________________
१०२
महाबंधे ट्ठिदिबंधाहियारे १७१. आदेसेण णेरइएसु सत्तएणं क० उक्क० अणु० छच्चोद० । आयु० खेत्तभंगो। पढमाए खेत्तभंगो । विदियाए याव सत्तमा त्ति सत्तएणं क• उक्क अणु० बे-तिरिण-चत्तारि-पंच-छच्चोदस० । आयु० खेत्तभंगो । तिरिक्खेसु सत्तएणं क. उक० छच्चोद० । अणु० सव्वलोगो । आयु० खेत्तभंगो । एवं णवुस-किरणले ।
१७२. पंचिंदियतिरिक्ख०३ सत्तएणं क० उक्क० छच्चोद० । अणु० लोग० असंखे. सव्वलो० । आयु० खेत्तभंगो ।
__ विशेषार्थ-सात कर्मोंकी उत्कृष्ट स्थितिका बन्ध संशी पञ्चेन्द्रिय पर्याप्त संक्लेश परिणामवाले जीव करते हैं। इनका वर्तमान स्पर्शन लोकके असंख्यातवें भागप्रमाण है। अतीत कालीन स्पर्शन विहारवत्स्वस्थानकी अपेक्षा कुछ कम आठ बटे चौदह राजु और मारणान्तिक समुद्धातकी अपेक्षा तेरह बटे चौदह राजू है। यही जानकर यहां उत्कृष्ट स्थितिका बन्ध करनेवाले जीवोंका उक्त प्रमाण स्पर्शन कहा है। शेष कथन सुगम है।
१७१. आदेशसे नारकियों में सात कौंकी उत्कृष्ट और अनुत्कृष्ट स्थितिका बन्ध करनेवाले जीवोंने कुछ कम छह बटे चौदह राजू प्रमाण क्षेत्रका स्पर्शन किया है। आयुकर्मकी उत्कृष्ट और अनुत्कृष्ट स्थितिका बन्ध करनेवाले जीवोंका स्पर्शन क्षेत्रके समान है। पहिली पृथ्वीमें आठों कौकी उत्कृष्ट और अनुत्कृष्ट स्थितिका बन्ध करनेवाले जीवोंका स्पर्शन क्षेत्रके समान है। दूसरी पृथ्वीसे लेकर सातवीं पृथ्वी तकके नारकियों में सात कर्मोंकी उत्कृष्ट और अनुत्कृष्ट स्थितिका बन्ध करनेवाले जीवोंने क्रमसे कुछ कम एक बटे चौदह राजू , कुछ कम दो बटे चौदह राजु, कुछ कम तीन बटे चौदह राजू, कुछ कम चार बटे चौदह राजू कुछ कम पांच बटे चौदह राजु और कुछ कम छह बटे चौदह राजू क्षेत्रका स्पर्शन किया है। आयुकर्मका भङ्ग क्षेत्रके समान है। तिर्यञ्चोंमें सात कमौकी उत्कृष्ट स्थितिका बन्ध करनेवाले जीवोंने कुछ कम छह बटे चौदह राजू क्षेत्रका स्पर्शन किया है। अनुत्कृष्ट स्थितिका बन्ध करनेवाले जीवोंने सब लोक क्षेत्रका स्पर्शन किया है। आयुकर्मका भङ्ग क्षेत्रके समान है । इसी प्रकार नपुंसकवेदी और कृष्णलेश्यावाले जीवोंके जानना चाहिए।
विशेषार्थ-सामान्य नोरकियोंका अतीत कालीन स्पर्शन कुछ कम छह बटे चौदह राजू है। प्रथम पृथिवीमें लोकके असंख्यातवें भाग प्रमाण स्पर्शन है। द्वितीयादि पृथिवियों में कुछ
टेचौदह राजू आदि स्पर्शन है । इसे ध्यानमें रखकर सामान्यसे नरकमें और प्रत्येक पृथिवीमें सात कौकी उत्कृष्ट और अनुत्कृष्ट स्थितिका बन्ध करनेवाले जीवोंका उक्त प्रमाण स्पर्शन कहा है। तिर्यञ्चोंमें जो नीचे सातवीं पृथिवीतक मारणान्तिक समुद्धात करते हैं, उन्हींके सात कौंकी उत्कृष्ट स्थितिकी अपेक्षा उत्कृष्ट स्पर्शन कुछ कम छह बटे चौदह राजू उपलब्ध होता है,यह जानकर उक्त प्रमाण स्पर्शन कहा है । शेष कथन सुगम है।
१७२. पञ्चेन्द्रिय तिर्यञ्च त्रिकमें सात कौकी उत्कृष्टस्थितिका बन्ध करनेवाले जीवोंने कुछ कम छह बटे चौदह राजू प्रमाण क्षेत्रका स्पर्शन किया है। अनुत्कृष्ट स्थितिका बन्ध करनेवाले जीवोंने लोकके असख्यातवें भाग प्रमाण और सब लोक क्षेत्रका स्पर्शन किया है। आयुकर्मका भङ्ग क्षेत्रके समान है।
विशेषार्थ--पञ्चेन्द्रिय तिर्यञ्च त्रिकमें कुछ कम छह बटे चौदह राजू का स्पष्टीकरण सामान्य तिर्यश्चोंके समान है। इन तीन प्रकारके तिर्यञ्चोका वर्तमान नियास लोकके असंख्यातवें भागप्रमाण है और अतीत कालीन निवास मारणान्तिक और उपपादपदकी अपेक्षा सर्व लोक है। यह जानकर इनमें सात कौंकी अनुत्कृष्ट स्थितिका बन्ध करनेवाले उक्त
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org