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भुजगारबंधे समुक्कित्तणाणुगमो
भुजगारबंधो २७०. भुजगारबंधेत्ति तत्थ इमं पदं या एरि हिदी बंदि अरणंतरादिसक्काविदविदिक्कते समये अप्पदरादो बहुदरं बंधदि ति एसो भुजगारबंध गाम | पदबंधे त्ति तत्थ इमं पदं - या एसिंग हिदी बंधदि अरणंतरउस्सक्काविदविदिकंते समए बहुदरादो अप्पदरं बंधदि ति एसो अप्पदरबंध णाम । वदिबंधे त्ति तत्थ इमं पदं — यात्रो एरिंग द्विदीओ बंधदि अणंतर ओसकाविद- उस्सक्काविदविदिक्कते समए तत्तियाओ तत्तियाओ चैव बंधदि ति सो अवधि णाम । अवत्तव्वबंधे त्ति तत्थ इमं पदं - अबंधदो बंदि सो अत्तव्वबंध णाम । पदे पदे तत्थ इमाणि तेरस अणियोगदाराणि - समुत्तिणा सामित्तं जाव अप्पाबहुगेति ।
समुत्तिणागमो
२७१. समुत्तिणाए दुवि० – आवेण आदेसेण य । श्रघेण सत्तणं क० थि भुजगारबंधगा अप्परबंधगा अवदिबंधगा अवत्तव्वबंधगा य ! आयुगस्स
भुजगारबन्धप्ररूपणा
२७०. भुजगारबन्ध यथा-उसके सम्बन्धर्मे यह अर्थपद है - वर्तमान समयमें जिन स्थितियोंको बाँधता है, उन्हें अनन्तर अतिक्रान्त समयमें घटी हुई बाँधी गई अल्पतर स्थिति से बहुत बाँधता है, यह भुजगार बन्ध है । अल्पतरबन्ध यथा-उसके विषयमें यह अर्थपद है— वर्तमान समय में जिन स्थितियोंको बाँधता है, उन्हें अनन्तर श्रतिक्रान्त समयमें बढ़ी हुई बाँधी गई बहुतर स्थिति से अल्पतर बाँधता है, यह अल्पतरबन्ध है । अवस्थितबन्ध यथाइसके विषयमें यह अर्थपद है- वर्तमान समयमें जिन स्थितियोंको बाँधता है, उन्हें अनन्तर प्रतिक्रान्त समय में घटी हुई या बढ़ी हुई बाँधी गई स्थिति से उतनी ही उतनी ही बाँधता है, यह अवस्थितबन्ध है । श्रवक्तव्यबन्ध यथा— उसके विषय में यह श्रर्थपद है—बन्धका भाव होनेके बाद पुनः बाँधता है, यह वक्तव्यबन्ध है । इस अर्थपदके अनुसार यहाँ ये तेरह अनुयोगद्वार हैं- समुत्कीर्तना और स्वामित्वसे लेकर श्रल्पबहुत्व तक ।
विशेषार्थ - यहाँ भुजगार आदिके द्वारा बन्धका विचार किया जा रहा है । प्रथम समयमै अल्का बन्ध करके अनन्तर बहुतका बन्ध करना भुजगारबन्ध है । इसी प्रकार बहुतका बन्ध करके अल्पका बन्ध करना अल्पतरबन्ध है । पिछले समय में जितना बन्ध किया है, अगले समयमें उतना ही बन्ध करना श्रवस्थितबन्ध है और विवक्षित कर्मके बन्धका अभाव होने पर पुनः बन्ध होना श्रवक्लव्य बन्ध है । प्रकृतमें स्थितिबन्धका प्रकरण है, इसलिए ये चारों स्थितिबन्धकी अपेक्षा घटित करने चाहिए । यहाँ इसका विचार तेरह अनुयोगोंके द्वारा किया गया है । अनुयोगद्वार ये हैं- समुत्कीर्तना, स्वामित्व, काल, अन्तर, नाना जीवोंकी अपेक्षा भङ्गविचय, भागाभाग, परिमाण, क्षेत्र, स्पर्शन, काल, अन्तर, भाव और अल्पबहुत्व |
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समुत्कीर्तनानुगम
२७१. समुत्कीर्तना दो प्रकारकी है - श्रोध और आदेश । उनमेंसे ओघकी अपेक्षा सात कर्मोंका भुजगारबन्ध करनेवाले जीव हैं, अल्पतरबन्ध करनेवाले जीव हैं, अवस्थितबन्ध करनेवाले जीव हैं और अवक्तव्यबन्ध करनेवाले जीव हैं । श्रायुकर्मका प्रवक्लव्य बन्ध १९
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