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भवसाणसमुदाहारे तिव्वमंददा
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साहाहिंतो तदो पलिदोवमस्स असंखेज्जभागं गंतूरण दुगुरणवडिदा' । एवं याव बंधज्झवसाणदुगुणवड्डि-[हारिण- ]हाणंतरं पलिदोवमस्स असंखेज्जदिभागो । खाणाडिदिबंधज्भवसाणदुगुणवड्ढि -हारिणद्वारणंतराणि अंगुलवग्गमूलच्छेदणयस्स असंखेज्जदिभागो । णाणाद्विदिबंधज्झवसाणद्गुणवड्डि-हाणिट्ठाणंतराणि थोवाणि । एयहिदिबंधज्भवसारणद्गुणवड्डि [हारिण - ]द्वारणंतरं असंखेज्जगुणं । एवं गादव्वं ।
४२१. अणुड्डीए णाणावरणीयस्स जहरिणयाए हिदीए हिदिबंधज्भवसारणद्वाराणि याणि ताणि विदियाए द्विदीए डिदिबंधज्झवसाणडाणाणि अपुव्वाणि । विदिया हिदीए हिदिबंधज्भव साट्टाखाणि याणि ताणि तदियाए हिदीए हिदिबंध वसाडाणाणि अपुव्वाणि च । एवं पुव्वाणि अपुव्वाणि याव उक्कस्सियाए हिदि ति । एवं सत्तणं कम्माणं ।
तिव्वमंददा
४२२. तिव्वमंददाए गारणावरणीयस्स' जहरियाए हिदीए जहरणयं हिदिबंधकवसाणहाणं सव्वमंदाणुगभागं । तस्स उकस्सए अतगुणं । विदियाए हिदी जयं द्विदिबंधज्भवसागहाणं अतगुणं । तिस्से उक्कस्यं तगुणं ।
स्थानोंसे पल्यके असंख्यातवें भाग प्रमाण स्थान जाकर वे दूने हो जाते हैं । इस प्रकार बन्धाध्यवसायद्विगुणवृद्धिहानिस्थानान्तर पल्यके श्रसंख्यातवें भागप्रमाण हैं और नानास्थितिबन्धाध्यवसायद्विगुणवृद्धिहानिस्थानान्तर अंगुल के वर्गमूलके अर्धच्छेदोके असंख्यातवें भागप्रमाण हैं । नानास्थितिबन्धाध्यवसायद्विगुणवृद्धिहानिस्थानान्तर स्तोक हैं । इनसे एकस्थितिबन्धाध्यवसायद्विगुणवृद्धिहानिस्थानान्तर असंख्यातगुणे हैं। इसी प्रकार शेष कमके जानना चाहिए ।
४२१. अनुकृष्टिका कथन करनेपर ज्ञानावरणकी जघन्य स्थितिके जो स्थितिबन्धाव्यवसाय स्थान हैं, वे स्थितिबन्धाध्यवसाय स्थान दूसरी स्थितिके पूर्व हैं। दूसरी स्थिति के जो स्थितिबन्धाध्यवसाय स्थान हैं, वे स्थितिबन्धाध्यवसाय स्थान तीसरी स्थिति के पूर्व हैं । इस प्रकार उत्कृष्ट स्थितिके प्राप्त होनेतक प्रत्येक स्थितिके स्थितिबन्धाध्यवसाय स्थान पूर्व- अपूर्व हैं। इसी प्रकार सात कर्मोंके विषयमें जानना चाहिए ।
विशेषार्थ - जहां आगे के परिणामोंकी पिछले परिणामोंके साथ समानता होती है, वहां अनुकृष्टि रचना होती है । यहां प्रत्येक स्थितिके स्थितिबन्धाध्यवसाय स्थान अपूर्व पूर्व हैं, इसलिए अनुकृष्टि रचना सम्भव नहीं है । उदाहरणार्थ, अधःकरण में जैसी अनुकृष्टि रचना होती है, वैसी यहां सम्भव नहीं है। किन्तु यहांकी रचना अपूर्वकरणके समान जाननी चाहिए ।
तीव्र - मन्दता ४२२ -- तीव्र - मन्दताकी अपेक्षा ज्ञानावरणकी जघन्य स्थितिका जघन्य स्थितिबन्धाध्यवसाय स्थान सबसे मन्द अनुभागको लिये हुए है । इसका उत्कृष्ट स्थितिबन्धाध्यवसाय स्थान अनन्तगुणे अनुभागको लिये हुए है। इससे दूसरी स्थितिका जघन्य स्थितिबन्धाध्यवसाय स्थान अनन्तगुणे अनुभागको लिये हुए हैं। इससे इसीका उत्कृष्ट स्थितिबन्धाध्यवसायस्थान अनन्तगुणे अनुभागको लिये हुए है। इससे तीसरी स्थितिका जघन्य १, पञ्चसं०] बन्धनक० गा० १०६ । २. पञ्चसं०] बन्धनक० गा० १०८ ।
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