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श्री चन्द्रप्रभ
जीने गेल
सफल और सार्थक जीवन जीने का अनमोल खज़ाना
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पंख के अभाव में हम पक्षी की तरह आकाश में तो नहीं उड़ सकते, लेकिन पाँवों से चलकर शिखर की ऊँचाइयों को तो छू ही सकते हैं ।
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सौजन्य-संविभाग श्री मदनलाल पार्वतीदेवी भूतड़ा, ओमप्रकाश, महेन्द्र, अरविन्द भूतड़ा,
जोधपुर / मुम्बई
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जीने के उसूल
पूज्य श्री चन्द्रप्रभ के अमृत वचन
जीने की दृष्टि, शक्ति और प्रेरणा देने वाली
चर्चित पुस्तक
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आशीर्वाद : गणिवर श्री महिमाप्रभ सागर जी
प्रकाशन :
जितयशा फाउंडेशन, बी-७, अनुकम्पा, द्वितीय, एम.आई. रोड़, जयपुर (राज.)
प्रकाशन-वर्ष :
मई 2006 पंचम संस्करण
मुद्रण : बबलू ऑफसेट, जोधपुर
मुल्य : २० रुपये
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पूर्व स्वर
'जीने के उसूल' महान् जीवन-द्रष्टा पूज्य श्री चन्द्रप्रभ की ओर से अखिल मानवता के लिए चिरन्तन प्रेरणा है। यह शांति, समृद्धि और सफलता का वह द्वार है जिससे हजारों लोगों ने अब तक सृजन और विकास की मंजिल पाई है। पुस्तक में दिए गए वचन मानो उनके वक्तव्यों के सार-संदेश हैं। जब भी हम अपने आपको किसी समस्या या ऊहापोह से घिरा हुए पाएँ, प्रस्तुत पुस्तक के पन्ने खोलें, कुछ अमृत वचन पढ़े, आप पाएंगे कि आप समाधान के नये क्षितिज में अपने कदम रख चुके हैं। सचमुच, आप एक अद्भुत विश्वास और नई ऊर्जा से भर उठेंगे। आपके अन्तर्मन की, आचार
और व्यवहार की दुर्बलता विलीन हो जाएगी। आप स्वस्थ मन और स्वस्थ जीवन के स्वामी हो चुके होंगे।
पूज्य श्री चन्द्रप्रभ भगवत् कृपा का वह वरदान है, जिसने मानवता को अपनी साधना का अशेष ज्ञान प्रदान किया है। जब वे ध्यान में बैठे हों, तो उनकी मूरत दर्शनीय होती है और जब वे प्रवचन देते हैं, तो उनकी वाणी हर हृदय को धन्य करती है। जीने की सही-सार्थक दिशा देकर वे हमारी अंगुली थाम सीधे सफल रास्ते पर ले आते हैं। ‘जीने के उसूल' उनके उन्हीं प्रेरक वचनों का संकलन है।
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निश्चय ही ये प्रेरक वचन हम सबके जीवन को नये उत्साह और विश्वास से भरेंगे। हम जब-जब भी इन स्वर्णिम वचनों का मनन करेंगे, हमें एक नई सार्थक दिशा उपलब्ध होगी। इनमें से जो वचन आपको अपने लिए सर्वाधिक प्रेरक लगे, आप उन्हें किसी सुन्दर कार्ड पर बड़े अक्षरों में लिखें और अपने घर-दफ्तर में ऐसी जगह लगाएँ, जहाँ सहज ही आपकी नज़र पड़ती हो। आप आश्चर्य करेंगे कि वह वचन आपके जीवन के लिए एक बेहतरीन दीप-शिखा और प्रेरणा-शास्त्र का काम कर रहा है। जीवन की सफलता के लिए ये वचन आपके लिए अमृत हैं। ___ आइये, हम अपने कदम बढ़ाते हैं उस दिशा की ओर जहां से जीवन में शांति, प्रेम और प्रगति के मंगल द्वार उपलब्ध होते हैं।
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जीने के उसूल
अकेलापन
समूह में रह चुके व्यक्ति के लिए अकेलापन तभी मंगलकारी है, जब उसके अन्तर्मन में शान्ति के प्रति आस्था हो।
अखबार
अख़बार तो सुबह का सूरज है, जिसके उगे बिना सवेरा होने का अहसास ही नहीं होता।
अच्छाई
हम अच्छे लोगों के साथ जिएँ, हमारे जीवन में अच्छाई के फूल स्वत: खिल उठेंगे।
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जीने का उसूल
अदब
सबके साथ इतने अदब से पेश आइये कि वह अदब ही आपकी सफलता और लोकप्रियता का द्वार बन जाए।
अदूरदर्शी
कार्य हो जाने के बाद उसके बारे में सोचना ठीक वैसा ही है, जैसे साँप निकल जाने के बाद उसकी लकीर पर लाठी भाँजना।
अधीरता
इतने भी अधीर मत बनिये कि आपकी शांति और सफलता आपसे चार कोस दूर हो जाए।
अध्यात्म-प्रवर्तन
मैं कौन हूँ, कहाँ से आया हूँ, जीवन का स्रोत क्या है - अन्तर्मन में ऐसे प्रश्नों का उठना ही जीवन में अध्यात्म की शुरूआत है।
अनुभव
अनुभव के द्वार खुल जाने के बाद किताबी ज्ञान का मोह स्वत: छूट जाता है।
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जीने का उसूल अनुभूति
अनुभूति को अभिव्यक्ति के सहारे की आवश्यकता नहीं होती।
अनुशासन
उसी का अनुशासन प्रभावी होता है जिसका अपने आप पर नियंत्रण है।
अन्तर्जगत
जो अन्तर्मन में प्रेम और शांति से जीता है, वह भीतर के जगत का सम्राट् है।
अन्तर्भावना
हमारे कदम सच्चाई से गिरने लगें, तो हे प्रभु, तू हमें थामना। हमारी प्रार्थनाओं के फल हमें लौटाना कि हम सत्य पर अडिग रहें।
अन्तर्-सजगता
अन्तर्मन में सजगता हो तो हर बुरी आदत पर विजय पाई जा सकती है।
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अन्तर् - सुषमा हृदय की
सुन्दरता दर्पण में नहीं देखी जा सकती। आपका सौम्य व्यवहार ही उसकी पहचान का आईना है ।
अन्त:स्रोत
कोई बाहर से भले ही कठोर लगे, पर हर पर्वत के भीतर झरना हुआ करता है।
अपवाद
मृत्यु से कोई भी क्यों न बचना चाहे, पर मृत्यु का कोई अपवाद नहीं है। फिर मृत्यु - भय से क्यों घिरें ?
अपरिग्रह
जीने का उसूल
अपरिग्रह का आचरण सामाजिक सेवा का ही एक चरण है। अपने परिग्रह पर अंकुश लगाकर स्वार्थों का त्याग कीजिए ।
अपशब्द
गाली बुरे आदमी को भी क्यों न दी जाये, यह भले आदमी का लक्षण नहीं है।
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जीने का उसूल
अबोध
अर्थी को देखकर भी जो जीवन का अर्थ न समझे, ज्ञान और बोध तो व्यर्थ ही है ।
अभय
अभाव
तुम डरो मत, तुम्हें ग़लत को गलत कहने का हक़ है।
अमृत
अभिवादन
अभाव में भी प्रसन्न रहने वाले व्यक्ति स्वभाव की प्रतिकूलताओं पर विजय प्राप्त कर लेते हैं ।
उसका
घर में आए मेहमान का खड़े होकर अभिवादन करना उसके लिए स्वागत द्वार बनाने से भी बढ़कर है।
-
अमृत अमरता देने वाला कोई पदार्थ नहीं है । वह तो एक भाव - दशा है, जो कि व्यक्ति को मृत्यु
से मुक्त कर
देती है।
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अमृत- पुरुष
अमर
वह व्यक्ति ही अमृत पुरुष है, जो दुःखी और असहाय लोगों
आँसू पोंछता है।
अमर वे होते हैं, जो शंकर की तरह औरों के हिस्से का विष भी पी लेते हैं।
अमर-पुरुष
अमर वह नहीं है जिसने अपनी वंशावली बढ़ाई है। अमर वह है जिसने वंश के श्रेय और संस्कार के लिए आहुति और कुर्बानी दी है।
अर्पण
जीने का उसूल
मन में यह शिकायत न हो कि हमें क्या मिला है ? हम यह देखें कि हमने अपनी ओर से क्या किया है ?
