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भुजगारबंधे अंतराणुगमो
१५३ २८४. पंचिंदियतिरिक्खेसु सत्तएणं क. भुज०-अप्प० जह० एग०, उक्क० अंतो० । अवहि० जह० एग०, उक्क तिरिण सम० । आयु० तिरिक्खोघं । एवं पंचिंदियतिरिक्खजोणिणी-पंचिंदियतिरिक्खअप०-इत्थि०-पुरिस० असणिण त्ति । एदेसि
आयु० विसेसो। पंचिंदियतिरिक्ख०अप० जहएणु० अंतो। इत्थि०-पुरिस०-असएिण. जह० अंतो०,उक्क० पणवणणं पलिदो सादि तेत्तीसं सा०सादि० पुव्वकोडी सादिरे ।
२८५. मणुस० सत्तएणं क. भुज०-अप्पद -अवहि० मूलोघं । अवत्त. जह अंतो०,उक्क० पुव्वकोडिपुधत्तं । आयु० तिरिक्खोघं । मणुसअप० पंचिंदियतिरिक्खअपज्जत्तभंगो । णवरि अवहि० उक्क० वे० सम०।।
२८६. सव्वएइंदिय-विगलिंदिय-पंचकायाणं आयु० मोत्तूण णिरयभंगो। सब२८४. पञ्चेन्द्रिय तिर्यञ्चों में सात कर्मोंके भुजगार और अल्पतरबन्धका जघन्य अन्तर एक समय और उत्कृष्ट अन्तर अन्तर्मुहूर्त है। अवस्थितबन्धका जघन्य अन्तर एक समय और उत्कृष्ट अन्तर तीन समय है। आयुकर्मके पदोंका अन्तर सामान्य तिर्यञ्चोंके समान है। इसी प्रकार पञ्चेन्द्रिय तिर्यञ्चयोनिनी, पञ्चेन्द्रिय तिर्यञ्च अपर्याप्त, स्त्रीवेदी, पुरुषवेदी और असंशी जीवोंके जानना चाहिए,किन्तु इनके आयुकर्मके पदोंके अन्तरमें विशेषता है। यथापञ्चेन्द्रिय तिर्यञ्च अपर्याप्तक जीवोंमें आयुकर्मके पदोंका जघन्य और उत्कृष्ट अन्तर अन्तर्मुहूर्त है। तथा स्त्रीवेदी,पुरुषवेदी और असंज्ञी जीवोंमें आयुकर्मके पदोंका जघन्य अन्तर अन्तर्मुहूर्त और उत्कृष्ट अन्तर क्रमसे साधिक पचपन पल्य, साधिक तेतीस सागर और साधिक एक पूर्वकोटि है।
विशेषार्थ-यहाँ स्त्रीवेदी, पुरुषवेदी और असंशी जीवोंकी भवस्थितिको जानकर आयुकर्मके दोनों पदोंका उससे साधिक उत्कृष्ट अन्तरकाल कहा है। शेष कथन सुगम है।
२८५. मनुष्यत्रिकमें सात कर्मोके भुजगार, अल्पतर और अवस्थित बन्धका अन्तर मूलोघके समान है। प्रवक्तव्य बन्धका जघन्य अन्तर अन्तर्मुहूर्त और उत्कृष्ट अन्तर पूर्वकोटि पृथक्त्व है। आयुकर्मके पदोंका अन्तर सामान्य तिर्यञ्चोंके समान है। मनुष्य अपर्याप्तकों में पञ्चेन्द्रिय तिर्यश्च अपर्याप्तकोंके समान भङ्ग है । इतनी विशेषता है कि अवस्थित बन्धका उत्कृष्ट अन्तर दो समय है।
विशेषार्थ-मनुष्यत्रिकमें सात कौंके प्रवक्तव्य बन्धका उत्कृष्ट अन्तर पूर्वकोटिपृथक्त्व कहनेका कारण इनकी अपनी-अपनी कायस्थिति है। क्योंकि जिसने अपनी-अपनी काय
तिके प्रारम्भमें आठ वर्ष और अन्तर्महर्तके होने पर और अन्त में अन्तर्महर्त काल शेष रहने पर उपशमश्रेणि पर आरोहण कर उतरते समय सात कर्मीका अवक्तव्य बन्ध किया है, उसके इस पदका उत्कृष्ट अन्तरकाल उक्तप्रमाण प्राप्त होता है। तथा मनुष्य अपर्याप्तमें भुजगार और अल्पतर बन्धका उत्कृष्ट काल दो समय होनेसे इसमें अवस्थित बन्धका उत्कृष्ट अन्तर दो समय प्राप्त होता है। शेष कथन सुगम है। इसी प्रकार आगे भी यथासम्भव भुजगार आदि पदोंका काल और उस उस मार्गणाकी कायस्थिति आदि जानकर अन्तरकाल ले आना चाहिए।
२८६. सब एकेन्द्रिय, सब विकलेन्द्रिय, पाँच स्थावरकाय जीवोंमें आयुकर्मको छोड़कर शेष कमौके पदोंका अन्तर नारकियोंके समान है। सब सूक्ष्म और सब अपर्याप्तक
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