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जहण्ण-श्रद्धाच्छेदपरूवणा
आबा० । [ आबाधू० कम्पट्ठि० कम्मणि० ] मायाए पंचरणा० - चदुदंसण०पंचतरा० मासपुधत्तं | अंतोमु० आबा । [आबाधू० कम्महि० कम्मरिण ० ] सादावे ०जसगि०-उच्चागो० जह० हिदिबं० वासपुधत्तं । अंतोमु० आवा० । [आबाधू० कम्महि० कम्मणि० । ] दो संज० जह० द्विदि० पक्खो | अंतो० आबा० । [आबाधू ० कम्महि० कम्मणि० ] | सेसारणं सव्वपगदीरणं कोधादीणं तिरिएकसायाणं मूलोघं । लोभे सव्वपगदीणं मूलोघं ।
५६. मदि ० - सुद० तिरिक्खोघं । विभंगे सगपगदी ० विदियपुढविभंगो । वरि चदुश्रायु० श्रर्घ । वेडन्वियछक्कं एइंदि ० बेइंदि० - तीइंदि० चदुरिंदि ० - आदाव- थावर - सुहुम अपज्जत्त-साधारणाणं च जह० द्विदिबं० अंतोकोडाकोडी | अंतो० आबा० । [आबाधू ० कम्प०ि कम्मणि०] । आभिणि० - सुद० अधि० खवगपगदीगं मूलोघं । मणुसायु० जह० द्विदि० वासपुधत्तं । अं० आबा । [ कम्महि० कम्मणि० ] | देवायु० जह० द्विदि० पलिदोवमं सादिरे० । अंतो० आबा० । [कम्महिदी कम्मणि० ] | सेसाणं आहारसरीरभंगो । मणपज्जवे देवायु० जह० हिदिबं० पलिदोवमपुधत्तं । तो० वा० । [ कम्महिदी कम्मणिसेगो ] | सेसाणं श्रधिभंगो । एवं संजदा० ।
संज्वलनका जघन्य स्थितिबन्ध एक महीना है । अन्तर्मुहूर्तप्रमाण आबाधा है और आबाधासे न्यून कर्मस्थितिप्रमाण कर्मनिषेक है । माया कषायवाले जीवों में पाँच ज्ञानावरण, चार दर्शनावरण और पाँच अन्तरायका जघन्य स्थितिबन्ध मासपृथक्त्व प्रमाण है । अन्तर्मुहूर्तप्रमाण बाधा है और बाधासे न्यून कर्मस्थितिप्रमाण कर्मनिषेक है । साता वेदनीय, यशःकीर्ति और उच्चगोत्रका जघन्य स्थितिबन्ध वर्षपृथक्त्व प्रमाण है । श्रन्तर्मुहूर्त प्रमाण बाधा है और बाधासे न्यून कर्मस्थितिप्रमाण कर्मनिषेक है। दो संज्वलनोंका जघन्य स्थितिबन्ध एक पक्षप्रमाण है । अन्तर्मुहूर्तं प्रमाण श्राबाधा है और बाधासे न्यून कर्मस्थितिप्रमाण कर्मनिषेक है। तथा शेष सब प्रकृतियोंका और क्रोधादि तीन कषायोंका भङ्ग मूलोघके समान है । लोभ कषायवाले जीवोंमें अपनी सब प्रकृतियोंका भङ्ग मूलोघ के समान है ।
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५९. मत्यज्ञानी और श्रुताज्ञानी जीवों में अपनी-अपनी प्रकृतियोंका जघन्य स्थितिबन्ध श्रादि सामान्य तिर्यञ्चों के समान है । विभङ्गज्ञानी जीवोंमें अपनी प्रकृतियोंका भङ्ग दूसरी पृथिवीके समान है । इतनी विशेषता है कि चार आयुका भङ्ग ओघके समान है। वैक्रियिकषट्क, एकेन्द्रिय जाति, द्वीन्द्रिय जाति, त्रीन्द्रिय जाति, चतुरिन्द्रिय जाति, आतप, स्थावर, सूक्ष्म, पर्याप्त और साधारण प्रकृतियोंका जघन्य स्थितिबन्ध अन्तःकोड़ाकोड़ी सागर प्रमाण है । अन्तर्मुहूर्त प्रमाण बाधा है और बाधासे न्यून कर्मस्थिति प्रमाण कर्मनिषेक है । श्राभिनिबोधिकज्ञानी, श्रुतज्ञानी और अवधिज्ञानी जीवों में क्षपक प्रकृतियोंका भङ्ग मूलोधके समान है । मनुष्यायुका जघन्य स्थितिबन्ध वर्षपृथक्त्वप्रमाण है । अन्तर्मुहूर्तप्रमाण श्राबाधा है और कर्मस्थिति प्रमाण कर्मनिषेक है । देवायुका जघन्य स्थितिबन्ध साधिक पल्य प्रमाण है । अन्तर्मुहूर्त प्रमाण आबाधा है और कर्मस्थिति प्रमाण कर्मनिषेक है। शेष प्रकृतियोंका भङ्ग श्राहारकशरीरके समान है । मनःपर्ययज्ञानी जीवोंमें देवायुका जघन्य स्थितिबन्ध पल्य पृथक्त्वप्रमाण है । अन्तर्मुहूर्त प्रमाण आबाधा है और कर्मस्थिति प्रमाण कर्मनिषेक है । शेष प्रकृतियोंका भङ्ग श्रोघके समान है। इसी प्रकार संयत जीवोंके जानना चाहिए ।
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