अल्पज्ञान
अधूरा ज्ञान कच्ची कैरी की तरह है, जो कि खट्टी भी होती है और कड़क भी । ज्ञान को पकने का अवसर दीजिए ताकि वह आम की तरह मधुर और ग्राह्य हो ।
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जीने का उसूल
अवसर
बुद्धिमान व्यक्ति अवसर की प्रतीक्षा करने की बजाय स्वयं अवसर पैदा करने में विश्वास रखते हैं।
अविचल
कोई बुरा कहे या भला, हम अपने कर्तव्य-पथ से विचलित न हों।
असमानता
सामने गधा हो तो शेर को चाहिए कि वह अपना रास्ता बदल ले।
अहसास
हमारा होना ही नहीं, न होना भी हमारा अहसास करवाए।
अहसास
हाथ की हड्डी टूट जाने पर फोड़े के दर्द का अहसास नहीं रह पाता।
अहिंसा
अहिंसा किसी की बपौती नहीं है। वह तो प्राणी मात्र की जीवन-दृष्टि है।
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जीने का उसूल अहिंसक दृष्टि
जो काम सुई से निपट सकता है, उसके लिए तलवार का उपयोग मत कीजिए।
आँच
सावधान ! तलहटी से उठी हुई आँच कभी भी शिखर तक पहुँच सकती है।
आँसू
आँसू आँख की भाषा है। जो बात होंठ से नहीं बनती, वह आँसुओं से बन जाया करती है।
आग्रह-मुक्ति
विचारों के दुराग्रह से वैसे ही उपरत हो जाएँ, जैसे कमल कीचड़ से उपरत होता है।
आज-कल
आज तभी बोझ बनता है, जब हम कल की चिन्ताओं को भी उसमें जोड़ लेते हैं।
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जीने का उसूल आतंकवादी
लोगों को गोलियों से भूनना वीरों का नहीं, आतंकवादियों का काम है।
आतिथ्य
फल मधुर होते हैं, फूल सुवासित होते हैं। हे प्रभु, तू हमें वृक्ष की हरी पत्तियों की तरह बना जिनसे सहज ही सबको शीतल छाँह मिलती है।
आत्मघात
जो आग पानी को उष्णता देती है, उबाल आने पर वही पानी उसको बुझाने की कोशिश करता है।
आत्म-ज्ञान
जीवन में आत्म-ज्ञान घटित होना मरुस्थल में मरूद्यान का लहलहाने की तरह है।
आत्मदृष्टि
परभाव से मुक्ति एवं स्वभाव में संतुष्टि ही आत्मदृष्टि है।
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जीने का उसूल आत्मनिर्भर
किसी गरीब को आत्मनिर्भर बनाना अपनी ओर से मानवता के ऋण से उऋण होना है।
आत्म-पूजा
स्वयं को पुजाना आत्म-प्रवंचना है जबकि स्वयं को पूजना परमपिता परमेश्वर की ही पूजा है।
आत्म-विश्वास
सदा इतना आत्मविश्वास रखिए कि आपके जीवन से 'असम्भव' के 'अ' को हटना पड़े।
आत्मविश्वास
आत्म-विश्वास जीवन की वह शक्ति है, जिससे बाधाओं के हर पर्वत को लाँघा जा सकता है।
आत्म-शद्धि
अपने दोषों से लड़ने की बजाय अच्छाइयों को आत्मसात् करना अधिक श्रेयस्कर है।
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जीने का उसूल आत्म-सुख
कर्मचारी को उस समय आत्म-सुख मिलता है, जब मालिक किसी काम के लिए उसे धन्यवाद देता है।
आत्म-सुधार
दूसरों के द्वारा स्वयं को सुधारा नहीं जा सकता स्वयं के संकल्प से ही स्वयं का सुधार संभव है।
आधार-सूत्र
जीवन से दुर्गुणों को दूर करने के लिए अपने भीतर सद्गुणों के दीप जलाएँ।
आनन्द
जीवन एक उत्सव है। इसके प्रत्येक क्षण को आनन्द के साथ जिएँ; फिर चाहे हानि हुई हो या लाभ।
आयुष्य
आयु एक ऐसा प्याज है, जिसके जितने छिलके उतरेंगे, वह उतना ही छोटा होता जाएगा।
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जीने का उसूल
आलस्य
आलस्य अमावस है, पुरुषार्थ पूनम है। बताइये, आप अपने जीवन में अमावस चाहते हैं या पूनम? देर मत कीजिए। पूनम के लिए पहल शुरू कर दीजिए।
आलोचना
जो आपकी आलोचना करे, आप उसकी प्रशंसा कीजिए। उसकी दिशा अपने आप बदल जाएगी।
आवश्यकता और इच्छा
आवश्यकता पेट की होती है, इच्छा पेटी की। आवश्यकताओं को इतना भी न बढ़ाएँ कि वह इच्छाओं का भिक्षापात्र थाम ले।
आविष्कार
हर सफल आविष्कार के गर्भ में कई प्रयोग समाए होते हैं।
आशा
क्रूर से करुणा की और बिच्छू से अमृत की आशा करना व्यर्थ है।
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जीने का उसूल
आशा-किरण
सुखद भविष्य के लिए आशा ही एकमात्र प्रकाश की किरण है।
आशीर्वाद
नश्वर लोगों द्वारा दिया जाने वाला आशीर्वाद अनश्वर नहीं हो सकता।
आशीष-प्रार्थना
प्रभु मेरे ! यह आशीष दें... सबसे प्रेम करें, सबकी सेवा करें। यहाँ-वहाँ हर जहाँ-सर्वत्र तुम्हें ही देखें।
आश्वासन और झूठ
राजनीति के लिए आश्वासन कार्बन-डाई-ऑक्साईड है और झूठ ऑक्सीजन।
आसक्त-अनासक्त
आसक्त व्यक्ति के लिए गुफावास भी घर है जबकि अनासक्त के लिए घर भी आश्रम है।
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जीने का उसूल आसक्ति
महलों के गिरने से राजा दु:खी होते हैं किन्तु राजाओं के धराशायी होने पर महल शोक नहीं करते।
आसीन
सीधी कमर बैठना ज्ञान-तंतुओं को जागृत रखने का सरल उपाय है।
आहुति
स्वार्थ की जितनी आहुति दी जाएगी, ईश्वर के घर से आपके लिए उतना ही सुख-प्रबन्धन होगा।
इच्छा
इच्छा वह भिक्षापात्र है, जिसे सिकंदर भी न भर सका।
इतिहास
इतिहास के गौरव को रखने के लिए वर्तमान की उपेक्षा मत कीजिए।
ईमान
कोई भी व्यक्ति तभी तक ईमानदार रहता है जब तक उसे बेइमानी करने का मौका नहीं मिलता।
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जीने का उसूल ईमान-बेईमान
बेईमानों के बीच ईमान की बात करना कौओं के झुंड में हंस की खिल्ली उड़ाना है।
ईश्वर
ईश्वर तर्क की नहीं, प्रेम और श्रद्धा की चीज है। उससे उतना ही प्रेम कीजिए जितना आप अपनी पत्नी और पैसे से करते हैं।
ईर्ष्या
ईर्ष्या बराबर वालों से नहीं, उनसे कीजिए जो हम से सौ गुना आगे बढ़े हुए हैं, ताकि हम भी उस ऊंचाई तक उठ सकें।
उतार-चढ़ाव
