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महाबंधे हिदिबंधाहियारे याए आबाधाए उकस्सहिदि० वट्ट० । एवं तिरिक्ख-मणुसायणं । णवरि तप्पाओग्गविमुदस्स त्ति भाणिदव्वं । देवायुग० उक्क० हिदि० कस्स० ? अएणद० पमत्तसंजद० तप्पाअोग्गविसुद्धस्स उक्कस्सियाए आबाधाए उक्क हिदि० वट्ट ।
६४. णिरयगदि-पंचिंदियजादि-वेउन्वि०-वेउवि अंगो०---णिरयाणु०-अप्पसत्यविहा०-तस-दुस्सर० उक्क० द्विदि कस्स० ? अण्णद० मणुसस्स वा तिरिक्खस्स वा सएिणस्स सागार-जा० उक्क संकिलिक अथवा ईसिमझिमपरि० । तिरिक्खगदि-एइंदि०-ओरालि०-तिरिक्खाणु०-आदाउज्जो०-थावर० उक्क० हिदि० कस्स. ? अएणदरीए सोधम्मीसाणंताए देवीए मिच्छादि सागार-जा० उक्क० संकिलि० अथवा ईसिमझिमपरिणा० । देवगदिदुग-तिरिणजादि-सुहुम-अपज्जत्त-साधारण उक्क० हिदि० कस्स० ? अएणदरीए मणुसिणीए वा तिरिक्खिणीए वा सएपीए मिच्छादि० तप्पाओग्गसंकिलि० । आहार-आहार०अंगो० उक्क हिदि० कस्स०? अएण. अप्पमत्तसंजदस्स सागार-जा० उक्कस्ससंकिलि• पमत्ताभिमुहस्स। तित्थयर० उक्क० हिदि० कस्स० १ अण्णद० मणुसीए असंजदसम्मादिट्टीए सागार-जा० उक्कस्ससंकिलि । [एवं चेव पुरिसवेदे । एवरि सगविसेसो जाणिय भाणिदव्यो । विशेषता है कि तत्प्रायोग्य विशुद्ध परिणामवाला स्त्रीवेदी जीव इन दोनों आयुओंके उत्कृष्ट स्थितिबन्धका स्वामी है ऐसा यहाँ कहना चाहिए। देवायुके उत्कृष्ट स्थितिबन्धका स्वामी कौन है ? तत्प्रायोग्य विशुद्ध परिणामवाला और उत्कृष्ट पाबाधाके साथ उत्कृष्ट स्थितिबन्धमें विद्यमान अन्यतर प्रमत्तसंयत स्त्रीवेदी जीव देवायुके उत्कृष्ट स्थितिबन्धका स्वामी है।
६४. नरकगति, पञ्चेन्द्रिय जाति, वैक्रियिक शरीर, वैकियिक प्राङ्गोपाङ्ग, नरकगति प्रायोग्यानुपूर्वी, अप्रशस्त विहायोगति, प्रस और दुस्वर प्रकृतिके उत्कृष्ट स्थितिबन्धका स्वामी कौन है ? साकार जागृत उत्कृष्ट संक्लेश परिणामवाला अथवा अल्प मध्यम परिणामवाला अन्यतर मनुष्य और तिर्यश्च संशी स्त्रीवेदी जीव उक्त प्रकृतियोंके उत्कृष्ट स्थितिबन्धका स्वामी है। तिर्यञ्चगति, एकेन्द्रिय जाति, औदारिक शरीर, तिर्यश्चगत्यानुपूर्वी, आतप, उद्योत और स्थावर प्रकृतिके उत्कृष्ट स्थितिबन्धका स्वामी कौन है ? साकार जागृत उत्कृष्ट संक्लेश परिणामवाली अथवा अल्प,मध्यम परिणामवाली अन्यतर सौधर्म और ऐशान कल्पकी देवी उक्त प्रकृतियोंके उत्कृष्ट स्थितिबन्धका स्वामी है। देवगतिद्विक, तीन जाति, सूक्ष्म, अपर्याप्त और साधारण प्रकृतिके उत्कृष्ट स्थितिबन्धका स्वामी कौन है ? तत्प्रायोग्य संक्लेश परिणामवाली अन्यतर मनुष्यिनी और तिर्यचिनी संक्षी मिथ्यादृष्टि जीव उक्त प्रकृतियोंके उत्कृष्ट स्थितिबन्धका खामी है । आहारक शरीर और आहारक प्राङ्गोपाङ्गके उत्कृष्ट स्थितिबन्धकास्वामी कौन है ? साकार जागृत उत्कृष्ट संक्लेश परिणामवाला और प्रमत्त संयत गुणस्थानके अभिमुख हुश्रा अन्यतर अप्रमत्तसंयत स्त्रीवेदी जीव उक्त दोनों प्रकृतियोंके उत्कृष्ट स्थितिबन्धका स्वामी है। तीर्थकर प्रकृतिके उत्कृष्ट स्थितिबन्धका खामी कौन है ? साकार जागृत और उत्कृष्ट संक्लेश परिणामवाला अन्यतर मनुष्यनी असंयत सम्यग्दृष्टि जीव तीर्थङ्कर प्रकृतिके उत्कृष्ट स्थितिबन्धका स्वामी है। इसी प्रकार पुरुषवेदमें जानना चाहिए । इतनी विशेषता है कि अपनी विशेषता जानकर कथन करना चाहिए ।
विशेषार्थ-स्त्रीवेदमें ओघके समान १२० प्रकृतियोंका बन्ध होता है । मात्र नारकियों में
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