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महाबंधे ट्ठिदिबंधाहियारे अपज्जत्तेसु एइंदियअपजत्तभंगो । सुहुमाणं सुहुमेइदियभंगो । णवरि अणु० जह० एग०, उक्क तिरिक्खगदितिगं सादभंगो। एवं तेउ० वाउ । णवरि तिरिक्खगदितिगं धुवं कादव्वं । वणप्फदि-णियोदेसु एइंदियभंगो । णवरि तिरिक्खगदितिय सादभंगो । बादरवणप्फदि० वादरपुढवि भंगो ।
१५४. तस०२ पंचिंदियभंगो । वरि कायहिदी कादवा। अपजत्ते पंचिंदियअपज्जत्तभंगो।
१५५. पंचमण-पंचवचि० सव्वपगदीणं उक्क० अणु० जह० एग०, उक्क अंतो।
१५६. कायजोगीसु पंचणा-णवदंस-मिच्छत्त-सोलसक०-भय-दुगु०-ओराबन्धका जघन्य काल एक समय है और उत्कृष्ट काल अन्तर्मुहूर्त है। इनके अपर्याप्त जीवोंमें सब प्रकृतियोंके उत्कृष्ट और अनुत्कृष्ट स्थितिबन्धका काल एकेन्द्रिय अपर्याप्तकोंके समान है। इनके सूक्ष्म जीवोंमें सब प्रकृतियोंके उत्कृष्ट और अनुत्कृष्ट स्थितिवन्धका काल सूक्ष्म एकेन्द्रियोंके समान है। इतनी विशेषता है कि इनमें अनुत्कृष्ट स्थितिबन्धका काल एकसमय है। तथा तिर्यश्चगतित्रिकके उत्कृष्ट स्थितिवन्धका काल साता प्रकृतिके समान है। इसी प्रकार अग्निकायिक और वायुकायिक जीवोंके जानना चाहिए । इतनी विशेषता है कि इनके तिर्यञ्चगतित्रिकका ध्रुवबन्ध होता है । वनस्पतिकायिक और निगोद जीवोंमें सब प्रकृतियोंके उत्कृष्ट
और अनुत्कृष्ट स्थितिबन्धका काल एकेन्द्रियोंके समान है। इतनी विशेषता है कि तिर्यश्चगतित्रिकका भङ्ग साता प्रकृतिके समान है । बादर वनस्पतिकायिक जीवोंमें सब प्रकृतियोंके उत्कृष्ट और अनुत्कृष्ट स्थितिबन्धका काल बादर पृथिवीकायिक जीवोंके समान है।
विशेषार्थ-एकेन्द्रियों में सब प्रकृतियोंके अनुत्कृष्ट स्थितिबन्धके उत्कृष्ट कालका खुलासा कर आये हैं,उसे ध्यानमें रखकर यहाँ कालका स्पष्टीकरण कर लेना चाहिए।
१५४. त्रसकायिक और त्रसकायिक पर्याप्त जीवोंमें सब प्रकृतियोंके उत्कृष्ट और अनुत्कृष्ट स्थितिबन्धका काल पञ्चेन्द्रियोंके समान है। इतनी विशेषता है कि यहाँ इनकी कायस्थिति कहनी चाहिए । इनके अपर्याप्त जीवों में सब प्रकृतियोंके उत्कृष्ट और अनुत्कृष्ट स्थितिबन्धका काल पञ्चेन्द्रिय अपर्याप्तकोंके समान है।
विशेषार्थ-पहले पञ्चेन्द्रिय और पञ्चेन्द्रिय पर्याप्त जीवोंमें सब प्रकृतियोंके उत्कृष्ट और अनुत्कृष्ट स्थितिबन्धका जघन्य और उत्कृष्ट काल कह आये हैं, उसी प्रकार यहाँ भी कहना चाहिए । मात्र यहाँ पाँच ज्ञानावरण आदि ४७ ध्रुववन्धवाली प्रकृतियोंके अनुत्कृष्ट स्थितिबन्धका उत्कृष्ट काल क्रमसे पूर्वकोटिपृथक्त्व अधिक दो हजार सागर और दो हजार सागर प्रमाण कहना चाहिए, क्योंकि इन जीवोंकी इतनी ही कायस्थिति है।
१५५. पाँचों मनोयोगी और पाँचों वचनयोगी जीवोंमें सब प्रकृतियोंके उत्कृष्ट और अनुत्कृष्ट स्थितिबन्धका जघन्य काल एक समय है और उत्कृष्ट काल अन्तमुहर्त है।
विशेषार्थ-इन योगोंका जघन्य काल एक समय और उत्कृष्ट काल अन्तर्मुहूर्त है। इसीसे इनमें सब प्रकृतियोंके उत्कृष्ट और अनुत्कृष्ट स्थितिबन्धका जघन्य काल एक समय और उत्कृष्ट काल अन्तर्मुहर्त कहा है।
१५६. काययोगो जीवों में पाँच ज्ञानावरण, नौ दर्शनावरण, मिथ्यात्व, सोलह कषाय,
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