सम स्थिति तो केवल तारों की रहती है। महान् व्यक्तियों को तो चन्द्रमा की तरह उतार-चढ़ावों से गुजरना ही पड़ता है।
उत्थान
यदि अपना उत्थान केवल औरों के भरोसे ही हो सकता होता, तो गधा अब तक इन्सान हो गया होता।
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जीने का उसूल
उत्साह
अपना प्रत्येक कार्य उत्साह से करें, फिर चाहे वह धन्धा हो या नाश्ता।
उदार
उदार अवश्य बनें, पर उड़ाऊ कतई नहीं।
उदासीनता-प्रसन्नता
मन की उदासी से जो संसार नरक लगता था, मन की प्रसन्नता से वही स्वर्ग लगने लगता है।
उद्देश्य
उद्देश्य महान् हो और उसे पूरा करने की मानसिकता सुदृढ़, तो जीवन को अपने आप सफलता की दिशा मिल जाती
उन्मत्त और नियंत्रित
उन्मत्त हाथी औरों को कुचलता है, जबकि नियंत्रित हाथी बादशाहों को आरूढ़ किया करते हैं।
उपयोग
तकिये का उपयोग सोने के लिए है, ढोने के लिए नहीं।
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जीने का उसूल उपयोगिता
जूतों की उपयोगिता पाँवों के लिए है, सिर के लिए नहीं।
उपवास
भोजन करना भी उपवास है, बशर्ते उसे चित्त की शांति और समता से स्वीकार किया जाए।
उपेक्षा-परहेज
जो लोग यह चाहते हैं कि उनकी उपेक्षा न हो उन्हें औरों की उपेक्षा करने से बचना चाहिए।
उम्र
पीले पड़ चुके पत्तों को कितना भी पानी दो, वे फिर से हरे नहीं हो सकते।
उल्लास
उल्लास और आत्म-विश्वास जीवन के वे सोपान हैं, जो किसी भी कार्य की सफलता और पूर्णता के आधार बनते हैं।
उल्लास और प्रेम
बिना प्रेम और उल्लास के धन और धर्म दोनों ही नीरस हैं।
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जीने का उसूल एकत्व-बोध
मैं एक हूँ, अकेला ही आया हूँ और अकेला ही जाऊँगास्वयं के इस एकत्व का बोध होना जीवन के द्वार पर संबोधि का सूर्योदय है।
एकजुट
तुम चार हो और रोटी एक, तब भी मिलजुल कर खाओ।
ओंकार
'ओम्' संसार का सबसे सूक्ष्म बीज मंत्र है। इसका निरन्तर ध्यान धरने से चित्त की चंचलता शान्त होती है और प्रबलतम अन्तराय भी कटते हैं।
औरत
औरत चाहे अपनी हो या दूसरे की, उसके प्रति सम्मान तो होना ही चाहिए।
कंजूस
जो सोने के घिसने के डर से अंगूठी नहीं पहनते, वे सोने के उपयोग का आनन्द नहीं ले सकते।
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जीने का उसूल
कट्टरता
कट्टरता संसार का सबसे खतरनाक कैंसर है जो कि मानवता और भाईचारे की आत्मा को खोखला कर देता है।
कमजोरी
किसी के घर जाकर शालीनता और सभ्यता की मुहर न लगा पाना अपनी ही कमजोरी है।
कमी
दूसरों में कमी उसे ही दिखाई देती है, जो अपनी कमियों पर विजय प्राप्त नहीं कर पाया।
करुणा
किसी घायल पंछी को देखकर उसकी उपेक्षा मत कीजिए। उसे एक घुट पानी और धर्म-मंत्र सुनाने की करुणा अवश्य कीजिए।
करुणा-प्रार्थना
ओ करुणा के स्वामी! इतनी करुणा अवश्य करो कि क्षुद्र से क्षुद्र जीव में भी मुझे तुम्हारे दर्शन होते रहें।
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जीने का उसूल कर्तव्य
हर कर्तव्य का हम वैसा ही निर्वाह करें, जैसे किसी देवदूत का सम्मान करते हैं।
कर्त्तव्य-चूक
कर्त्तव्य-मार्ग से चूकना स्वयं की पराजय है। आप कर्त्तव्य का पालन कीजिए, विजय आपकी होगी।
कर्त्तव्य-बोध
जीवन में भावना का क्षेत्र सत्तर प्रतिशत है, पर कर्त्तव्य के लिए भावना पर भी विजय पा लेनी चाहिए।
कर्मयोग
पहले 'क' आता है, फिर 'ख'। पहले करें, फिर खाएँ। कर्मयोग से जी न चुराएँ।
कला-मूल्य
दस पैसे का पत्थर भी अगर कलाकार की कला से छू जाए, तो वही लाखों में बिक जाता है।
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जीने का उसूल
कल्पना
कल्पना केवल कीजिए मत; उसे मूर्त रूप दीजिए। एक छोटी-सी कल्पना किसी नये सृजन का सूत्रधार बन सकती
कविता-पाठ
वह कविता प्यारी लगती है, जिसमें बालक जैसी सुकोमलता
हो।
कसैला
मधुमक्खी विषैली ही क्यों न हो किन्तु उसके द्वारा संचित मधु कभी कसैला नहीं होता।
काँच और लोहा
हम काँच नहीं, लोहा बनें, जो हथौड़े से पिटकर और मजबूत होता है।
काटना
डरो मत, हर मच्छर के काटने से मलेरिया नहीं होता।
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जीने का उसूल काम और जुबान
जिसकी जुबां बोलती है, उसका काम मंदा होता है। जिसका काम बोलता है, उसे जुबान का उपयोग करने की जरूरत नहीं पड़ती।
काला
काला वह नहीं है, जिसका रंग साँवला है। काला वह है जिसका मन पापी है।
कीमत
यदि हर वन में चंदन होता, तो उसकी कीमत भी अन्य लकड़ियों की तरह होती।
कृतज्ञता
तुम विश्वविद्यालय के कुलपति ही क्यों न हो जाओ, पर जिससे बारहखड़ी सीखी है, उसकी अदब में कमी मत आने
दो।
कृत्य
तुम्हारा छोटा-सा कृत्य भी स्वर्ग के दरवाजों की चाबी बन सकता है।
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जीने का उसूल
कृत्रिमता
केन्द्रित
क्रोध
प्रकाश कृत्रिम ही क्यों न हो, कम-से-कम अंधकार से तो
अच्छा ही है।
जीवन बैलगाड़ी का चलता पहिया है। निश्चिंत तो वह है, धुरी की तरह केन्द्रित है।
क्रोध दिमाग का धुँआ है । यह करने वाले को भी धुँधवाता है और करवाने वाले को भी ।
क्रोध-परिणति
२३
सावधान! आपका पल भर का क्रोध भी आपका पूरा भविष्य बिगाड़ सकता है।
क्रोध- नियंत्रण
क्रोध आने पर बैठ जाओ। बैठे हो, तो लेट जाओ। लेटे हो तो उठकर कहीं और चले जाओ ।
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२४
क्रोध - मुक्ति
क्रोध के दौरान यदि हम एक क्षण के लिए भी शांत हो जाते हैं तो अपने सौ दिनों को दुःखी होने से बचा लेंगे ।
