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उकस्स-सामित्तपावणा
२८३ अथिरादिछक्क-णिमिण-णीचागो०-पंचंत० उक्क० हिदि० कस्स० १ अएण. चदुगदियस्स सागार-जा० उक्का संकिलि० मिच्छत्ताभिमुहस्स । सादावे-पुरिस०-हस्सरदि-मणुसगदि-चदुसंठा-चदुसंघ०-मणुसाणु०-पसत्थवि०--थिरादिछक्क-उच्चागो० उक्क० हिदि० कस्स० १ अएण० चदुगदियस्स तप्पाओग्गसंकिलि । तिरिक्ख-मणुसायुग• उक्क० हिदि. कस्स० ? अण्ण. तिरिक्व० मणुसस्स. तप्पासोग्गविसुद्ध । देवायु० उक्क० ट्ठिदि० कस्स ? मणुसस्स तप्पाओग्गविसुद्ध० । देवगदि०४ उक्क० ट्रिदि० कस्स० १ अण्ण० मणुस० तिरिक्ख० सागार-जा. तप्पाप्रोग्गसंकिलि।
१११. सम्मामिच्छादि० पंचणा-छदंसणा-असादावे-बारसक-पुरिस०अरदि-सोग-भय-दुगु-पंचिंदि०-तेजा-क-समचदु०-वएण०४-अगुरु०-४-पसत्थवि०तस०४ अथिर-असुभ-सुभग-सुस्सर-आदेज०-अजस०-णिमि०-उच्चा०-पंचंत० उक्क० हिदि० कस्स० १ अण्ण० चदुगदियस्स सागार-जा० उक्कस्ससंकिलि० मिच्छात्ताभिमुहस्स । सादावे०-हस्स-रदि-थिर-सुभ-जसगि० उक्क० हिदि० कस्स ? अण्ण. चदुछह, निर्माण, नीच गोत्र और पांच अन्तराय प्रकृतियोंके उत्कृष्ट स्थितिबन्धका स्वामी कौन है ? अन्यतर चारगतिका जीव जो साकारजागृत है, उत्कृष्ट संक्लेश परिणामवाला है और मिथ्यात्वके अभिमुख है,वह उक्त प्रकृतियोंके उत्कृष्ट स्थितिबन्धका स्वामी है । सातावेदनीय, पुरुषवेद, हास्य, रति, मनुष्यगति, चार संस्थान, चार संहनन, मनुष्यानुपूर्वी, प्रशस्त विहायोगति, स्थिर आदिक छह और उच्चगोत्र प्रकृतियोंके उत्कृष्ट स्थितिबन्धका स्वामी कौन है ? अन्यतर चार गतिका जीव जो तत्प्रायोग्य संक्लेश परिणामवाला है,वह उक्त प्रकृतियोंके उत्कृष्ट स्थितिबन्धका स्वामी है । तिर्यञ्चायु और मनुष्यायुके उत्कृष्ट स्थितिबन्धका स्वामी कौन है ? अन्यतर तिर्यश्च और मनुष्य जो तत्प्रायोग्य विशुद्ध परिणामवाला है, वह उक्त दो आयुओंके उत्कृष्ट स्थितिबन्धका स्वामी है। देवायुके उत्कृष्टस्थितिबन्धकास्वामी कौन है ? अन्यतरमनुष्य जो तत्यायोग्य विशुद्ध परिणामवाला है,वह देवायुके उत्कृष्ट स्थितिबन्धका स्वामी है। देवगति चतुष्कके उत्कृष्ट स्थितिबन्धका स्वामी कौन है ? अन्यतर मनुष्य और तिर्यश्च जो साकार जागृत है और तत्प्रायोग्य संक्लेश परिणामवाला है,वह देवगति चतुष्कके उत्कृष्ट स्थितिबन्धका स्वामी है।
विशेषार्थ-सासादनगुणस्थानमें जिन १६ प्रकृतियोंकी मिथ्यात्वमें बन्धन्युच्छित्ति होती है, उनका तथा तीर्थकर और आहारकद्विकका कुल १९ प्रकृतियोंका बन्ध नहीं होता। शेष १०१ प्रकृतियोंका बन्ध होता है। इन प्रकृतियोंके उत्कृष्ट स्थितिबन्धके स्वामी सम्बन्धी विशेषता मूलमें कही ही है।
१११. सम्यग्मिथ्यादृष्टि जीवों में पांच शानावरण, छह दर्शनावरण, असाता वेदनीय, बारह कषाय, पुरुषवेद, अरति, शोक, भय, जुगुप्सा, पंचेन्द्रिय जाति, तैजस शरीर, कार्मण शरीर, समचतुरस्र संस्थान, वर्णचतुष्क, अगुरुलघु चतुष्क, प्रशस्त विहायोगति, असचतुष्क, अस्थिर, अशुभ, सुभग, सुस्वर, प्रादेय, अयशाकीर्ति, निर्माण, उच्चगोत्र और पांच अन्तराय इन प्रकृतियोंके उत्कृष्ट स्थितिबन्धका स्वामी कौन है ? अन्यतर चार गतिका जीव जो साकार जागृत है, उत्कृष्ट संक्लेश परिणामवाला है और मिथ्यात्वके अभिमुख है, वह उक्त प्रकृतियोंके उत्कृष्ट स्थितिबन्धका स्वामी है । सातावेदनीय, हास्य, रति, स्थिर, शुम और
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