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जहण - तर परूवणा
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११५. तिरिक्खेसु सत्तणं क० जह० जह० तो०, उक्क० असंखेज्जा लोगा । अज० ओघं । आयु० जह० जह० खुद्दाभवग्गहणं समयूर्ण, उक्क पलिदोव० संखे० । अज० जह० अंतो०, उक्क० तिरिण पलिदो ० सादिरे० । पंचिंदियतिरिक्ख ०३ सत्तणं क० जह० जह० तो, उक्क० पुव्वकोडिपुधत्तं । अज० श्रघं । आयु० जह० जह० खुद्दाभव० समयू०, उक्क पुव्वकोडिपुधत्तं । अज० अणुकरसभंगो । वरि पज्जत - जोगिणी आयु० जह० णत्थि अंतरं । अज० पगदिअंतरं । पंचिदियतिरिक्खापज्जत्त० सत्तणं क० जह० जह० उक्क० अंतो० । अज० श्रघं । आयु० जह० जह० खुद्दाभव० समयू०, उक्क० अंतो० । अज० जह० अंतो० । एवं सव्वापज्जत्ताणं तसारणं थावराणं च । वरि मणुस पज्जत्त० सत्तां क० जह अज० णत्थि अंतरं । मणुस ० ३ सत्तरणं क० जह० जह० णत्थि अंतरं । आयु० पंचिंदियतिरिक्ख भंगो । जोदिसिय याव सव्वद्ध त्ति उक्कस्तभंगो |
यतः असंशी जीव प्रथम नरकमें तथा भवनवासी और व्यन्तर देवोंमें उत्पन्न होता है, अतः प्रथम नरक, सामान्य देव, भवनवासी और व्यन्तर देवों में सामान्य नरकके समान प्ररूपणा बन जाती है । यही कारण है कि इन मार्गणाओं में सामान्य नरकके समान अन्तरकाल कहा है । द्वितीयादि पृथिवियों में जघन्य और अजघन्य स्थितिबन्ध कभी भी सम्भव है । इसीसे इनमें जघन्य स्थितिबन्धका जघन्य अन्तर अन्तर्मुहूर्त और उत्कृष्ट अन्तर कुछ कम अपनीअपनी उत्कृष्ट स्थितिप्रमाण कहा है। शेष कथन सुगम है ।
११५. तिर्यञ्चों में सात कमौके जघन्य स्थितिबन्धका जघन्य अन्तरकाल अन्तर्मुहूर्त है और उत्कृष्ट अन्तर असंख्यात लोकप्रमाण है । अजघन्य स्थितिबन्धका अन्तर धके समान है । श्रायुकर्मके जघन्य स्थितिबन्धका जघन्य अन्तर एक समय कम क्षुल्लकभवग्रहण प्रमाण है और उत्कृष्ट अन्तर पल्यके असंख्यातवें भाग प्रमाण है । अजघन्य स्थितिबन्धका जघन्य अन्तर अन्तर्मुहूर्त है । और उत्कृष्ट अन्तर साधिक तीन पल्य प्रमाण है । पञ्चेन्द्रिय तिर्यञ्चत्रिक में सात कर्मोंके जघन्य स्थितिबन्धका जघन्य अन्तर अन्तर्मुहूर्त है और उत्कृष्ट अन्तर पूर्वकोटि पृथक्त्वप्रमाण है । अजघन्य स्थितिबन्धका अन्तर ओघके समान है । आयुकर्मके जघन्य स्थितिबन्धका जघन्य श्रन्तर एक समय कम क्षुल्लकभवग्रहण प्रमाण है और उत्कृष्ट अन्तर पूर्वकोटि पृथक्त्वप्रमाण है । जघन्य स्थितिबन्धका अन्तर अनुत्कृष्टके समान है । इतनी विशेषता है कि पर्याप्त और योनिनी जीवोंमें श्रायुकर्मके जघन्य स्थितिबन्धका अन्तरकाल नहीं है । तथा अजघन्य स्थितिबन्धका अन्तर प्रकृतिबन्ध के अन्तरके समान है । पञ्चेन्द्रिय तिर्यञ्च अपर्याप्तकों में सात कर्मोंके जघन्य स्थितिबन्धका जघन्य और उत्कृष्ट अन्तर अन्तर्मुहूर्त है । जघन्य स्थितिबन्धका अन्तर ओधके समान है । आयुकर्मके जघन्य स्थितिबन्धका जघन्य अन्तर एक समय कम क्षुल्लकभवग्रहण प्रमाण है और उत्कृष्ट अन्तर अन्तर्मुहूर्त है । अजघन्य स्थितिबन्धका जघन्य और उत्कृष्ट अन्तर अन्तर्मुहूर्त है । इसी प्रकार त्रस और स्थावर सब अपर्याप्तकोंके जानना चाहिए। इतनी विशेषता है कि मनुष्य पर्याकोंके सात कर्मोंके जघन्य और अजघन्य स्थितिबन्धका अन्तरकाल नहीं है । मनुष्य त्रिकमें सात कर्मों के जघन्य और अजघन्य स्थितिबन्धका अन्तरकाल नहीं है । आयुकर्मके स्थितिबन्धका अन्तर पञ्चेन्द्रिय तिर्यञ्चोंके समान है । ज्योतिषियोंसे लेकर सर्वार्थसिद्धितक अन्तर उत्कृष्टके समान है ।
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