Book Title: Kasaypahudam Part 08
Author(s): Gundharacharya, Fulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
Publisher: Bharatiya Digambar Sangh
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१६
जयधवलासहिदे कसायपाहुडे
[ बंधगो ६
भणिदं होइ । एवं च पयदस्स पयडिसंकमस्स परूवणं कुणमाणो तत्थ पडिबद्धाणं गाहासुत्ताणमियत्तावहारणट्ठमुत्तरमुत्तमाह
* तत्थ तिरिण सुत्तगाहाओ हवंति ।
$ ३४. तत्थ पयडिसंकमपरूवणावसरे तिणि सुत्तगाहाओ संगहियासेसत्थसाराओ हवंति त्ति भणिदं होइ । ताओ कदमाओ त्ति आसंकिय पुच्छासुत्तमाह
* तं जहा ।
३५. सुगमं ।
संकम उवकमविही पंचविहो चउव्विहो य णिक्खेवो । णयविही पयदं पयदे च णिग्गमो होइ अट्ठविहो || २४||
३६. एसा पढमा गाहा । एदीए पयडिसंकमस्स उवकमो णिखेवो ओ अणुगमो चेदि चउव्वहो अवयारो परूविदो, तेण विणा पयदस्स परूवणोवायाभावादो । एवमेदिस्से गाहाए समुदायत्थो परुविदो । अवयवत्थं पुण पुरदो चुण्णिसुत्तसंबंधेणेव परूवइस्सामो । संपहि एत्थुद्दिदृडविहणिग्गमसरूवपरूवणडुविदियगाहाए अवयारोएकेकाए संकमो दुविहो संक्रमविही य पयडीए ।
कम पडिग्गहविही पडिग्गहो उत्तम जहण्णो ॥ २५ ॥
भेदोंमेंसे सर्व प्रथम प्रकृतिसंक्रम प्रकृत है यह उक्त सूत्रका तात्पर्य है । इस प्रकार प्रकरणप्राप्त प्रकृतिसंक्रमका कथन करते हुए उससे सम्बन्ध रखनेवाली गाथाओं का परिमाण निश्चित करने के लिये का सूत्र कहते हैं—
* इस विषय में तीन सूत्र गाथाएं हैं ।
९ ३४. यहां प्रकृतिसंक्रमके कथन से सम्बन्ध रखनेवालीं तथा सब अर्थके सारका संग्रह कर स्थित हुई तीन सूत्र गाथाएं हैं यह उक्त सूत्रका तात्पर्य है । वे कौनसी हैं ऐसी आशंका करके पृच्छासूत्र कहते हैं-
* यथा
९ ३५. यह सूत्र सुगम है ।
संक्रमकी उपक्रमविधि पाँच प्रकारकी है, निक्षेप चार प्रकारका है, नयविधि भी प्रकृत है और प्रकृतमें निर्गम आठ प्रकारका है ॥२४॥
३६. यह पहली गाथा है । इसके द्वारा प्रकृतिसंक्रमका उपक्रम, निक्षेप, नय और अनुगम यह चार प्रकारका अवतार कहा गया है, क्योंकि इसके बिना प्रकृत विषयका सम् प्रकार से प्रतिपादन नहीं हो सकता है। इस प्रकार इस गाथाका समुदायार्थं कहा । किन्तु इसके प्रत्येक पदका अर्थ आगे चूर्णिसूत्र के सम्बन्धले ही कहेंगे । अब इस गाथामें कहे गये आठ प्रकार के निर्गमके स्वरूपका कथन करनेके लिये दूसरी गाथाका अवतार हुआ है
प्रकृति संक्रम दो प्रकारका है- एक एक प्रकृतिका संक्रम अर्थात् एकैकप्रकृतिसंक्रम और प्रकृतिकी संक्रमविधि अर्थात् प्रकृतिस्थानसंक्रम । तथा संक्रममें
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