Book Title: Mahabandho Part 2
Author(s): Bhutbali, Fulchandra Jain Shastri
Publisher: Bharatiya Gyanpith

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Page 437
________________ ३८४ महाबंधे ट्ठिदिबंधाहियारे पणवरणं पलिदोव० देसू । तिरिक्ख-मणुसायु० उक्क० जह० पुन्चकोडि समयू०, उक्क० पाणावरणीयभंगो । अणु० जह• अंतो०, उक्क. पलिदो० सदपुधत्तं । णिरयायु० उक्क पत्थि अंतरं । अणु हिदि. जह० अंतो, उक्क० पुव्वकोडितिभागं देसू० । देवायु० उक्क० जह• दसवस्ससहस्साणि पुव्वकोडी समयू०, उक्क. कायहिदी० । अणु० जह० अंतो०, उक्क० अहावरणं पलिदोवमाणि पुन्चकोडिपुधत्तेणब्भहियाणि । वेउव्वियछक्क-बीई०-तीइं०--चदुरिं०-मुहुम-अपज्ज०--साधार उक्क० हिदि० जह० अंतो०, उक्क० णाणावभंगो । अणु० हिदि. जह• एग०, उक्क० पणवएणं पलिदो० सादि० । मणुस०-ओरालि०-ओरालि अंगो-वज्जरिसभ०-मणुसाणु० उक्क० जह० अंतो०, उक्क० णाणाव भगो। अणु० जह एग०, उक्क तिरिण पलिदो० देसू० । आहार०२ उक० अणु० जह• अंतो०, उक्क० कायहिदी० । तित्थय० उक्क० अणु० पत्थि अंतरं । पल्य है। तिर्यश्चायु और मनुष्यायुके उत्कृष्ट स्थितिबन्धका जघन्य अन्तर एक समय कम एक पूर्वकोटि है और उत्कृष्ट अन्तर ज्ञानावरणके समान है। अनुत्कृष्ट स्थितिबन्धका जघन्य अन्तर अन्तर्मुहूर्त है और उत्कृष्ट अन्तर सौ पल्य पृथक्त्व प्रमाण है। नरकायुके उत्कृष्ट स्थितिबन्धका अन्तरकाल नहीं है। अनुत्कृष्ट स्थितिबन्धका जघन्य अन्तर अन्तर्महर्त है और उत्कृष्ट अन्तर कुछ कम एक पूर्वकोटिके त्रिभाग प्रमाण है। देवायुके उत्कृष्ट स्थितिबन्धका जघन्य अन्तर दस हजार वर्ष और एक समय कम एक पूर्वकोटि है और उत्कृष्ट अन्तर कायस्थितिप्रमाण है। अनुत्कृष्ट स्थितिबन्धका जघन्य अन्तर अन्तर्मुहूर्त है और उत्कृष्ट अन्तर पूर्वकोटि पृथक्त्व अधिक अट्ठावन पल्य है । वैक्रियिक छह, द्वीन्द्रिय जाति, त्रीन्द्रिय जाति, चतुरिन्द्रिय जाति, सूक्ष्म, अपर्याप्त और साधारण प्रकृतियोंके उत्कृष्ट स्थितिबन्धका जघन्य अन्तर अन्तर्मुहूर्त है और उत्कृष्ट अन्तर ज्ञानावरणके समान है। अनुत्कृष्ट स्थितिबन्धका जघन्य अन्तर एक समय है और उत्कृष्ट अन्तर साधिक पचपन पल्य है । मनुष्यगति, औदारिक शरीर, औदारिक आङ्गोपाङ्ग, वज्रर्षभनाराचसंहनन और मनुष्यगत्यानुपूर्वीके उत्कृष्ट स्थितिबन्धका जघन्य अन्तर अन्तर्मुहूर्त है और उत्कृष्ट अन्तर शानावरणके समान है। अनुत्कृष्ट स्थितिबन्धका जघन्य अन्तर एक समय है और उत्कृष्ट अन्तर कुछ कम तीन पल्य है। श्राहारकद्विकके उत्कृष्ट और अनुत्कृष्ट स्थितिबन्धका जघन्य अन्तर अन्तर्मुहूर्त है और उत्कृष्ट अन्तर कायस्थितिप्रमाण है। तीर्थकर प्रकृतिके उत्कृष्ट और अनुत्कृष्ट स्थितिबन्धका अन्तर काल नहीं है। विशेषार्थ-स्त्रीवेदकी उत्कृष्ट कायस्थिति सौ पल्य पृथक्त्व प्रमाण है। इसीसे यहां प्रथम दण्डकमें कही गई प्रकृतियोंके उत्कृष्ट स्थितिबन्धका उत्कृष्ट अन्तरकाल सौ पल्य पृथक्त्व प्रमाण कहा है। कायस्थितिके प्रारम्भमें और अन्तमें उत्कृष्ट स्थितिबन्ध कराकर यह अन्तर ले आना चाहिए । सम्यक्त्वके कालमें स्त्यानगृद्धि तीन आदि प्रकृतियोंका बन्ध नहीं होता, इसलिए इनके उत्कृष्ट स्थितिबन्धका उत्कृष्ट अन्तर काल कुछ कम पचवन पल्य कहा है। चारों प्राययोंके उत्कृष्ट और अनुत्कृष्ट स्थितिबन्धके अन्तर कालके विषयमें पहले अनेक बार निर्देश कर आये हैं । उसे ध्यानमें रखकर यहां अन्तरकाल जान लेना चाहिए । मात्र देवा युके अनुत्कृष्ट स्थितिबन्धका उत्कृष्ट अन्तर जो पूर्वकोटि पृथक्त्व अधिक अट्ठावन पल्य Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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