Book Title: Kasaypahudam Part 08
Author(s): Gundharacharya, Fulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
Publisher: Bharatiya Digambar Sangh
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गा० २६ ]
पढमगाहाए पदच्छेदपरूवणा
१६
अत्थो होइ ति णिहिं । तत्थाणुपुव्वी - णाम- पमाण-वत्तव्वदाणमत्थपरूवणा सुगमा । अत्थाहियारो पुण अट्ठविहो होइ, उवरि तहापरूवणादो ।
* 'चउव्विहो यणिक्खेवो' त्तिणाम हवणं वज्जं दव्वं खेत्तं कालो भावो च ।
$ ४३. एत्थेवमहिसंबंधो कायव्वो -- ' चउव्विहो य णिक्खेवो' त्ति एदस्स बीजपदस्स अत्थो दव्वं खेत्तं कालो भावो चेदि चउव्विहो णिक्खेवो पयडिसंकमविसओ । कुदो ? जम्हा णाम दुवणं वज्रं वज्रणीयमिदि । कुदो पुण दोषहमेदेसिं वञ्जणं ? ण, तेसिमेत्थेव जहासंभवमंतव्भावदंसणादो सुगमात्तदो वा । तदो दोन्हमेदेसिमवणयणं काऊण दव्व-खेत्त-काल-भावाणं गहणं कयं । तत्थागमदो दव्वपयडिसंकमो सुगमो, अणुवजुत्ततप्पाहुडजाणयसरूवत्तादो | णोआगमदो दव्वपयडिसंकमो दुविहो— कम्मणोकम्मभेण । तत्थ णोकम्मदव्वपयडिसंकमो जहा संकंतो णीलुप्पलगंधो ति, नीलुप्पलसहावस्स गंधस्स वासिजमाणदव्वंतरेसु संकंतिदंसणादो । कम्मदव्यपयडिसंकमो जहा मिच्छत्तादीणं मोहणिञ्जपयडीणं अण्णोष्णं समयाविरोहेण संक्रमो । खेत्तादिणं णिक्खेवाणमत्थो पुव्वं व वक्तव्वो ।
पदका अर्थ है ऐसा इस चूर्णिसूत्र में निर्देश किया है । सो इनमें से आनुपूर्वी, नाम, प्रमाण और वक्तव्यता इनका अर्थ सुगम है । किन्तु जैसा कि आगे कहा जानेवाला है तदनुसार अधिकार आठ प्रकारका है ।
* 'चउव्विहो यणिक्खेवो' पदका अर्थ है कि नाम और स्थापनाको छोड़कर द्रव्य, क्षेत्र, काल और भाव ये चार निक्षेप हैं ।
६४३. यहाँ पर इस प्रकार सम्बन्ध करना चाहिये कि प्रथम गाथामें जो 'चउव्विहो य furaan' यह बीजपद है सो इसका अर्थ हैं कि प्रकृतिसंक्रमको विषय करनेवाले द्रव्य, क्षेत्र, काल और भाव ये चार निक्षेप हैं ।
शंका – ये चार ही क्यों हैं ?
समाधान- - क्यों कि यहाँ पर नाम और स्थापना निक्षेपको छोड़ देना चाहिये । शंका-इन दोनों को यहाँ क्यों छोड़ दिया है ?
समाधान — नहीं, क्यों कि इन दोनोंका इन्हीं चारोंमें यथासम्भव अन्तभाव देखा जाता है। या वे सुगम हैं, इसलिये इन दोनोंको छोड़कर द्रव्य, क्षेत्र, काल और भाव इनका ग्रहण किया है । इन द्रव्यादि चार निक्षेपोंमें आगमद्रव्यप्रकृतिसंक्रम सुगम है, क्यों कि, जो प्रकृतिसंक्रमविषयक प्राभृतको जानता है किन्तु उसके उपयोग से रहित है वह श्रागमद्रव्यप्रकृतिसंक्रम कहलाता है । नागमद्रव्यप्रकृतिसंक्रम कर्म और नोकर्मके भेदसे दो प्रकारका है । इनमेंसे नील कमलका गन्ध संक्रान्त हुआ यह नोकर्मद्रव्यप्रकृतिसंक्रमका उदाहरण है, क्यों कि जिन दूसरे द्रव्यों को नील कमल के गन्धसे वासित किया जाता है उनमें उस गन्धका संक्रमण देखा जाता है। आगम में बतलाई हुई विधिअनुसार मोहनीयकी मिध्यात्व आदि प्रकृतियोंका परस्पर में संक्रमण होना कर्मद्रव्यप्रकृतिसंक्रम है । तथा क्षेत्र आदि नित्तेपोंका अर्थ पहलेके समान कहना चाहिये ।
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