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महाबंधे हिदिबंधाहियारे जह० हिदि० कस्स० १ अएण. देव० णेरइयस्स सागार-जा. सव्वविसुद्ध० सम्मत्ताभिमुह । एइंदि०-आदाव-थावर० मणजोगिभंगो ।
१३२. आभि०-सुद०-अोधि० खवगपगदीणं मूलोघं । णिदा-पचलाणं जह. हिदि० कस्स० ? अण्ण. अपुवकरणखवग० चरिमे जह० द्विदि० वट्टमा० । असादा०-अरदि-सोग-अथिर-असुभ-अजस० जह• हिदि० कस्स० १ अण्ण. पमत्तसंज. सागार-जा. तप्पाओग्गविसु । हस्स-रदि-भय-दुगु० जह• हिदि. कस्स० ? अएण. अपुव्व० खवग० चरिमे जह० हिदि० वट्ट । मणुसायु० जह. हिदि. कस्स. ? अण्ण० देव णेरइ. सागार-जा० तप्पाओग्गसंकिलि० । देवायु०
नुपूर्वी इन प्रकृतियोंके जघन्य स्थितिबन्धका स्वामी कौन है ? अन्यतर देव और नारकी जो साकार जागृत है, सर्वविशुद्ध है और सम्यक्त्वके अभिमुख है वह उक्त प्रकृतियोंके जघन्य स्थितिबन्धका स्वामी है । एकेन्द्रिय जाति, भातप और स्थावर प्रकृतियोंके जघन्य स्थितिबन्ध का स्वामी मनोयोगी जीवोंके समान है।
विशेषार्थ-मत्यज्ञान और श्रुताशान तिर्यञ्चोंके भी होता है और इन दोनों मार्गणाओंमें जघन्य स्थितिबन्ध तिर्यञ्चोंकी अपेक्षा ही सम्भव है, इसलिए इनमें सब प्रकृतियोंके जघन्य स्थितिबन्धका स्वामी तिर्यञ्चोंके समान कहा है। विभङ्ग ज्ञान चारों गतियों में सम्भव है पर इसके रहते हुए संयमके अभिमुख परिणाम मनुष्यगतिमें ही हो सकते हैं और ऐसे जीवके ही जघन्य स्थितिबन्ध होगा, इसलिए प्रथम दण्डकमें कही हुई प्रकृतियोंके जघन्य स्थितिबन्धका स्वामी संयमके अभिमुख विभङ्गज्ञानी मनुष्य कहा है। दूसरे और तीसरे दण्डकमें जो प्रकृतियाँ गिनाई हैं उनका जघन्य स्थितिबन्ध स्वस्थानमें ही सम्भव है, इसलिए उनके जघन्य स्थितिबन्धका स्वामी चारों गतिका विभङ्गज्ञानी जीव कहा है। सातवें नरकमें मिथ्यादृष्टिके तिर्यञ्चगति आदिका ही बन्ध होता है. इसलिए सम्यक्त्वके अभिमुख होने पर भी इसके इन प्रकृतियोंका बन्ध होता रहता है। जब कि अन्यत्र ऐसी अवस्थाके प्राप्त होने पर इन प्रकृतियोंका बन्ध नहीं हो सकता है। यदि विचार कर देखा जाय तो विभङ्गशानमें ऐसे जीवके हो उक्त प्रकृतियोंका जघन्य स्थितिबन्ध सम्भव है। यही कारण है कि तिर्यञ्चगति आदि चार प्रकृतियोंके जघन्य स्थितिबन्धका स्वामी सातवीं पृथिवीका विभङ्गज्ञानी जीव कहा है । शेष कथन स्पष्ट ही है।
१३२. आभिनिबोधिकमानी, श्रुतज्ञानी और अवधिशानी जीवों में क्षपक प्रकृतियोंके जघन्य स्थितिबन्धका स्वामी मूलोघके समान है । निद्रा और प्रचला प्रकृतियोंके जघन्य स्थितिबन्धका स्वामो कौन है ? अन्यतर अपूर्वकरण क्षपक जो अन्तिम जघन्य स्थितिबन्धमें अवस्थित है वह उक्त दोनों प्रकृतियोंके जघन्य स्थितिबन्धका स्वामी है । असाता वेदनीय, अरति, शोक, अस्थिर, अशुभ और अयशःकीर्ति प्रकृतियोंके जघन्य स्थितिबन्धका स्वामी कौन है? अन्यतर प्रमत्तसंयत जो साकार जाग्रत है और तत्प्रायोग्य विशद्ध परि है वह उक्त प्रकृतियोंके जघन्य स्थितिबन्धका स्वामी है। हास्य, रति, भय और जुगुप्सा प्रकृतियोंके जघन्य स्थितिबन्धका स्वामी कौन है ? अन्यतर अपूर्वकरण क्षएक जो अन्तिम जघन्य स्थितिबन्धमें अवस्थित है वह उक्त प्रकृतियोंके जघन्य स्थितिबन्धका स्वामी है । मनुष्यायुके जघन्य स्थितिबन्धका स्वामी कौन है ? अन्यतर देव और नारकी जो साकार जागृत है और तत्प्रायोग्य संक्लेश परिणामवाला है वह मनुष्यायुके जघन्य
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