Book Title: Kasaypahudam Part 08
Author(s): Gundharacharya, Fulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
Publisher: Bharatiya Digambar Sangh
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जयधवलासहिदे कसायपाहुडे
अवयवत्थमुवरिमपदच्छेदपरूवणाए चैव वत्तइस्सामो सुत्तसिद्धस्स
फलाभावादो ।
१८
* एदाओ तिरिए गाहा म पर्याडिसकमे ।
९ ३९. एवमेदाओ तिणि गाहाओ पयडिसंकमे पडिबद्धाओ होंति त्ति भणिदं हो । एवमेदासि पयडिसंकमपडिबद्धत्तं णिरूविय पदच्छेदमु हेणेदासिं वक्खाणं कुणमाणो सुत्तपबंधमुत्तरं भणइ
[ बंधगो ६ पुघपरूवणाए
* एदासिं गाहाणं पदच्छेदो ।
४०. एतो एदासिं गाहाणं पदच्छेदो कायच्वो होदि, अवयवत्थवक्खाणे पयारंतराभावादो ति उत्तं होदि ।
* तं जहा ।
४१. सुगमं ।
* 'संकम उवक्कमविही पंचविहो' त्ति एंदस्स पदस्स अत्थो पंचविहोउको पुवीणामं पमाणं वत्तव्वदा अत्थाहियारो चेदि ।
$ ४२. संकम - उवकमविही पंचविहो ति एदस्स पढमगाहापुव्वद्धावयवपदस्स अत्थो को होइ त्ति आसंकिय आणुपुव्वी आदिभेदेण पंचविहो उवकमो एदस्स पदस्स प्रत्येक पदका अर्थं आगे पदच्छेदका कथन करते समय ही बतलावेंगे, क्योंकि जो बात सूत्रसिद्ध है उसका अलग से कथन करनेमें कोई लाभ नहीं है ।
* ये तीन गाथाएं प्रकृतिसंक्रमके विषयमें आई हैं ।
$ ३६. इस प्रकार ये तीन गाथाएं प्रकृतिसंक्रम से सम्बन्ध रखती हैं यह उक्त सूत्रका तात्पर्य है । इस प्रकार ये तीन गाथाएं प्रकृतिसंक्रमसे सम्बन्ध रखती हैं इसका कथन करके अब पदच्छेदद्वारा इनका व्याख्यान करते हुए आगे के सूत्रोंका निर्देश करते हैं
* इन गाथाओंका पदच्छेद ।
४०. अब इससे आगे इन गाथाओंका पदच्छेद करना चाहिये, क्योंकि अन्य प्रकार से गाथाओं के प्रत्येक पदके अर्थका व्याख्यान करना सम्भव नहीं है यह उक्त सूत्रका तात्पर्य है ।
* यथा---
४१. यह सूत्र सुगम है ।
* 'संकम-उवक्कमविही पंचविहो' इस पदका अर्थ है कि उपक्रम पाँच प्रकारका है -- आनुपूर्वी, नाम, प्रमाण, वक्तव्यता और अर्थाधिकार ।
४२. प्रथम गाथा के पूर्वार्धमें जो 'संक्रम - उवक्कम विही पंचविहो' यह पद आया है सो इसका क्या अर्थ है ऐसी आशंका करके आनुपूर्वी आदिके भेदसे उपक्रम पाँच प्रकारका है यह इस
१. ता० प्रतौ 'एदस्स' इत्यतः सूत्रांशस्य टीकांशेन निर्देशः कृतः ।
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