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जीने का उसूल अहिंसक दृष्टि
जो काम सुई से निपट सकता है, उसके लिए तलवार का उपयोग मत कीजिए।
आँच
सावधान ! तलहटी से उठी हुई आँच कभी भी शिखर तक पहुँच सकती है।
आँसू
आँसू आँख की भाषा है। जो बात होंठ से नहीं बनती, वह आँसुओं से बन जाया करती है।
आग्रह-मुक्ति
विचारों के दुराग्रह से वैसे ही उपरत हो जाएँ, जैसे कमल कीचड़ से उपरत होता है।
आज-कल
आज तभी बोझ बनता है, जब हम कल की चिन्ताओं को भी उसमें जोड़ लेते हैं।
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