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महाबंधे ट्ठिदिबंधाहियारे
चोद्दस० । वेउब्वियमि० - आहार० - आहारमि० - अवगद ० - मणपज्ज० - संजदा -सामाइ०छेदो० - परिहार - सुहुम संप० खेत्तभंगो । कम्मइ० - अणाहार० सत्तएणं क ० उक्क ० बारहचोद्दस॰ । अणु० सव्वलोगो ।
१७६. अभि० - मुद्०-ओधि० सत्तां क० उक्क० अ० अट्ठचोदस० । आयु ० उक्क॰ खेत्तभंगो। अणु० अ० । एवं ओधिदं सम्मादि ० खड्ग ० - वेदगस ० -उवसमस० । १८०. संजदासंजद० सत्तणं कम्माणं उक्क० खेत्त० । अणु छच्चोद्दस० । आयु० उक्क० अणु ० खेत्तभंगो ।
१८१. खील० - काउ सत्तरणं क० उक्क० चत्तारि - बे - चोदस० । अणु० सव्वलो ०, वैक्रियिक मिश्र काययोगवाले, श्राहारककाययोगवाले आहारकमिश्रकाययोगवाले, अपगतवेदी, मन:पर्ययज्ञानी, संयत, सामायिकसंयत, छेदोपस्थापना संयत, परिहारविशुद्धिसंयत और सूक्ष्मसाम्पराय संयत जीवोंमें आठ कर्मोंकी उत्कृष्ट और अनुत्कृष्ट स्थितिका बन्ध करनेवाले जीवोंका स्पर्शन क्षेत्र के समान है । कार्मणकाययोगवाले और अनाहारक जीवोंमें सात कर्मोकी उत्कृष्ट स्थितिका बन्ध करनेवाले जीवोंने कुछ कम बारह बटे चौदह राजू क्षेत्रका स्पर्शन किया है । अनुत्कृष्ट स्थितिका बन्ध करनेवाले जीवोंने सब लोक क्षेत्रका स्पर्शन किया है ।
विशेषार्थ - सात कर्मोंकी उत्कृष्ट स्थितिका बन्ध करनेवाले श्रदारिक काययोगी जीव नीचे सातवीं पृथिवी तक मारणान्तिक समुद्धात करते हैं इसलिए इनका कुछ कम छह बटे चौदह राजू प्रमाण स्पर्शन कहा है। श्रदारिकमिश्रकाययोगमें आठों कर्मोंकी उत्कृष्ट स्थितिका बन्ध उक्त योगवाले सब जीवोंके न होकर कतिपय जीवोंके ही होता है। जिनका कुल स्पर्शन लोकके असंख्यातवें भागप्रमाणसे अधिक नहीं होता, इसलिए इनका उक्त प्रमाण स्पर्शन कहा है । मारणान्तिक समुद्धात में आयुबन्ध नहीं होता, इसलिए वैक्रियिककाययोगमें आयुकर्मकी उत्कृष्ट और अनुत्कृष्ट स्थितिका बन्ध करनेवाले जीवका स्पर्शन केवल कुछ कम आठ बटे चौदह राजू प्रमाण कहा है।
१७९. श्राभिनिबोधिकशानी, श्रुतज्ञानी और अवधिज्ञानी जीवोंमें सात कर्मोंकी उत्कृष्ट और अनुत्कृष्ट स्थितिका बन्ध करनेवाले जीवने कुछ कम आठ बटे चौदह राजू क्षेत्रका स्पर्शन किया है । आयुकर्मकी उत्कृष्ट स्थितिका बन्ध करनेवाले जीवोंका स्पर्शन क्षेत्र के समान है । अनुत्कृष्ट स्थितिका बन्ध करनेवाले जोवने कुछ कम आठ बटे चौदह राजू क्षेत्रका स्पर्शन किया है । इसी प्रकार अवधिदर्शनी, सम्यग्दृष्टि, क्षायिक सम्यग्दृष्टि, वेदकसम्यग्दृष्टि और उपशमसम्यग्दृष्टि जीवोंमें स्पर्शन जानना चाहिए ।
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विशेषार्थ—उक्त मार्गणाओं में कुछ कम आठ बटे चौदह राजू क्षेत्रका स्पर्शन यथासम्भव विहारवत्स्वस्थान आदि पदोंकी अपेक्षा होता है। शेष कथन सुगम है ।
१८०. संयतासंयतों में सात कर्मोंकी उत्कृष्ट स्थितिका बन्ध करनेवाले जीवोंका स्पर्शन क्षेत्र के समान है । अनुत्कृष्ट स्थितिका बन्ध करनेवाले जीवोंने कुछ कम छह बटे चौदह राजु क्षेत्रका स्पर्शन किया है। आयुकर्मकी उत्कृष्ट और अनुत्कृष्ट स्थितिका बन्ध करनेवाले जीवोंका स्पर्शन क्षेत्रके समान है ।
विशेषार्थ- संयतासंयतों का मारणान्तिक समुद्धातकी अपेक्षा कुछ कम छह बटे चौदह राजू प्रमाण स्पर्शन होता है ।
१८१. नीललेश्यावाले और कापोत लेश्यावाले जीवोंमें सात कर्मोंकी उत्कृष्ट स्थितिका बन्ध करनेवाले जीवने क्रमसे कुछ कम चार बटे चौदह राजू और कुछ कम दो बटे चौदह
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