क्षमता - जागरण
गुरुजनों को हाथ दिखाने की बजाय उनसे वह मानसिक शक्ति चाहें, जिससे उलझनों को सुलझाने की स्वयं क्षमता मिल जाये ।
खंडन-मंडन
अपनी समझदारी का उपयोग मंडन के लिए कीजिए, खंडन के लिए नहीं ।
खर्राटा
गुण-दोष उन खर्राटों की तरह है जिनका पता औरों को चलता है, खर्राटा भरने वालों को नहीं ।
खाइयाँ
जीने का उसूल
खाइयों को देखकर घबराइये मत । उन्हें देखकर सम्हलिए और प्रगति की चढ़ाइयाँ पार कीजिए ।
खानपान
खाएँ कम, पचाएँ ज्यादा ।
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जीने का उसूल खिलावट
हम समस्याओं के काँटों को उगने से तो नहीं रोक सकते, पर उनसे बेहतर नजरिया और सकारात्मक सोच को अपनाकर फूलों की तरह खिले हुए तो रह ही सकते हैं।
खेल
खेल को खेल की भावना से खेलें। आखिर एक ही जीत सकता है, दोनों नहीं।
खोज
जो साधारण में भी असाधारण को खोज निकाले, उसकी खोज महान् है।
गंगोदक
नाले का पानी गंगा में मिल जाए तो वह भी ‘गंगोदक' बन जाता है।
गतिशील
कठिनाइयों के बावजूद हम लक्ष्य की ओर गतिशील रहें।
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जीने का उसूल रास्ते की बाधाओं को देखकर हृदय को दुर्बल बना बैठना अन्तर्मन की नपुंसकता है।
गमला-क्यारी
हम गमला नहीं, क्यारी बनें, जो अपने लिए नहीं अपितु सबके लिए जिये।
गलती
जो बीती गलतियों से सीख नहीं लेते, उन्हें उनका खामियाजा दुबारा भुगतना पड़ता है।
गलती-उपचार
गलती वह घाव है जिसका उपचार किये बिना चैन नहीं मिलता।
गलती-स्वीकार
गलती को स्वीकारना नई गलती से बचने का रास्ता है।
गाली
गाली लड़ाई की शुरूआत है। इसे तब तक मत निकालिए जब तक आप शान्ति चाहते हैं।
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जीने का उसूल गिरावट
पैसे का इतना प्रभाव है कि त्याग और ईमान की प्रेरणा देने वाले लोग खुद पैसे के लिए बिक जाया करते हैं।
गुण-प्रशंसा
गुणों की प्रशंसा करने वालों को अपमान की शूली पर नहीं चढ़ना पड़ता।
गुणवत्ता
हमारे लिए व्यक्ति की गुणवत्ता का मूल्य हो, उसके रंग-रूप का नहीं।
गुण-शक्ति
अन्तर्मन में गुणों का जितना मनन होगा, स्वयं की गुणात्मक शक्ति उतनी ही बढ़ेगी।
वह गुरु महान् है, जिसके अन्तर्मन में किसी को शिष्य बनाने की भूख मिट चुकी है।
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गुलाम
गुस्सा
गुलाम वह नहीं है जो बाजार से खरीदा गया हो । गुलाम वह है जो दुर्बलता और बुरी आदतों का शिकार हो ।
सावधान! दो मिनट का गुस्सा जीवनभर की मित्रता को नष्ट कर सकता है।
गृह- मर्यादा
घर के लिए मर्यादा और पवित्रता उतनी ही आवश्यक है, जितनी किसी मंदिर के लिए आवश्यक होती है।
गृहस्थ
जीने का उसूल
गृहस्थ वह नहीं है, जो घर में रहता है। गृहस्थ वह है, जिसके मन में घर रहता है ।
गृहस्थ-साधु
गृहस्थ का पाँव टिका रहता है, मन नहीं । साधु का मन स्थिर रहता है, पाँव नहीं ।
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जीने का उसूल गौ-सेवा
घर
गायों को घास खिलाना अहिंसा और दया को जीने का
सरलतम उपाय है।
घर-परिवार
घर मनुष्य का मंदिर है । उसे सदा स्वच्छ और निर्मल रखें।
चंदा
घृणा और प्रेम
हम घर-परिवार की व्यवस्थाओं तक ही सीमित न रहें । सारी धरती हमारा घर है । हम सारे संसार के होकर जीएँ ।
दूसरों से घृणा करने वाले उनका प्रेम नहीं पा सकते।
घोंसला
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घोंसलों के बिखर जाने से तिनकों का अस्तित्व नहीं मिटता ।
समाज में खड़े होकर चंदा देने से पहले अपने भाई या पड़ोसी को सम्बल दीजिए। आपकी उदारता का पहला अधिकारी
वही है।
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३०
जीने का उसूल
चट्टान
चट्टान रास्ते की रुकावट नहीं, वरन् पार किए जाने वाले रास्ते की कसौटी होती है।
चरण-स्पर्श
भगवान् के चरणों का स्पर्श मिलता हो, तो योगीजन मुक्ति को भी ठुकरा देंगे।
चरित्र
चरित्र-रहित जीवन मृत है, चरित्र जीवन का अमृत है।
चरैवेति
पंख के अभाव में हम पक्षी की तरह आकाश में तो नहीं उड़ सकते, लेकिन अपने पाँवों से चलकर शिखर की ऊँचाइयों को तो छू ही सकते हैं।
चिकनी-चुपड़ी
चिकनी-चुपड़ी बातें सुनने में अच्छी लगती हैं, पर प्रभाव तो उन बातों का पड़ता है, जो भीतर की गहराई से नि:सृत होती हैं।
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जीने का उसूल चिनगारी
स्वयं को दीन-हीन मत समझो। चिनगारी यदि बम को छू जाए, तो बड़ी से बड़ी चट्टान को भी ध्वस्त कर सकती है।
चिन्ता
चिन्ता किस तरह व्यक्ति के स्वास्थ्य, सुख और सफलता का हनन करती है, यह तो वही जानता है जिसके सिर पर वह पड़ी है।
चिन्ता-मुक्ति
हर हाल में मस्त रहने की आदत डालिए, चिन्ता का धुंआ आपको छू न पाएगा।
चुप्पी
मुसीबतों में सबसे बड़ा सहारा है चुप्पी।
चेहरा
मुस्कराता चेहरा स्वयं की सबसे बेहतरीन प्रस्तुति है।
चेहरा और भाव
चेहरा प्रकृति की देन है, पर चेहरे को भाव कैसा देना-यह आप पर निर्भर है।
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३२
जीने का उसूल जन्म-सार्थकता
जन्म तो गाँधी जैसों का ही सार्थक माना जाएगा, हिटलर जैसों का नहीं।
जबान
जबान को ताले की नहीं, लगाम की जरूरत है।
जवाब
क्रोधी को जवाब क्रोध से नहीं, पहले मौन से और फिर माधुर्य से दीजिए।
जाँच-परख
जाँचे-परखे बिना यह कहना कठिन है कि किस इंसान में कितना दम है और किस हीरे में कितना पानी।
जीवन
जीवन ईश्वरीय देन हो या मात्र संयोग, वह हमारा सृजन न होकर किसी अन्य' का पुरस्कार है।
