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जहरण-श्रद्धाच्छेदपरूवणा
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सह० । अंतो० आबा । [ कम्म हिदी कम्मणि०] । तेउ० तिरिक्खम गुसायु • देवोघं । देवायु० जह० द्विदि० पलिदो० सादि० । अंतो० आबा० । [कम्म हिदी कम्मणिसेगो] । अथवा दसवस्ससहस्सारिण । अंतो० आबा० । [कम्म हिदी कम्म
गो] | सेसा अंतोकोडा कोडि० । अंतो० आबा० । [आबाधू० कम्पट्ठि० कम्मणि० ] | पम्पाए तं चैव । देवायु० जह० हिदि० वे सागरो० सादि० | अंतो० आबा० । [ कम्म ट्ठिदी कम्मणिसेगो] । तिरिक्ख मणुसायु० जह० द्विदि० दिवसधत्तं । तो आबा० । [कम्प हिदी कम्मणिसेगो ] । एइंदिय० आदाव० थावरं च रात्थि । सुक्काए खवगपगदीणं श्रघं । मणुसायु० जह० हिदि० मासपुधत्तं । अंतो० आबा । [कम्महिदी कम्मणिसेगो] । देवायु० जह० द्विदि० अट्ठारससागरो० सादिरे० | अंतो० आबा० । [कम्मडिदी कम्मणिसेगो ] | सेसं वगेवेज्जभंगो ।
६३. भवसिद्धिया० मूलोघं । अब्भवसिद्धिया० मदित्र०भंगो । सम्मादि०खड्ग • श्रधिभंगो | वेदगे आयु० अधिभंगो । सेसं विभंगभंगो । उवसमसम्मा० पंचरणा० चदुदंसणा ० - लोभसंज० पंचंतरा० जह० द्विदि० अंतो० । अंतो० आबा० । [आबाधू • कम्मणि० ] । सादावे० जह० द्विदि० चदुवीसं मुहुतं । अंतो० आबा० | स्थितिबन्ध दश हजार वर्ष प्रमाण हैं । अन्तर्मुहूर्त प्रमाण बाधा है और कर्मस्थिति प्रमाण कर्मनिषेक है । पीतलेश्यावाले जीवोंके तिर्यञ्चायु और मनुष्यायुका भङ्ग सामान्य देवोंके समान है । देवायुका जघन्य स्थितिबन्ध साधिक पल्य प्रमाण है । अन्तर्मुहूर्त प्रमाण आबाधा है और कर्मस्थितिप्रमाण कर्मनिषेक है । अथवा देवायुका जघन्य स्थितिबन्ध दश हजार वर्ष प्रमाण है । अन्तर्मुहूर्त प्रमाण आबाधा है और कर्मस्थितिप्रमाण कर्मनिषेक है । शेष प्रकृतियों का जघन्य स्थितिबन्ध अन्तः कोड़ा कोड़ी सागर प्रमाण है । अन्तर्मुहूर्तप्रमाण आबाधा है । और आबाधासे न्यून कर्मस्थितिप्रमाण कर्मनिषेक है। पद्म लेश्यावाले जीवोंमें इसी प्रकार जानना चाहिए । किन्तु देवायुका जघन्य स्थितिबन्ध साधिक दो सागर प्रमाण है । अन्तर्मुहूर्त प्रमाण
बाधा है और कर्मस्थितिप्रमाण कर्मनिषेक है । तिर्यञ्चायु और मनुष्यायुका जघन्य स्थितिबन्ध दिवस पृथक्त्वप्रमाण है । अन्तर्मुहूर्तप्रमाण आबाधा है और कर्मस्थितिप्रमाण कर्मनिषेक है । इनके एकेन्द्रिय, आतप और स्थावर प्रकृतिका बन्ध नहीं होता । शुक्ललेश्यावाले जीवोंमें क्षपक प्रकृतियोंका भङ्ग श्रोघके समान है । मनुष्यायुका जघन्य स्थितिबन्ध मासपृथक्त्वप्रमाण है । अन्तर्मुहूर्तप्रमाण श्रबाधा है और कर्मस्थितिप्रमाण कर्मनिषेक है । देवायुका जघन्य स्थितिबन्ध साधिक अठारह सागर प्रमाण है । अन्तर्मुहूर्तप्रमाण आबाधा है और कर्मस्थितिप्रमाण कर्मनिषेक है । तथा शेष प्रकृतियोंका भङ्ग नव प्रैवेयकके समान है।
६३. भव्य जीवोंमें सब प्रकृतियोंका भङ्ग मूलोघके समान है । अभव्य जीवोंमें अपनी प्रकृतियोंका भङ्ग मत्यनानियोंके समान है । सम्यग्दृष्टि और क्षायिक सम्यग्दृष्टि जीवोंमें अपनी-अपनी प्रकृतियोंका भङ्ग अवधिज्ञानियोंके समान है । वेदकसम्यग्दृष्टि जीवोंमें श्रायुकर्मका भङ्ग श्रवधिज्ञानियोंके समान है । तथा शेष प्रकृतियोंका भङ्ग विभङ्गज्ञानियोंके समान है । उपशमसम्यग्दृष्टि जीवोंमें पाँच ज्ञानावरण, चार दर्शनावरण, लोभ संज्वलन और पाँच अन्तरायका जघन्य स्थितिबन्ध अन्तर्मुहूर्त प्रमाण है । अन्तर्मुहूर्तप्रमाण आबाधा है और
बाधासे न्यून कर्मस्थितिप्रमाण कर्मनिषेक है । सातावेदनीयका जघन्य स्थितिबन्ध चौबीस मुहूर्त है । अन्तर्मुहूर्त प्रमाण आबाधा है और आबाधासे न्यून कर्मस्थितिप्रमाण कर्मनिषेक है ।
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