट स्थितिबन्धका अन्तर काल नहीं है । अनुत्कृष्ट स्थितिबन्धका जघन्य और उत्कृष्ट अन्तर अन्तर्मुहूर्त है । विशेषार्थ - पञ्चेन्द्रिय तिर्यश्चत्रिककी उत्कृष्ट कार्यस्थिति पूर्वकोटि पृथक्त्व अधिक तीन पल्य है । तथापि उत्कृष्ट स्थितिबन्ध कर्मभूमिमें ही उपलब्ध होता है, इसलिए यहाँ प्रथम दण्डकमें कही गई प्रकृतियोंके उत्कृष्ट स्थितिबन्धका उत्कृष्ट अन्तर काल पूर्व कोटि पृथक्त्व कहा है । यहाँ पूर्वकोटिपृथक्त्वके प्रारम्भ और अन्तमें उत्कृष्ट स्थितिबन्ध कराकर अन्तरकाल ले श्रावे । चार आयुओंके सिवा शेष प्रकृतियोंके उत्कृष्ट स्थितिबन्धका उत्कृष्ट अन्तरकाल भी इसी प्रकार ले आवे। शेष कथन स्पष्ट ही है । २२४. मनुष्य चतुष्क में पञ्चेन्द्रिय तिर्यञ्चके समान भङ्ग है । इतनी विशेषता है कि प्रत्याख्यानावरणचारका भङ्ग श्रप्रत्याख्यानावरण चार के समान है। मनुष्यायुके उत्कृष्ट स्थितिबन्धका जघन्य अन्तर एक समय कम एक पूर्वकोटि है और उत्कृष्ट अन्तर पूर्वकोटिपृथक्त्व प्रमाण है । अनुत्कृष्ट स्थितिबन्धका जघन्य अन्तर अन्तर्मुहूर्त है और उत्कृष्ट अन्तर साधिक एक पूर्वकोटि है । आहारकद्विकके उत्कृष्ट और अनुत्कृष्ट स्थितिबन्धका जघन्य अन्तर अन्तमुहूर्त है और उत्कृष्ट अन्तर पूर्वकोटि पृथक्त्व प्रमाण है। तीर्थङ्कर प्रकृतिके उत्कृष्ट स्थितिबन्धका अन्तर काल नहीं है । अनुत्कृष्ट स्थितिबन्धका जघन्य और उत्कृष्ट अन्तर अन्तर्मुहूर्त है । मनुष्य पर्याप्तकों में तिर्यञ्च अपर्याप्तकोंके समान भङ्ग है, इतनी विशेषता है कि तिर्य Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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