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महाबंधे हिदिबंधाहियारे दिसंजुत्तानो उक्क० हिदि. कस्स० ? अण्ण० सोधम्मीसाणंतदेवस्स मिच्छादि. सागार-जा० उक्क०संकिलि० अथवा ईसिमज्झिमपरिणा। सादावे-इत्यि०. पुरिस०-हस्स--रदि--मणुसगदि--पंचिंदिय०-पंचसंठाण--ओरालि०अंगो०- छस्संघड०-. मणुस०-दोविहा०-तस-थिरादिलक्क-दोसर-उच्चागोदा० उक्क. हिदि० कस्स? अण्ण देवस्स मिच्छादिहि तप्पाओग्गसंकिलि । तिरिक्वायु उक्क. हिदि. कस्स० १ अएण. देवस्स मिच्छादिहि० तप्पाअोग्गविसुद्धस्स । मणुसायु० उक्क० हिदि० कस्स ? अएण. देव० मिच्छादि० सम्मादिहिस्स वा तप्पाअोग्गविसुद्धः । देवायु उक्क हिदि. कस्स० ? अण्ण. पमत्तसंजदस्स तप्पाओग्गविसुद्ध० । देवगदि०४ उक्क हिदि. कस्स० ? अण्ण तिरिक्ख० मणुस.' मिच्छादि. सागारजा० उक्क०संकिलि० । आहार-आहार०अंगोवंग० अोघे । तित्थक० उक्त हिदि० कस्स० ? अण्ण० देवस्स असंज. सागार-जा० उक्क संकिलि सात्थाणे वट्टमा० । पम्माए एवं चेव । गवरि याओ देवस्स ताओ सहस्सारभंगो।। लेकर अन्तराय तक तिर्यञ्चगतिसे संयुक्त प्रकृतियों के उत्कृष्ट स्थितिबन्धका स्वामी कौन है ? अन्यतरसौधर्म और ऐशान कल्पतकका देव जो मिथ्यादृष्टि है, साकार जागृत है, उत्कृष्ट संक्लेश परिणामवाला है अथवा अल्प,मध्यम परिणामवाला है,वह उक्त प्रकृतियोंके उत्कृष्ट स्थितिबन्धका स्वामी है। साता वेदनीय, स्त्रीवेद, पुरुषवेद, हास्य, रति, मनुष्यगति, पञ्चेन्द्रियजाति, पाँच संस्थान, औदारिक आङ्गोपाङ्ग, छह संहनन, मनुष्यानुपूर्वी, दो विहायोगति, त्रसकाय, स्थिर श्रादिक छह, दो स्वर और उच्चगोत्रके उत्कृष्ट स्थितिबन्धका स्वामी कौन है? अन्यतरदेव जो मिथ्यादृष्टि है और तत्प्रायोग्य संक्लेश परिणामवाला है,वह उक्त प्रकृतियोंके उत्कृष्ट स्थितिबन्धका स्वामी है । तिर्यश्च युके उत्कृष्ट स्थितिबन्धका स्वामी कौन है ? अन्यतर देव जो मिथ्यादृष्टि है और तत्प्रायोग्य विशुद्ध परिणामवाला है,वह तिर्यञ्चायुके उत्कृष्ट स्थितिबन्धका स्वामी है । मनुष्यायुके उत्कृष्ट स्थितिबन्धका स्वामी कौन है ? अन्यतर देव जो मिथ्यादृष्टि है अथवा सम्यग्दृष्टि है और तत्प्रायोग्य विशुद्ध परिणामवाला है,वह मनुष्यायुके उत्कृष्ट स्थितिबन्धका स्वामी है। देवायुके उत्कृष्ट स्थितिबन्धका स्वामी कौन है ? अन्यतर प्रमत्तसंयत जीव जो तत्प्रायोग्य विशुद्ध परिणामवाला है,वह देवायुके उत्कृष्ट स्थितिबन्धका स्वामी है। देवगति चतुष्कके उत्कृष्ट स्थितिबन्धका स्वामी कौन है ? अन्यतर मनुष्य अथवा तिर्यश्च जो मिथ्यादृष्टि है, साकार जागृत है और उकृष्ट संक्लेश परिणामवाला है,वह देवगति चतुष्कके उत्कृष्ट स्थितिबन्धका स्वामी है । आहारकशरीर और आहारक श्राङ्गोपाङ्गके उकृष्ट स्थितिबन्धका स्वामी श्रोधके समान है। तीर्थङ्कर प्रकृतिके उत्कृष्ट स्थितिबन्धका कौन है ? अन्यतर देव जो असंयत सम्यग्दृष्टि है, साकार जागृत है, उत्कृष्ट संक्लेश परिणामवाला है और स्वस्थानवर्ती है,वह तीर्थङ्कर प्रकृतिके उत्कृष्ट स्थितिबन्धका स्वामी है । पनलेश्यामें सब प्रकृतियोंके उत्कृष्ट स्थितिका स्वामी इसी प्रकार जानना चाहिए । इतनी विशेषता है कि जिन प्रकृतियों के उत्कृष्ट स्थितिबन्धका स्वामी देव है,उनका सहस्रार कल्पके समान भङ्ग जानना चाहिए।
विशेषार्थ-पीतलेश्यामें नरकायु, नरकगतिद्विक, द्वीन्द्रियजाति, श्रीन्द्रियजाति, चतुरिन्द्रियजाति, सूक्ष्म, अपर्याप्त और साधारण इन नौ प्रकृतियोंके सिवा शेष १११ प्रकृतियोंका बन्ध होता है । इस लेश्यामें जिन प्रकृतियोंके उत्कृष्ट स्थितिबन्धका स्वामी जो जीव है,उसका अलग-अलग निर्देश किया ही है । मात्र तिर्यञ्चगति संयुक्त कहकर जिन प्रकृतियोंकानामनिर्देश
1. मूलप्रतौ मणुस० तिरिक्ख० मिच्छादि० इति पाठः ।
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