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महाबंधे ट्ठिदिबंधाहियारे
३६१. एइंदिय-पंचका० सत्तणं क० अत्थि असंखेज्जभागवड्डि-हाणि श्रवद्विदबंधगा य । सव्वविगलिंदिए सत्तणं क० अत्थि असंखेज्जभागवड्डि- हारिण० संखेभागवडि-हारिण० अवद्विदबंधगा य । अवगद० णाणावर ० दंसणावर ० - अंतराइ अथ संखेज्जभागवड्डि-हारिण० संखेज्जगुणवड्डि-हारिण० अवद्विद० अवत्तव्वबंधगाय । वेदरणीय-सामा-गोदाणं अस्थि संखेज्जभागवडि- हाणि ० [ संखेज्जगुरणवडि-हारिण० ] असंखेज्जगुणवड्डि-हारिण० अवदि० अत्तव्वबंधगा य । मोहरणीय० अत्थि संखेज्जभागवड हारिण • अवद्विद० अवत्तव्वबंधगा य । मुहुमसंप० छणं क० अत्थि संखेज्ज भागवड -हारिण० अदिबंधगा य । एवं समुक्कित्तणा समत्ता ।
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३६२. सामित्ताणुगमेण दुवि० - ओ० आदेसे० । श्रघेण सत्तणं क० असंखेज्जभागवडि- हारिण-अवदिबंधो कस्स होदि ? अरणदरस्स एइंदियस्स बीइंदि० तीइंदि० चदुरिंदि० पंचिंदि० सरिण' ० असरिण० पंज्जत अपज्जत्तगस्स वा । संखेज्जभागवड्डि- हारिण० कस्स होदि ? अणदरस्स वेइंदियस्स वा तेइंदि० चदुरिंदि ० पंचिंदि० सरिण० अस रिग ० पज्ज० अपज्ज० | संखेज्जगुणवडि-हारिणबंधो कस्स होदि ?
दर • पंचिदियस सरिणस्स वा पज्जत्तस्स वा अपज्जत्तस्स वा । असंखेज्ज
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३६१. एकेन्द्रिय और पाँचों स्थावरकाय जीवों में सात कर्मोंके असंख्यात भागवृद्धि, श्रसंख्यात भागहानि और अवस्थितपदका बन्ध करनेवाले जीव हैं । सब विकलेन्द्रियों में सात कमौके श्रसंख्यात भागवृद्धि, असंख्यात भागहानि, संख्यात भागवृद्धि, संख्यात भागहानि और अवस्थित पदका बन्ध करनेवाले जीव हैं। अपगतवेदी जीवोंमें ज्ञानावरण, दर्शनावरण और अन्तराय कर्मके संख्यात भागवृद्धि, संख्यात भागहानि, संख्यात गुणवृद्धि, संख्यात गुणहानि और अवस्थित पदका बन्ध करनेवाले जीव हैं । वेदनीय, नाम और गोत्र कर्मके संख्यात भागवृद्धि, संख्यात भागहानि, संख्यात गुणवृद्धि, संख्यात गुणहानि, असंख्यातगुणवृद्धि, असंख्यातगुणहानि, अवस्थित और श्रवक्कव्यपदका बन्ध करनेवाले जीव हैं। मोहनीय कर्मके संख्यात भागवृद्धि, संख्यात भागहानि, श्रवस्थित और श्रवक्लव्य पदका बन्ध करनेवाले जीव हैं । सूक्ष्मसाम्परायसंयत जीवों में छह कमौके संख्यात भागवृद्धि, संख्यात भागहानि और अवस्थित पदका बन्ध करनेवाले जीव हैं ।
इस प्रकार समुत्कीर्तना समाप्त हुई ।
३६२. स्वामित्वानुगमकी अपेक्षा निर्देश दो प्रकारका है— ओघ और आदेश । श्रघकी अपेक्षा सात कर्मोंका असंख्यात भागवृद्धि, असंख्यात भागद्दानि और अवस्थित बन्ध किसके होता है ? अन्यतर एकेन्द्रिय, द्वीन्द्रिय, त्रीन्द्रिय, चतुरिन्द्रिय, पञ्चेन्द्रिय संशी और पञ्चेन्द्रिय श्रसंज्ञी इन सब पर्याप्त और अपर्याप्त जीवोंके होता है । संख्यात भागवृद्धि और संख्यात भागहानि बन्ध किसके होता है ? श्रन्यतर द्वीन्द्रिय, त्रीन्द्रिय, चतुरिन्द्रिय, पञ्चेन्द्रिय संशी और पञ्चेन्द्रिय असंशी इन सब पर्याप्त और अपर्याप्त जीवोंके होता है। संख्यात गुणवृद्धि बन्ध और संख्यात गुणहानि बन्ध किसके होता है ? अन्यतर पञ्चेन्द्रिय संशी पर्याप्त और पञ्चेन्द्रिय संशी अपर्याप्त जीवके होता है । श्रसंख्यात गुणवृद्धिबन्ध किसके
१. सरिणति सरिण० इति पाठः ।
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