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जहण्ण-परिमाणपरूवणा अणंता। आयु० उक्क. हिदिबं० केव० ? असंखेजा। अणु० हिदिवं. केव० ? अणंता । एवं सबवणप्फदि-णिगोदाणं ।।
१५२. आभि०-सुद०-अोधि० सत्तएणं क. उक्क० अणुक्क. हिदिवं. केव० ? असंखेज्जा । आयु० उक्क संखेजा। अणु० हिदि० असंखेजा। एवं संजदासंजद-अोधि-सम्मादि-वेदग-सासण-सम्मामिच्छा० । आणद याव अवराइदा त्ति मुक्कले०-खइग० सत्तएणं क० उक्क० अणुक्क असंखेज्जा। आयु० मणुसिभंगो।
१५३. जहएणए पगदं। दुविधो णिद्द सो—ोघेण श्रादेसेण य । तत्थ ओघेण सत्तएणं क० जह• हिदिबंध केत्तिया ? संखेज्जा । अजह० के० ? अणंता । आयु० जह• अज० हिदि० अणंता । एवं कायजोगि-अओरालियका-णवुस०कोधादि०४-अचक्खु०-भवसि-आहारग त्ति ।
जीव कितने हैं ? अनन्त हैं। आयुकर्मकी उत्कृष्ट स्थितिका बन्ध करनेवाले जीव कितने हैं ? असंख्यात हैं। अनुत्कृष्ट स्थितिका बन्ध करनेवाले जीव कितने हैं ? अनन्त हैं। इसी प्रकार सब वनस्पति और सब निगोदिया जीवोंका परिमाण जानना चाहिए।
विशेषार्थ-यद्यपि ये मार्गणाएँ अनन्त संख्यावाली हैं,तथापि इनमें आयुकर्मकी जघन्य स्थितिका बन्ध करनेवाले जीव अनन्तवें भाग प्रमाण ही होते हैं, इसलिए यहां इनकी संख्या असंख्यात बतलाई है। शेष कथन सुगम है।
१५२. आभिनिबोधिकज्ञानी, श्रुतज्ञानी और अवधिज्ञानी जीवों में सात कर्मोंकी उत्कृष्ट और अनुत्कृष्ट स्थितिका बन्ध करनेवाले जीव कितने हैं ? असंख्यात हैं। आयुकर्मकी उत्कृष्ट स्थितिका बन्ध करनेवाले जीव संख्यात हैं और अनुत्कृष्ट स्थितिका बन्ध करनेवाले जीव असंख्यात हैं। इसी प्रकार संयतासंयत, अवधिदर्शनी, सम्यग्दृष्टि, वेदकसम्यग्दृष्टि, सासादन सम्यग्दृष्टि और सम्यग्मिथ्यादृष्टि जीवोंका परिमाण जानना चाहिए। आनत कल्पसे लेकर अपराजित तकके देव, शुक्ल लेश्यावाले और क्षायिक सम्यग्दृष्टि जीवों में सात कौंकी उत्कृष्ट और अनुत्कृष्ट स्थितिका बन्ध करनेवाले जीव असंख्यात है। तथा आयुकर्मकी उत्कृष्ट और अनुत्कृष्ट स्थितिका बन्ध करनेवाले जीव मनुष्यनियोंके समान हैं।
विशेषार्थ-यहां गिनाई गई सब मार्गणाएँ असंख्यात संख्यावाली हैं.तथापि इनमें आयुकर्मकी अपेक्षा कुछ विशेषता है जिसका निर्देश अलग-अलग मूलमें किया ही है। शेष कथन सुगम है।
इस प्रकार उत्कृष्ट परिमाण समाप्त हुआ। १५३. अब जघन्य परिमाणका प्रकरण है। उसकी अपेक्षा निर्देश दो प्रकारका हैमोघ और आदेश। उनमेंसे श्रोधकी अपेक्षा सात कर्मोंकी जघन्य स्थितिका बन्ध करनेवाले जीव कितने हैं ? संख्यात हैं । अजघन्य स्थितिका बन्ध करनेवाले जीव कितने हैं ? अनन्त हैं। आयुकर्मकी जघन्य और अजघन्य स्थितिका बन्ध करनेवाले जीव अनन्त हैं । इसी प्रकार काययोगी, औदारिककाययोगी, नपुंसकवेदी, क्रोधादि चार कषायवाले, अचक्षुदर्शनी, भव्य और आहारक जीवोंका परिमाण जानना चाहिए ।
विशेषार्थ-सात कर्मोंकी जघन्य स्थितिका बन्ध क्षपकौणिमें होता है, इसलिए यहां
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