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णिसेगपरूवणा हुत्तं आवाधा मोतूण जं पढमसम तं बहुगं । विदियस० तं विसे । जं तदियसतं विसे । एवं विसे• विसे. जाव उक्क सागरोवमसहस्सस्स तिषिण-सत्त भागा सत्तसत्तभागा बे-सत्तभागा पलिदोवमस्स संखेजदि भागेण ऊणिया त्ति । आयुगस्स अंतोमु० आबाधा मोत्तूण जं पढमस तं बहुगं। जं विदियसम० तं विसे । जंतदियस० तं विसे । एवं विसे० विसे. जाव उक्क० पुवकोडि त्ति ।। ____६. चदुरिंदि-तेइंदि०-बेइंदि० पज्जत्ताणं सत्तएणं कम्माणं आयुगवजाणं अंतोमु० आवाधा मोत्तूण जं पढमसमए तं बहुगं । विदियस तं विसे । जं तदियस० तं विसे । एवं विसे विसे जाव उक्कस्सेण सागरोवमसदस्स सागरोवमपएणारसाए सागरोवमपणुवीसाए तिरिण-सत्त भागा सत्त-सत्त भागा बे-सत्त भागा पडिपुण्णा त्ति । आयुगस्स बे मासं सोलस रादिदियाणि सादिरेयाणि चत्तारि वस्साणि
आबाधा मोत्तूण जं पढम स० तं बहुगं। जं विदियस० तं विसे । जं तदियस० तं विसे । एवं विसे विसे जाव उक्कस्सेण पुनकोडि त्ति ।
१०. चदुरिंदि-तेइंदिय-बेइंदिय अपज्जत्ताणं सत्तएणं कम्माणं आयुगवज्जाणं
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आबाधाको छोड़कर जो प्रथम समयमें कर्मपरमाणु निक्षिप्त होते हैं वे बहुत हैं। जो दूसरे समयमें कर्मपरमाणु निक्षिप्त होते हैं वे विशेषहीन हैं। जो तीसरे समयमें कर्मपरमाणु निक्षिप्त होते हैं वे विशेषहीन हैं। इस प्रकार एक हजार सागरके पल्यका संख्यातवाँ भाग कम तीन बटे सात भाग प्रमाण, एक हजार सागरके पल्यका संख्यातवाँ भाग कम सात बटे सात भागप्रमाण और एक हजार सागरके पल्यका संख्यातवाँ भाग कम दो बटे सात भागप्रमाण उत्कृष्ट स्थितिके अंतिम समयतक विशेषहीन विशेषहीन कर्मपरमाणु निक्षिप्त होते हैं। आयुकर्मके अंतर्मुहूर्तप्रमाण आवाधाको छोड़कर जो प्रथम समयमें कर्मपरमाणु निक्षिप्त होते हैं
त है। जो दूसरे समयमें कर्मपरमाणु निक्षिप्त होते हैं वे विशेषहीन है। जो तीसरे समयमें कर्मपरमाणु निक्षिप्त होते हैं वे विशेषहीन हैं। इस प्रकार पूर्वकोटिप्रमाण उत्कृष्ट स्थितिके अन्तिम समयतक विशेषहीन विशेषहीन कर्मपरमाणु निक्षिप्त होते हैं ।
९. चतुरिंद्रिय पर्याप्त, त्रींद्रिय पर्याप्त और द्वींद्रिय पर्याप्त जीवोंके आयुकर्मके सिवा सात कमौके अंतर्मुहूर्त प्रमाण आबाधाको छोड़कर जो प्रथम समय में कर्मपरमाणु निक्षिप्त होते हैं वे बहुत हैं । जो दूसरे समयमें कर्मपरमाणु निक्षिप्त होते हैं वे विशेषहीन हैं। जो तीसरे समयमें कर्मपरमाणु निक्षिप्त होते हैं वे विशेषहीन हैं। इस प्रकार क्रमसे सौ सागरका, पचास सागरका और पञ्चीस सागरका तीन बटे सात भागप्रमाण, सात बटे सात भागप्रमाण और दो बटे सात भागप्रमाण परिपूर्ण उत्कृष्ट स्थितिके अन्तिम समय तक विशेषहीन विशेषहीन कर्मपरमाणु विक्षिप्त होते हैं। आयुकर्मके क्रमसे दो माह, साधिक सोलह दिनरात और चार वर्षप्रमाण आबाधाको छोड़कर जो प्रथम समयमें कर्मपरमाणु निक्षिप्त होते हैं वे बहुत हैं । जो दूसरे समयमें कर्मपरमाणु निक्षिप्त होते हैं वे विशेषहीन हैं । जो तीसरे समयमें कर्मपरमाणु निक्षिप्त होते हैं वे विशेषहीन हैं। इस प्रकार पूर्वकोटिप्रमाण उत्कृष्ठ स्थितिके अंतिम समय तक विशेषहीन विशेषहीन कर्मपरमाणु निक्षिप्त होते हैं।
१०. चतुरिंद्रिय, त्रींद्रिय और द्वींद्रिय अपर्याप्तकोंके आयुके सिवा सात कर्मोंके अंत
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