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श्री महाबल मलयासुंदरी चरित्र
आगन्तुक युवक
सुनने के लिए तत्पर रहे और चाहे जैसे प्रयत्न से प्रजा को दुःख से मुक्त करनी चाहिए। बहुत से अधिकारी प्रजा के दुःख की उपेक्षा करते हैं, नियमित समय के सिवाय प्रजाजनों की फरियाद नहीं सुनते । इससे प्रजा को बहुत बार कष्ट उठाना पड़ता है । इस प्रकार प्रजा की पुकार पर उपेक्षा करने वाला अधिकारी या राजा वास्तव में उस पद के योग्य ही नहीं होता । मुझे अपनी प्रजा की फरियाद हर वक्त सुननी चाहिए और शक्य प्रयत्नों द्वारा उसे सुखी करनी चाहिए । राजा प्रजा के सुख से सुखी और दुःख से दुःखी होता है । प्रजा के सुख पर ही राजा के राजैश्वर्य का आधार है, यह बात हमें हर वक्त याद रखनी चाहिए । प्रजा की यातनाभरी कराहनी राजा को निर्वशकर भिखारी बना देती है । इत्यादि विचारों में मग्न होते हुए महाराज के सन्मुख आगंतुक युवक आ उपस्थित हुआ । उसने महाराज के सन्मुख उपहार रखकर विनीत भाव से गर्दन झुका चरणों में नमस्कार किया ।
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प्राचीन साहित्य में विशाल भारत भूमि आर्य देश के नाम से प्रसिद्ध है । उसके दक्षिण देश में चन्द्रावती नगरी उसकी शोभा में और भी अधिक वृद्धि कर रही थी । इसी चन्द्रावती नगरी के पूर्ववर्ति विशाल काय महान् मलयाचल पर्वत अपने ससुगंध मन्द पवन से नगरी के लोगों को नित्य ही आनंदित करता था । राजा के महल, धनाढ्य व्यापारियों के गगनचुंबी मकान, जिनेश्वरदेव के मंदिर और धर्मसाधन करने के पवित्र स्थान ये उस नगरी की मुख्य शोभा बढ़ा रहे थे । शहर के चारों तरफ सुंदर किला था । शहर की दक्षिण दिशा में महान् विस्तार वाली गोला नदी कल-कल निनाद करती हुई बह रही थी । शीतल और चमत्कारिक तरंगों से देखने वालों के मन को आनंदित करती थी । नदी के किनारे का हरियाला प्रदेश, शहर के चारों तरफ के बगीचे और छोटे - छोटे सुंदर पहाड़ों पर खड़े हुए वृक्षों के निकुंज ग्रीष्म ऋतु में प्रचंड आताप से मनुष्यों को शांति देने के लिए पर्याप्त थे । इसी रमणीय चंद्रावती नगरी के स्वामी पूर्वोक्त महाराज वीरधवल है ।
महाराज के साथ बातचीतकर उस युवक के गये बाद महाराज वीरधवल के चेहरे पर कुछ उदासीन भाव ने अपना प्रभाव डाला । मुख पर चमकता हुआ
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