जीवन-अर्पण
हमारा जीवन भगवान को समर्पित अर्घ्य रहे, जिस ओर दृष्टि उठे, उसी की मूरत दिखाई दे।
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जीने का उसूल जीवन-उत्सव
जीवन को उत्सव मानकर जिएँ, भले ही हमें मुसीबतों का भी सामना क्यों न करना पड़े।
जीवन-दर्पण
जीवन दर्पण की तरह है। यह हमें उससे अधिक प्रतिबिम्बित नहीं कर सकता, जितने हम हैं।
जीवन-दृष्टि
गधे की तरह दस हजार वर्ष जीने के बजाय चौबीस घंटे का सिंह-जीवन अधिक गौरवपूर्ण है।
जीवन-मूल्य
जीवन का सदा उपयोग करते रहिए। यह संसार की सर्वाधिक मूल्यवान वस्तु है।
जीवन-स्वास्थ्य
स्वास्थ्य ही जीवन का सबसे ऊँचा धन है जबकि जीवन शरीर तथा आत्मा का स्वस्थ संतुलन है।
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जीने का उसूल
ज्ञान
ज्ञान यदि धन है, तो अपने आप से पूछिए कि आप कितने धनवान हैं।
ज्ञानार्जन
यदि तुम विद्यार्थी हो, तो रात को देर से सोने की आदत से छुटकारा पाओ और सुबह जल्दी उठकर ज्ञानार्जन करो।
ज्ञानी
व्यक्ति एक वर्ष में करोड़पति बन सकता है, किन्तु ज्ञानी होने के लिए खुद को तपाना पड़ता है।
ज्ञानी विशेष
ज्ञानी वह नहीं है, जिसने शताधिक पुस्तकें लिखी हैं, वरन् ज्ञानी वह है, जिसने अपने सत्य को पहचाना है।
झिझक
झिझक वह परदा है जो सच्चाई को व्यक्त नहीं होने देता।
झुकना
गागर यदि सागर में झुकने को तैयार हो जाए, तो सागर स्वत: गागर में समाने को तत्पर हो जाता है।
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जीने का उसूल
टकराहट
टिप्पणी
डर
ढोंगी
ताली दो हाथों के टकराने से ही बजती है। आप कृपया
दूसरा हाथ न बनें।
ढहना
विचार पर टिप्पणी करना चिन्तन है, किन्तु व्यक्ति पर की जाने वाली टिप्पणी निन्दा - दोष का भागी बनना है।
३५
किसी के नाराज होने के डर से सच्चाई पर पर्दा नहीं डाला जाना चाहिए ।
जिस महल के निर्माण में दस वर्ष लगे, उसे ढहते दस मिनट भी नहीं लगते ।
Gift व्यक्ति के प्रति श्रद्धा नहीं रखनी चाहिए, फिर चाहे वह हमारा गुरु भी क्यों न रहा हो ।
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जीने का उसूल तटस्थ
जीवन में ह्रास हो या विकास, तटस्थ व्यक्ति अष्टमी के चन्द्रमा के समान सदा एक-सा रहता है।
तनाव
तनाव आग की तरह है। उसे समय रहते बुझा दीजिए अन्यथा वह फैलती चली जाएगी।
तनाव-मुक्ति
तनाव-मुक्ति के लिए खुली हवा में जाइये। प्रेशर कूकर की तरह जोर का ठहाका लगाइये और तनावमुक्त हो जाइये।
तरकीब
भीतर की आँख खोलने के लिए औजार की नहीं, तरकीब की जरूरत है।
तरीका
तरीका मालूम हो तो नरक को भी स्वर्ग बनाया जा सकता है।
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३७
जीने का उसूल तारीफ़
बदनाम की तारीफ़ बदनामी दिलाती है, प्रशंसित की प्रशंसा सम्मान दिलाती है।
तिरस्कार
अतीत का तिरस्कार करने की बजाय वर्तमान के लिए उन संदर्भो को स्वीकार करें जो आज भी उपयोगी हैं।
तिलांजलि
पिता को जब पुत्र ही छोड़ देते हैं, तो गुरु को शिष्य छोड़ें, इसमें आश्चर्य की क्या बात है!
तृष्णा
अंग गल गए, दाँत गिर गए, कमर झुक गई, फिर भी तृष्णा कहाँ मरी?
तृष्णा-विस्तार
तृष्णा बढ़ रही है, पर खेद है कि उमरिया घट रही है।
तेजस्वी
ऊपर से शांत और गंभीर दिखाई देने वाले लोग भीतर से अधिक तेज हुआ करते हैं।
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३८
जीने का उसूल
त्याग
त्याग वस्तुओं का नहीं, मन के विकारों का कीजिए। मन के विकारों का त्याग ही सच्चा त्याग है। बाकी सब त्याग के नाम पर ली जाने वाली सांत्वना है।
त्याग-उपलब्धि
त्याग से उपलब्धि भले ही न हो, पर त्याग होने पर उपलब्धि की कामना नहीं रहती।
त्रिवेणी
चन्द्रमा की शीतलता, पुष्प का सौरभ और नारी का हृदय ऐसी त्रिवेणी है जिससे मनुष्य को सदा सकून मिलता है।
दगा
जब मालिक ही दगा देने पर उतारू हो जाए, तो फिर अपना कौन होगा?
दक्षिणा
समर्पित शिष्य ही एकलव्य की तरह अंगूठा दे सकते हैं, शेष तो अंगूठा ही दिखाते हैं।
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जीने का उसूल दमन
आँसुओं को रोकना मुस्कराहट का दमन है।
दया
दया के दूध से प्रेम का पानी बेहतर है।
किसी के लिए दिल में दर्द होना, उसके प्रिय होने की सूचना है।
दवा
हकीम से दवा नीरोग होने के लिए ली जाती है, रखने के लिए नहीं।
दान
पहले दान देने वाले बहुत थे, लेने वाले कम। अब लेने वाले बहुत हैं, देने वाले विरले।
दान और आनन्द
जिसे दान करने में आनन्द आता है, उसे घाटा नहीं उठाना पड़ता।
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जीने का उसूल दान और सहयोग
हम दान की नहीं, सहयोग की भाषा सीखें। भिखारी को दी गई चीज दान है, पर भाई की जरूरतों को पूरा करना सहयोग है।
दान-फल
दान से स्वर्ग नहीं मिलता। दान स्वयं ही स्वर्ग है।
दायित्व
सारा संसार हमारा घर हो, हमारा प्रेम सारे घर को मिलेयही हमारा दायित्व है।
दार्शनिक
दिन में लालटेन दिखाने वाले सनकी नहीं अपितु रहस्यद्रष्टा दार्शनिक होते हैं।
दिन
जिस मन:स्थिति के साथ दिन की शुरूआत करेंगे, दिन वैसा ही बीतेगा।
दिवस-सार्थकता
दिन की शुभ शुरूआत चाहते हो, तो सुबह जल्दी उठो।
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४१
जीने का उसूल दिशा
हम आकाश को भले ही न छू पाएँ, किन्तु उसके सितारों के आलोक में अपनी दिशा तो ढूँढ ही सकते हैं।
दुआ
जहाँ दवा असफल हो जाती है, वहाँ दुआ ही आशा की किरण बनती है।
दुल्हन-दूल्हा
दूल्हा-दुल्हन मिलने के बाद बारातियों की परवाह कौन करता है?
