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महाबंधे द्विदिबंधाहियारे
खेत्तपरूवणा
१६१. खेत्तं दुविधं – जहररणयं उक्कस्सयं च । उक्कस्सए पगदं । दुविधो fueसो - घे आदेसेण य । तत्थ घेण हरणं कम्मारणं उक्क० हिदि-बंध० खेवडिखेत्ते ? लोगस्स असंखेज्जदिभागे । अणुक्क० बंध० केव० ? सव्वलोगे । एसिं परिमाणे उक्क० द्विदिबंधगा असंखेज्जा अणुक्क० बंध० अरांता तेसिं उक्करस० बंध० केव० खेत्ते ? लोगस्स असं०, अणु० सव्वलोगे एइंदिय-पंचकाया मोत्तूर । सेसाणं सव्वेसिं सव्वे भंगा उक्क • अर०बंध लोगस्स असंखेज्ज • । १६२. एइंदिय-मुहुमेइंदियपज्जत्तापज्जत्त० सत्तएां कम्मारणं उक्क० अणु० सव्वलोगे । आयु० उक्क० लोगस्स असं ० । ० सव्वलोगे । बादरएइंदियपज्जत्तापज्जत्त० सत्तणणं कम्मागं उक्क० अ० बंध० के० ? सव्वलो० । आयु०
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क्षेत्र प्ररूपणा
१६१. क्षेत्र दो प्रकारका है- - जघन्य और उत्कृष्ट । उत्कृष्टका प्रकरण है- उसकी अपेक्षा निर्देश दो प्रकारका है - श्रोध और आदेश । उनमेंसे श्रोघकी अपेक्षा आठों कर्मोंकी उत्कृष्ट स्थितिका बन्ध करनेवाले जीवोंका कितना क्षेत्र है ? लोकका श्रसंख्यातवाँ भाग क्षेत्र है । अनुत्कृष्ट स्थितिका बन्ध करनेवाले जीवोंका कितना क्षेत्र है ? सब लोक क्षेत्र है । जिनकी संख्या उत्कृष्ट स्थिति बन्धकी अपेक्षा असंख्यात है और अनुत्कृष्ट स्थितिके बन्धकी अपेक्षा अनन्त है, उनका उत्कृष्ट स्थितिके बन्धकी अपेक्षा कितना क्षेत्र है ? लोकका असंख्यातवाँ भाग क्षेत्र है तथा अनुत्कृष्ट स्थितिका बन्ध करनेवालोंका सब लोक क्षेत्र है । मात्र एकेन्द्रिय और पाँच स्थावर काय जीवोंको छोड़कर यह क्षेत्र कहा है । शेष सब जीवोंके सब भङ्ग अर्थात् उत्कृष्ट और अनुत्कृष्ट स्थितिका बन्ध करनेवाले शेष जीवोंका क्षेत्र लोकके श्रसंख्यातवें भागप्रमाण है ।
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विशेषार्थ - श्रोघसे सात कर्मोंकी उत्कृष्ट स्थितिका बन्ध संज्ञो पञ्चेन्द्रिय पर्याप्त मिथ्यादृष्टि जीवके संक्लेशरूप परिणामोंके होने पर होता है । तथा आयुकर्मकी उत्कृष्ट स्थिति का बन्ध इसके या सर्व विशुद्ध परिणामवाले संयतके होता है । यतः इनका क्षेत्र लोकके श्रसंख्यातवें भागप्रमाण है, अतः आठों कर्मोंकी उत्कृष्ट स्थितिका बन्ध करनेवाले जीवोंका उक्त प्रमाण क्षेत्र कहा है । तथा आठों कर्मों की अनुत्कृष्ट स्थितिका बन्ध करनेवाले जीवोंका सब लोक क्षेत्र है, यह स्पष्ट ही है । यहाँ शेष सब मार्गणाओं को तीन भागों में विभक्त कर दिया है । एकेन्द्रिय और पाँच स्थावरकायिक जीवोंको स्वतंत्र छोड़ दिया है, क्योंकि इनका क्षेत्र आगे कहनेवाले हैं। शेष अनन्त संख्यावाली मार्गणाओंका क्षेत्र यहीं बतला दिया है और शेष जितनी असंख्यात और संख्यात संख्यावाली मार्गणाएँ बचती हैं, उन सबमें सब पदों की अपेक्षा क्षेत्र लोकके श्रसंख्यातवें भागप्रमाण बतलाया है। शेष कथन सुगम है।
१६२. एकेन्द्रिय, सूक्ष्म एकेन्द्रिय और सूक्ष्म एकेन्द्रियोंके पर्याप्त - अपर्याप्त जीवों में सात कमी उत्कृष्ट और अनुत्कृष्ट स्थितिका बन्ध करनेवाले जीवोंका सब लोक क्षेत्र है । आयुकर्म की उत्कृष्ट स्थितिका बन्ध करनेवाले जीवोंका लोकके असंख्यातवें भागप्रमाण क्षेत्र है । तथा अनुत्कृष्ट स्थितिका बन्ध करनेवाले जीवोंका सब लोक क्षेत्र है । बादर एकेन्द्रिय और इनके पर्याप्त पर्याप्त जीवोंमें सात कर्मोंकी उत्कृष्ट और अनुत्कृष्ट स्थितिका बन्ध करनेवाले जीवोंका कितना क्षेत्र है ? सब लोक क्षेत्र है । आयु कर्मको उत्कृष्ट स्थितिका बन्ध करनेवाले
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