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उक्कस्स-श्रद्धाच्छेदपरूवणा
२३९ ४०. मदि-सुद०-विभंग मूलोघं । णवरि देवायु० उक्क० हिदि० एकत्तीसा०। पुवकोडितिभा० आवा० । [आराधृ० कम्महि० कम्म-] णिसे० ।
आभि०-सुद०-श्रोधि० सव्वपगदीणं उक० द्विदि० अंतोकोडाको०। अंतोमु० आबा । [आबाधू० कम्महि० कम्म-] णिसे०। णवरि मणुसायु० उक्क० हिदि. पुवकोडी । छम्मासं आबा० । [कम्महिदी कम्म-] णिसे० । देवायु० ओघं । मणपज्ज-संजद-सामाइय-छेदो०-परिहार० सगपगदीणं अोधिभंगो।
४१. सुहुमसं० पंचणाणा-चदुदंस-पंचंतरा० उक्क. हिदि मुहुत्तपुधनं । अंतोमु० श्राबाधा। [आवाधृ० कम्महि० कम्म-] णिसे । सादवे-जसगि०उच्चागो० उक्क० हिदि. मासपुधत्तं । अंतो० आवा० । [आबाधृ० कम्महि कम्म-] णिसेगो । अथवा पंचणा०-चदुदंस-पंचतरा० उक्क० हिदि० दिवसपुधत्तं ! अंतोमु०
आबा० । [आबाधू० कम्महि ० कम्म-] णिसे० । सादा०-जसगि०-उच्चा० उक्क० हिदि० वासपुधत्तं । अंतोमु० आबा । [आबाधू० कम्महि कम्म] णिसे । संजदासंजदा० संजदभंगो । णवरि देवायु० उक्त हिदि० वावीसं [सागरोवमाणि । पुव्वकोडितिभागं आवा० । [कम्मट्टिदी कम्म-] णिसे । असंजदा० मूलोघं । णवरि
४०. मत्यशानी, श्रुताशानी और विभंगशानी जीवोंके सब प्रकृतियोंका भङ्ग मूलोघके समान है। इतनी विशेषता है कि देवायुका उत्कृष्ट स्थितिबन्ध इकतीस सागर प्रमाण है। पूर्वकोटिका त्रिभाग प्रमाण श्राबाधा है और कर्मस्थिति प्रमाण कर्मनिषेक है। श्राभिनिबोधिकशानी, श्रुतज्ञानी और अवधिज्ञानी जीवोंके सब प्रकृतियोंका उत्कृष्ट स्थितिबन्ध अन्तःकोडाकोड़ी सागर प्रमाण है, श्रान्तर्मुहूर्त प्रमाण आवाधा है और आबाधासे न्यून कर्मस्थिति प्रमाण कर्मनिषेक है। इतनी विशेषता है कि मनुष्यायुका उत्कृष्ट स्थितिबन्ध एक पूर्वकोटि वर्षप्रमाण है। छह माह प्रमाण आवाधा है और कर्मस्थिति प्रमाण कर्मनिषेक है। तथा देवायुका भङ्ग ओघके समान है। मनःपर्ययज्ञानी, संयत, सामायिक संयत. छेदोपस्थापनासंयत और परिहारविशुद्धिसंयत जीवोंके अपनी-अपनी प्रकृतियोंका भङ्ग अवधिज्ञानियोंके समान है।
४१. सूक्ष्म साम्पराय संयत जीवोंके पाँच ज्ञानावरण, चार दर्शनावरण और पाँच अन्तरायोंका उत्कृष्ट स्थितिबन्ध मुहर्त पृथक्त्व प्रमाण है। अन्तर्मुहूर्त प्रमाण आबाधा है और आबाधासे न्यन कर्मस्थिति प्रमाण कर्मनिषक है। साता वेदनीय, यशःकीर्ति और उच्च गोत्रका उत्कृष्ट स्थितिबन्ध मासपृथक्त्व प्रमाण है। अन्तर्मुहूर्त प्रमाण आबाधा है और आबाधासे न्यून कर्मस्थिति प्रमाण कर्मनिषेष है। अथवा पाँच ज्ञानावरण, चार दर्शनावरण और पांच अन्तरायोंका उत्कृष्ट स्थितिबन्ध दिवसपृथक्त्व प्रमाण है। अन्तर्मुहूर्त प्रमाण श्राबाधा है और आवाधासे न्यून कर्मस्थिति प्रमाण कर्मनिषेक है। तथा साता वेदनीय, यश-कीर्ति और उच्च गोत्रका उत्कृष्ट स्थितिबन्ध वर्षपृथक्त्व प्रमाण है। अन्तर्मुहूर्त प्रमाण
आबाधा है और आवाधासे न्यून कर्मस्थिति प्रमाण कर्मनिषेक है। संयतासंयतोंके सब प्रकृतियोंका भङ्ग संयतोंके समान है । इतनी विशेषता है कि देवायुका उत्कृष्ट स्थितिबन्ध बाईस सागर है। पूर्वकोटिका त्रिभाग प्रमाण आबाधा है और कर्मस्थिति प्रमाण कर्मनिषेक है। असंयतोंके सब प्रकृतियोंका भङ्ग मलोघके समान है। इतनी विशेषता है कि देवायुका
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