दुःख-मुक्ति
दुःख से मुक्त रहना चाहते हो, तो स्वयं को सदा व्यस्त
रखो।
दुश्चरित्र
व्यक्ति या समाज स्वयं चाहे जैसा हो, पर सार्वजनिक जीवन से जुड़े हुए व्यक्ति पर दुश्चरित्र की छाया भी वह सहन नहीं कर सकता।
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४२
दुष्कर
दुष्परिणाम
दूरी
दृष्टि
दृष्टि
दुनिया का सबसे कठिन काम किसी के स्वभाव को
बदलना है ।
दुःखद परिणामों से बचने के लिए क्रूर और अपवित्र विचारों से परहेज़ रखिए।
जीने का उसूल
दूरी से प्रेम की पीड़ा उभरती है और स्मृतियों से निकटता की अनुभूति होती है।
परख की दृष्टि न हो तो मोतियों का क्या मूल्य होगा ?
पाँव भले ही कीचड़ में हों, किन्तु दृष्टि सदैव कमल की तरह आकाश की ओर खुली रखिए।
दृष्टि - परिवर्तन
अपनी दृष्टि बदलिए, दिशा अपने आप बदल जाती है।
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जीने का उसूल देव और मनुष्य
देवता बनने का सपना देखने वाला व्यक्ति यदि सही मनुष्य भी बना रह जाये, तो बहुत है।
द्वेष की आग चेतना की चादर को भी झुलसा देती है।
धन
धन बहुत कुछ है, पर सब कुछ नहीं है।
धन्य
वे धन्य हैं, जो पंथ की बजाय कर्त्तव्य और ईमान के लिए अपने आप को समर्पित करते हैं।
धब्बा
चाँद सुदी का हो या बदी का, उसमें काले धब्बे तो दिखाई देंगे ही।
धर्म
धर्म पहले चरण में कर्तव्य, दूसरे चरण में नैतिकता और तीसरे चरण में आत्मिक जीवन की उन्नति है।
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ول
जीने का उसूल धर्म-कर्म
सांसारिक का सारा धर्म-कर्म भौतिक सुखों की प्राप्ति के लिए है, मुक्ति के लिए नहीं।
धर्म-ध्यान
तन का समर्पण धर्म है और मन का समर्पण ध्यान।
धर्म-निरपेक्ष
भारत वह देश है, जहाँ विभिन्न धर्मों के पूजा-स्थल एक दूसरे से कंधा मिलाए खड़े रह सकते हैं।
धर्म-पतन
दुनिया में जितने युद्ध और आतंक धर्म के नाम पर हुए हैं, उतने किसी अन्य कारण से नहीं।
धर्म-भय
धर्म को खतरा उन अंधविश्वासों से है, जो धर्म का बुरका ओढ़ लेते हैं।
धर्म-विभाजन
जब धर्म किन्हीं पंथों और समुदायों में बँट जाता है, तो उसके प्रवर्तक की आत्मा उसमें आरोपित तो हो सकती है, पर व्याप्त नहीं।
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जीने का उसूल धर्म-शिक्षा
धर्म के आचरण का पाठ उन्हें पढ़ाएँ, जो स्वस्थ विचारों के अनुगामी हैं।
धर्म-स्वरूप
जो धर्म धरती की बजाय परलोक को सुधारने पर बल देता है, वह परलोकवासियों के लिए ही होता है।
धैर्य
क्रोध को जवाब की नहीं, धैर्य की जरूरत है।
ध्यान
बाहर की आँख खोलना जाग है, भीतर की आँख खोलना ध्यान है।
नग्नता
स्नानघर में कोई भले ही नग्न हो, पर समाज के बीच में तो नग्नता आलोचना का ही विषय बनेगी।
नज़रिया
साफ नज़रों से जो चाँद रोशनी भरा दिखाई देता है, वही काला चश्मा पहने जाने पर काला ही नजर आने लगता है।
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जीने का उसूल
नज़ारा
शिखर पर चढ़ने में श्रम तो अवश्य होगा, परन्तु सही नजारा तो वहीं से नजर आएगा।
नमन
अब तक नमन औरों को किया, अब एक नमन अपने आपको कीजिए। आप ईश्वरीय शक्ति से जुड़ जाएँगे।
नरक-स्वर्ग
नरक तो आलसी और अशान्त लोगों के लिए है। उद्यमी पुरुष यदि नरक में भी चला जाए, तो वहाँ भी वह स्वर्ग बना लेगा।
नाता
सदा मैं ही तुम्हारी पहचान क्यों हूँ ? एक बार तुम्ही बता दो कि मैं तुम्हारे क्या लगता हूँ?
नामगिरी
नाम की भूख वह लू है, जिससे सिद्धि का फूल मुरझा जाता है।
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जीने का उसूल नारी
नारी को नकारा चीज समझकर उसके साथ अभद्र व्यवहार करना मनुष्य का पिछड़ापन है।
नारी-आकर्षण
नारी के पास उसका शरीर वह आकर्षण है, जिसके सामने वह हर आकर्षण को निस्तेज कर देती है।
नारी और स्वर्ग
नारी! तुम प्रेम, त्याग और सौहार्द की वह प्रतिमूर्ति बनो कि ___ तुम जहाँ भी रहो, तुम्हारे पति को वहीं स्वर्ग नजर आए।
नारी-धर्म
नारी को मानवता की सेवा करनी चाहिए। सेवा ऐसी हो, जिसमें प्रेम, दया और क्षमा की आभा हो।
नारी-प्रेम
नारी प्रेम की प्यासी है, स्वामित्व की नहीं। यदि उसे प्रेम का स्पर्श मिलता रहे, तो वह सौ मुसीबतों को भी झेल जाएगी।
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जीने का उसूल
नारी-मातृत्व
हर नारी से माँ की ममता पायी जा सकती है, बशर्ते हमारे भीतर पुत्र होने की भावना हो।
नारी-शोषण
नारी यदि नारी का शोषण करना बंद कर दे, तो नारी अकेले अपने बल पर विश्व का मानचित्र बदल सकती है।
निजानन्द
सभी रस, सरस हैं, पर निजानन्द के सामने सारे रस नीरस हैं।
निन्दा-प्रशंसा
पीठ पर लाठी मारने वाले अक्सर मुँह पर तारीफ़ करते हैं।
निन्दा-प्रशंसा
दूसरों की निन्दा या प्रशंसा करने वाले एक अंगुली दूसरों की तरफ़ करते हैं और तीन अंगुली अपनी तरफ़। फ़र्क केवल इतना ही है कि एक में तीन गुना नुकसान है और दूसरे में तीन गुना फायदा है। जरा सोचिए, हम फायदे वाला काम करेंगे या घाटे वाला?
