________________
७८
जीने का उसूल
भावना-मरण
जिसकी भावना मर गई, उसके लिए संसार और सम्बन्ध दोनों ही मृत और नीरस हैं।
भाषा
जितनी भाषा मधुर होगी, सम्बन्धों में उतनी ही मधुरता और आत्मीयता आएगी।
भाषा-विवेक
कम बोलिये, पहले तौलिए, बिना काम के मत बोलिये।
भूख
हम मकान और कपड़े के बिना जी सकते हैं, पर भूख की आपूर्ति करना हमारी पहली आवश्यकता है।
भूल
भूलों पर शोक मनाना चिंता को बढ़ावा देना है जबकि उनसे सीख लेना स्वर्णिम भविष्य की ओर कदम बढ़ाना है।
भूलना
जीवन में आप कितने भी ऊँचे क्यों न उठ जाएँ, पर अपनी गरीबी और कठिनाई के दिन कभी मत भूलिए।
Jain Education International
For Personal & Private Use Only
www.jainelibrary.org