Book Title: Mahabandho Part 2
Author(s): Bhutbali, Fulchandra Jain Shastri
Publisher: Bharatiya Gyanpith

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Page 430
________________ ३७७ उक्कस्सदिदिबंधअंतरकालपरूवणा स्साणि । अणु० जह० एग०, उक्क० अंतो० । अपज्जत्त० पंचिंदियतिरिक्वअपज्जत्तभंगो। २३१. पंचिंदिय०२ णाणादि० ओघ । पढमदंडो ओघं । णवरि उक्क० जह० अंतो०, उक्क० सागरोवमसहस्सं पुवकोडिपुत्तेण० । पज्जत्ते सागरोवमसदपुधः । थीणगिद्धि०३-मिच्छ०-अणंताणुबंधि०४-इत्थि० उक्क० हिदि० पंचणाणा०भंगो। अणु० ओघं । अहकसा० [उक्क०] णाणावरणभंगो । अणु० ओघं। णिरय-देवायु० उक्क हिदि० जह० दसवस्ससहस्साणि पुचकोडी समयू । उक्क० णाणावभंगो। अणु० जह• अंतो०, उक्क० सागरोवमसदपुधत्तं । तिरिक्खायु० उक्क० जह• पुन्वकोडी समयू०, उक्क० णाणावरणभंगो । अणु० जह• अंतो०, उक्क सागरोवमसदपुधत्तं । मणुसायु० उक्क तिरिक्वायुभंगो। अणु० जह• अंतो०, उक्क कायहिदी। णिरयगदि-एई०-बेई०-तेई०-चदुरिं-णिरयाणुपु०-आदाव-थावरादि०४ संख्यात हजार वर्ष है। अनुत्कृष्ट स्थितिबन्धका जघन्य अन्तर एक समय है और उत्कृष्ट अन्तर अन्तर्मुहूर्त है। इनके अपर्याप्तकोंमें अपनी सब प्रकृतियोंका भङ्ग पञ्चेन्द्रिय तिर्यश्च अपर्याप्तकोंके समान है। विशेषार्थ-द्वीन्द्रिय, त्रीन्द्रिय और चतुरिन्द्रिय जीवोंकी भवस्थिति और कायस्थितिको भ्यानमें रखकर अन्तरकालका विचार कर लेना चाहिए। जो द्वीन्द्रिय मरकर द्वीन्द्रिय होता है, त्रीन्द्रिय मरकर त्रीन्द्रिय होता है और चतुरिन्द्रिय मरकर चतुरिन्द्रिय होता है उसीके तिर्यश्चायुके उत्कृष्ट स्थितिबन्धका उत्कृष्ट अन्तर क्रमसे एक समय कम बारह वर्ष, एक समय कम उनचास दिन रात और एक समय कम छह महीना उपलब्ध होता है। इसी प्रकार अन्यत्र भी जहाँ एक मार्गणामें अपनी आयुके उत्कृष्ट स्थितिबन्धका जघन्य अन्तर एक समय कम अपनी उत्कृष्ट श्रायुप्रमाण कहा है वहाँ इसी प्रकार स्पष्टीकरण कर लेना चाहिए । २३१. पञ्चेन्द्रियद्विकमें शानावरणादिकका भङ्ग ओघके समान है। प्रथम दण्डक बोधके समान है । इतनी विशेषता है कि उत्कृष्ट स्थितिबन्धका जघन्य अन्तर अन्तर्मुहूर्त है और उत्कृष्ट अन्तर पञ्चेन्द्रियोंमें पूर्वकोटि पृथक्त्व अधिक एक हजार सागर है और पञ्चेन्द्रिय पर्याप्तकोंमें सौ सागर पृथक्त्व है । स्त्यानगृद्धि तीन, मिथ्यात्व, अनन्तानुबन्धी चार और स्त्रीवेदके उत्कृष्ट स्थितिबन्धका भा पाँच ज्ञानावरणके समान है। अनुत्कृष्ट स्थितिबन्धकाभङ्ग शोधके समान है। आठ कषायोके उत्कृष्ट स्थितिबन्धका भङ्ग ज्ञानावरणके समान है। अनुत्कृष्ट स्थितिबन्धका भङ्ग ओघके समान है। नरकायु और देवायुके उत्कृष्ट स्थितिबन्धका जघन्य अन्तर दस हजार वर्ष और एक समय कम एक पूर्वकोटि है। उत्कृष्ट अन्तर शानावरणके समान है। अनुत्कृष्ट स्थितिबन्धका जघन्य अन्तर अन्तर्मुहूर्त है और उत्कृष्ट अन्तर सौ सागर पृथक्त्व है। तिर्यञ्चायुके उत्कृष्ट स्थितिबन्धका जघन्य अन्तर एक समय कम एक पूर्वकोटि है और उत्कृष्ट अन्तर शानावरणके समान है। अनुत्कृष्ट स्थितिबन्धको जघन्य अन्तर अन्तर्मुहूर्त है और उत्कृष्ट अन्तर सौ सागर पृथक्त्व है। मनुष्यायुके उत्कृष्ट स्थितिबन्धका भङ्ग तिर्यश्चायु के समान है। अनुत्कृष्ट स्थितिबन्धका जघन्य अन्तर अन्तर्मुहूर्त है और उत्कृष्ट अन्तर कायस्थितिप्रमाण है । नरकगति, एकेन्द्रियजाति, द्वीन्द्रियजाति, त्रीन्द्रियजाति, चतुरिन्द्रियजाति, नरकगत्यानुपूर्वी, आतप, स्थावर आदि चारके उत्कृष्ट स्थितिबन्धका भङ्ग शानावरणके Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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