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४९
जीने का उसूल निन्दा-रस
औरों की बातों में वे लोग रस लेते हैं, जिनके स्वयं के जीवन में रस नहीं होता।
निभाना
एक-दूसरे को निभाते रहने की बजाय एक-दूसरे को जीना शुरू करें।
निःस्वार्थ सेवा
आशीर्वाद तब तक नहीं मिलता, जब तक यह पता न चले कि यह नि:स्वार्थ सेवा कर रहा है।
नियति
जहाँ बुद्धि और पुरुषार्थ दोनों पराजित हो जाते हैं, वहाँ नियति की रेखा ही सहारा बनती है।
नियम-विज्ञान
हम परम्परा और नियमों को वैज्ञानिकता के साथ स्वीकारें, अंध आदेश के रूप में नहीं।
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५०
निर्णय
निर्णय-मूल्यांकन
अपने द्वारा लिये गए निर्णय को भी धैर्यपूर्वक अमल में
लाएँ ।
निर्भय चेतना
यह जरूरी नहीं कि हमारा हर निर्णय सही हो । लिये गए निर्णय के परिणामों का पहले मूल्यांकन कर लीजिए ।
जब, जैसे, जहाँ जीवन का समापन होना है, तब, वैसे, वहाँ समापन होगा ही । फिर भय कैसा ? हम निर्भय चेतना के स्वामी हों।
निर्मल जीवन
जीने का उसूल
निस्तेज
ओ मेरे प्रभु! मेरा जीवन कोरे कागज की तरह हो, ताकि उस पर जो तुम लिखना चाहो, साफ-स्वच्छ लिख सको।
निर्मल प्रेम
निर्मल प्रेम वृन्दावन की सैर है, विकृत प्रेम शूर्पणखा की नकटाई |
उसकी बात नहीं चलती, जो अक्खड़ भी हो और फक्कड़ भी ।
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जीने का उसूल नींव
भवन उन्हीं पत्थरों के बल खड़ा होता है, जो नींव में शहीद होते हैं।
नेकी
दूसरों की नेकी का सम्मान करना नेकी को जीने का पहला मंत्र है।
नैवेद्य
तुम्हारे चरणों में मैं अपने गर्व का नैवेद्य चढ़ाता हूँ। हे प्रभु! तुम इसे अपनी विनम्रता में समाहित कर लो।
पंडित और प्रज्ञावान
पंडित बनना है तो किताबें पढ़ो, प्रज्ञावान बनना है तो तत्त्वचिंतन करो।
पछताना
गलती का अहसास होने पर पछताना आम बात है। आप पहले से ही जागरूकता रखिए ताकि न तो गलती हो और न पछताना पड़े।
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जीने का उसूल पड़ाव-मंज़िल
पड़ाव को मंज़िल मान लेने वाले लोग सौ के चक्कर में लाख को खो बैठते हैं।
पठन-लेखन
चिन्तन का पथ खुलने के बाद पुस्तकें पढ़ी नहीं, लिखी जाती हैं।
पढ़ाई
पढ़ना यूरोपियन लोगों से सीखें, जो बिना यात्रा के पढ़ाई अधूरी मानते हैं।
पतंग
आकाश में उड़ती हुई पतंग का दोस्त कोई नहीं होता।
पतन
विकृत विचार और दुष्कृत आचरण स्वयं की आध्यात्मिक
मृत्यु है।
जो पति प्रेम न दे, उसका होना न-होने के बराबर है।
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w
जीने का उसूल पतित
पतित वे नहीं हैं, जो गढ्ढे में गिरे पड़े हैं, वरन् वे हैं जो शिखर के समीप पहुँच कर भी फिसल जाते हैं।
पति-पत्नी
पत्नी की उपेक्षा करने वाले पति, तब पत्नी के आश्रित हो जाते हैं, जब प्रकृति उन्हें लाचार बना देती है।
पत्नी
पत्नी का अर्थ वासना की आपूर्ति नहीं, जीवन के सुखदु:ख की सहचारिता है।
पत्नी और विधवा
नारी का विधवा होना दुर्भाग्य है, पर दसों का घर उजाड़ने वाले पति की पत्नी होने से विधवा होना बेहतर है।
पत्नी-वियोग
पत्नी के चले जाने के बाद पति स्टेशन पर खड़ा मुसाफिर है, जिसकी गाड़ी छूट गयी और हाथ में स्मृति लिए सिर्फ एक टिकट रह गया।
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जीने का उसूल
पत्रकार
पत्रकार जिधर चाहे, जनभावना को उधर ही ले जा सकता
पत्रोत्तर
आक्षेप और आक्रोश भरे पत्रों का उत्तर सात दिन बाद दीजिए। हाथों हाथ दिया गया उत्तर वैसा ही होगा, जैसा आपके पास पत्र आया है।
परख
पारखियों के लिए कंकड़ों में भी हीरों के हस्ताक्षर हो सकते
हैं।
पर-दोष
दूसरों के दोषों को देखने वाला स्वयं दोषी है। दोष अपने देखिए और उन्हें सुधारिये।
पर-पीड़ा
पड़ौसी के घर में आग लगाने वाला व्यक्ति स्वयं अपने घर में सुरक्षित नहीं रह सकता।
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जीने का उसूल
परवाह-लापरवाह
जो झाड़ के हर तिनके के प्रति सावचेत रहते हैं, वे अपने क्षण-क्षण बीत रहे जीवन और समय के प्रति लापरवाह क्यों हो जाते हैं?
परम्परा
परम्परा के अनुपालन से पहले उसे सत्य और ज्ञान की कसौटी पर परख लेना अधिक बेहतर है।
परम्परा-निर्माण
हम केवल परम्परा का निर्वहन ही न करते रहें बल्कि परम्परा का भी निर्माण करें।
नई
परम्परा-प्रतिकार
परम्पराओं को स्वीकार करने का यह अर्थ नहीं है कि जो अनुचित है, उसका प्रतिकार न किया जाए।
परम्परा-विद्रोह
अंध परम्पराओं के प्रति विद्रोह करने में सहना तो बहुत कुछ पड़ता है, पर विद्रोह सफल होने पर परम्परा में स्वत: ही परिवर्तन हो जाता है।
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५६
पराजय-विजय
परामर्श
1
जिसे लगता है कि वह हार सकता है, वह निश्चय ही पराजित होगा। जिसे विश्वास है कि वह जीतेगा, तो निश्चय ही वह विजेता होगा । कमजोर मन ही पराजय का कारण है, जब कि सुदृढ़ मन ही सफलता का द्वार खोलता है ।
परिपक्वता
पर्व
किसी से परामर्श न लें, अगर लें तो उसका पालन करें।
परिवर्तन
जीने का उसूल
ज्यों-ज्यों परिपक्वता आती है, कठिनाइयाँ कम होती जाती हैं।
आईनों को बदलने से चेहरा नहीं बदलता, चेहरे को बदलने से आईना खुद बदल जाता है।
1
पर्व गरीबों को सुख देता है, अमीरों के लिए तो हर दिन पर्व
है।
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जीने का उसूल
.
