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डिदि अप्पा बहुगपरूवणा
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अज०म० द्विदिबं० [सं० गु० । आयु० मरपुसिभंगो। एवं खइगस० । उवसम० सत्तणं क० सव्वत्थोवा जह० द्विदिबं० । उक्क० असं० गु० । अज०मरणुद्विदिबं० असंखे० गु० । सासरण ० सव्वत्थोवा सत्तणं क० जह० द्विदिबं० । उक्क० हिदिबं० असं० गु० । अज०म० द्विदिबं० असं ० गु० । आयु० सव्वत्थोवा उक्क० द्विदिबं० । जह० द्विदिवं ० असं० गु० । अज०मणुद्विदिवं असं० गु० । एवं जीव अप्पाबहुगं समत्तं ।
हिदिअप्पाबहुगपरूवणा
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२३५. ट्ठिदिअप्पा बहुगं तिविधं - जहणणयं उक्कस्सयं जहरगुक्कस्सयं च । उक्कस्सए पगदं । सव्वत्थोवा ग्रहणं कम्मारणं उकस्सओ हिदिबंधो । यद्विदिबंधो विसेसाधियो । एवं याव अणाहारग ति दव्वं ।
२३६. जहण्णए पगदं । अट्ठएणं कम्माणं सव्वत्थोवा जहरणओ हिदिबंधो । दिबंध विसेसाधियो । एवं याव अणाहारग ति दव्वं ।
२३७. जहण्णुक्कस्सए पगदं । दुवि घे० दे० । श्रघेण श्रहरणं कम्माणं सव्वत्थोवा जहरणद्विदिबंधो । यद्विदिबंधो विसेसाधियो । उक्कस्सद्विदिबंधो श्रसंखेज्जगु० । यद्विदिबंधो विसेसा० । एवं ओघभंगो मणुस ० ३ - पंचिंदिय-तस० २ - पंचमण०
अजघन्य अनुत्कृष्ट स्थितिका बन्ध करनेवाले जीव श्रसंख्यातगुणे हैं । श्रायुकर्मका भङ्ग मनुयिनियोंके समान जानना चाहिए। इसी प्रकार क्षायिक सम्यग्दृष्टियोंके जानना चाहिए । उपशमसम्यग्दृष्टि जीवोंमें सात कर्मोंकी जघन्य स्थितिका बन्ध करनेवाले जीव सबसे स्तोक हैं । इनसे उत्कृष्ट स्थितिका बन्ध करनेवाले जीव श्रसंख्यातगुणें हैं । इनसे जघन्य अनुत्कृष्ट स्थितिका बन्ध करनेवाले जीव असंख्यातगुणे हैं। सासादन सम्यग्दृष्टि जीवोंमें सात कर्मोंकी जघन्य स्थितिका बन्ध करनेवाले जीव सबसे स्तोक हैं । इनसे उत्कृष्ट स्थितिका बन्ध करनेवाले जीव श्रसंख्यातगुणे हैं। इनसे अजघन्य अनुत्कृष्ट स्थितिका बन्ध करनेवाले जीव असंख्यातगुणे हैं। आयुकर्मकी उत्कृष्ट स्थितिका बन्ध करनेवाले जीव सबसे स्तोक हैं। इनसे जघन्य स्थितिका बन्ध करनेवाले जीव असंख्यातगुणें हैं। इनसे अजघन्य अनुत्कृष्ट स्थितिका बन्ध करनेवाले जीव असंख्यातगुणें हैं।
इस प्रकार जीव अल्पबहुत्व समाप्त हुआ । स्थिति अल्पत्वप्ररूपणा
२३५. स्थिति अल्पबहुत्व तीन प्रकारका है- जघन्य, उत्कृष्ट और जघन्य उत्कृष्ट । उत्कृष्टका प्रकरण है । इसकी अपेक्षा आठ कर्मोंका उत्कृष्ट स्थितिबन्ध सबसे स्तोक है । यत्स्थितिबन्ध विशेष अधिक है। इसी प्रकार अनाहारक मार्गणा तक जानना चाहिए ।
२३६. जघन्यका प्रकरण है। उसकी अपेक्षा आठों कमका जघन्य स्थितिबन्ध सबसे स्तोक है । यत्स्थितिबन्ध विशेष अधिक है। इसी प्रकार अनाहारक मार्गणा तक जानना चाहिए । २३७. जघन्य उत्कृष्टका प्रकरण है । उसकी अपेक्षा निर्देश दो प्रकारका है— श्रघ और आदेश । श्रोधकी अपेक्षा आठ कर्मोंका जघन्य स्थितिबन्ध सबसे स्तोक है । यत्स्थितिबन्ध विशेष अधिक है । इससे उत्कृष्ट स्थितिबन्ध श्रसंख्यातगुणा है । इससे यत्स्थितिबन्ध विशेष अधिक है। इसी प्रकार श्रधके समान मनुष्यत्रिक, पञ्चेन्द्रियद्विक, सद्विक, पाँचों
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