५
पल्लवन
झड़ चुके पत्तों के लिए शोक करने की बजाय नए पल्लवन के लिए प्रयत्नशील बनो।
पहचान
जो स्वयं को नहीं जानता, उसे दूसरों की संभावनाओं की पहचान नहीं हो सकती।
पहल
हम बुराई का विरोध करने की बजाय अच्छाई की पहल करें। ज्यों-ज्यों अच्छाई के फूल खिलेंगे, बुराई के काँटे स्वत: ही पीछे छूट जाएँगे।
परिवार
परिवार के पेड़ को इस तरह सींचें कि एक भी डाली सूखने न पाए।
पाप-पुण्य
पाप की नींव पर पुण्य के महल खड़े नहीं किये जा सकते।
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५८
जीने का उसूल पाप-पुण्य
कल के पापों पर इतना ध्यान मत दो कि आज के पुण्य बाधित हो जाएँ।
पारदर्शिता
संत का जीवन ऐसा पारदर्शी हो, जिसमें जो चाहे, झाँक सके।
पारस
पत्थर हर कोई हो सकता है, पर पारस वही है जो लोहे को सोना बना दे।
पारस्परिक प्रेम
आपस में प्रेम हो तो कुटिया भी सुख देती है, वरना महल भी किसी काम का नहीं।
पिछड़ना
दौड़ में पिछड़ गए हो, तो चिन्ता नहीं आत्मविश्वास के गहरे साँस लो और दौड़ने के लिए फिर कदम बढ़ा दो।
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जीने का उसूल पितृ-कामना
हर पिता हमेशा एक ही कामना करे कि उसके खून में कभी बँटवारा न हो।
पितृ-दायित्व
तुम एक ऐसे पिता बनो कि अपनी सन्तति को सम्पत्ति ही नहीं बल्कि अच्छे संस्कार भी दे जाओ।
पीहर
पत्नी पति की लात सह सकती है, पर पीहर की बात नहीं।
पुरुष और स्त्री
क्या आपको पता है कि पुरुष के मन में हर समय क्या रहता है? उत्तर है-‘एक सुन्दर स्त्री'।
पुत्री-जन्म
जो अपने घर में लड़की का जन्म नहीं होने देते, वे अपने घर में बहू लाने से वंचित रह सकते हैं।
पुण्य
पुण्य भले ही पुत्र के हों, पिता तो उस पर अपनी ही मुहर लगाना चाहेगा।
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जीने का उसूल पुत्र-विद्रोह
पुत्र पिता से उस समय विद्रोह कर बैठता है, जब माँ के प्रति पिता की भूमिका संदिग्ध हो जाती है।
पुरुषार्थ
जिनकी हस्तरेखाओं का निर्माण पुरुषार्थ करता है, उन्हें दुर्दिन नहीं देखने पड़ते।
पुरुषार्थ-सिद्धि
केवल पुरुषार्थ से ही सिद्धि प्राप्त हो जाती, तो सभी मजदूर मिल-मालिक हो जाते।
पूज्य
बुरे काम करने वाले कभी पूज्य नहीं होते। पूज्य वे होते हैं जो छोटों के लिए उज्ज्वल आदर्श पेश किया करते हैं।
पैसा
पैसे को इतना भी मूल्य मत दीजिए कि अपनी सुख-शान्ति गिरवी रख बैठे।
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जीने का उसूल
पौरुष
प्यार
प्यास
बिना बुद्धि के पौरुष लोहे का हथौड़ा है।
'प्यार' को जीवन में जितनी जगह मिलेगी जीवन उतना ही
सदाबहार बनेगा ।
प्रकाश
पानी की धन्यता इसी में है कि वह किसी प्यासे की प्यास
बुझाए।
प्रकाश
तुम भीतर की खिड़कियाँ भर खोलो, प्रकाश स्वयं तुम तक चला आएगा।
प्रकाश दीपक का हो, जुगनू का नहीं ।
प्रकाश और अंधकार
६१
"
तुम जीवन में प्रकाश का प्रबन्ध करो, अंधकार स्वत: ही दूर
हो जाएगा।
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६२
जीने का उसूल प्रकाशित
स्वयं जले बिना औरों को रोशनी नहीं दी जा सकती।
प्रकृति
मनुष्य प्रकृति का निर्माता नहीं, सहचर है। प्रकृति परमात्मा की पर्याय है।
प्रकृति-प्रबन्ध
प्रकृति सारे द्वार एक साथ बन्द नहीं करती। यदि एक बन्द हो भी जाये, तो दूसरा खुल भी जाता है।
प्रज्वलन
तीली पहले खुद जलती है, फिर औरों को जलाती है।
प्रणाम
नाम वालों को तो सभी राम-राम कहते हैं। विनम्र वह है जो अनाम को भी प्रणाम करता है।
प्रतिकार
गलत का प्रतिकार करना सत्य की सुरक्षा है।
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६३
जीने का उसूल प्रतिक्रिया
प्रतिक्रियाशील होना औरों के हाथ का खिलौना बन जाना है।
प्रतिज्ञा
दूसरे को दिया जाने वाला आश्वासन तभी पूरा होता है, जब हम उसे वचन और प्रतिज्ञा मानें।
प्रतिभा
किसी की प्रतिभा को उजागर करने में सहयोग न दे सकें, तो कम-से-कम अपने निहित स्वार्थ के लिए उसका गला न घोंटें।
प्रतिभा
प्रभुता के पास है।
अपनी संप्रभुता के चलते किसी की प्रतिभा को कुचल देना अन्याय और अराजकता है।
प्रतिस्पर्धा
प्रतिस्पर्धा पागलपन है। आज तुम किसी और को पछाड़ रहे हो तो वहीं कल तुम किसी और से पिछड़ सकते हो।
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O
जीने का उसूल प्रतिहिंसा
हिंसा की प्रतिक्रिया प्रतिहिंसा है और प्रतिहिंसा की प्रतिक्रिया हिंसा का भयावह विस्फोट।
प्रत्युत्तर
तिरस्कार का उत्तर चुप्पी से देना अपने आत्म-सम्मान को सुरक्षित रखना है।
प्रथम वेदना
जीवन की पहली वेदना माँ ने झेली है, जिससे प्यार का पौधा तरुवर बनता है।
प्रबन्धन
स्वयं का प्रबन्धन करना जीवन की बहुत बड़ी चुनौती है। क्या आप यह चुनौती स्वीकार करेंगे?
प्रयत्न
सफलता के लिए प्रयत्नों के बावजूद असफलता हाथ लग सकती है, किन्तु प्रयत्न न करना सबसे बड़ी असफलता है।
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जीने का उसूल प्रवृत्ति और प्रकृति
प्रवृत्ति में परिवर्तन लाया जा सकता है, पर प्रकृति को बदलना दुष्कर कार्य है।
प्रशंसा
जो तुम्हारी निंदा करे, तुम उसकी प्रशंसा करो। आज नहीं तो कल वह तुम्हारा हो जायेगा।
प्रशंसातिरेक
उससे सावधान रहिए, जो आपके मुँह पर आपकी प्रशंसा के
पुल बांधे।
प्रशंसा-विवेक
किसी के मुँह से अपनी बड़ाई सुनकर खुद को अच्छा मान लेना अच्छी बात नहीं है।
प्रशासन
प्रशासन ऐसा हो, जो सबको शान्ति और सुरक्षा देने में सहकारी बन सके।
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६६
प्रश्न- उत्तर
जीवन के उत्तर तब तक नहीं मिलते, जब तक प्रश्न गहराई तक न उतरें ।
प्रसन्नता
अपने घर में प्रसन्नता का ऐसा वृक्ष लगाएँ जिसकी हरियाली की छाया और फलों का स्वाद पड़ौसी के घर तक जाए ।
प्रसन्नता- दुष्टता
दुष्ट मनुष्य की प्रसन्नता दूसरों की उदासी पर पल्लवित होती है ।
प्रसिद्धि
जीने का उसूल
जो प्रसिद्धि में पड़ गया, वह सिद्धि से वंचित रह गया ।
प्रसिद्धि-अर्जन
प्रसिद्धि कमाने के लिए अध्यात्म का उपयोग करना कोयले के लिए चन्दन - वृक्ष को जलाना है।
प्रस्थान
जो रवाना हो चुका है, वह कहीं न कहीं तो जरूर पहुँचेगा ।
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जीने का उसूल प्रायश्चित
भूलों का प्रायश्चित हो जाए, तो काँटों से भी फूलों को सँवारा जा सकता है।
प्रार्थना
प्रार्थना की लौ इतनी निष्कम्प हो कि कोई भी बाधा उसे बुझा न सके। सच्चे हृदय से की गई प्रार्थना अवश्य पूरी होती है।
प्रार्थना
मेरे प्रभु, मुझे ऐसा वर दे कि मेरे समस्त कर्म तुझे समर्पित रहें और मेरा सभी कुछ तुझे प्रतिबिम्बित करे।
प्रार्थना और कृतज्ञता
प्रार्थना, जो कुछ प्राप्त हुआ है, उसके लिए कृतज्ञता है और जो प्राप्त नहीं हुआ है, उसके लिए पुकार है।
प्रार्थना-परिणति
प्रार्थना से मन की शान्ति और हृदय की निर्मलता उपलब्ध होती है।
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जीने का उसूल प्रार्थना-फल
प्रार्थना का फल प्रेम है, प्रेम का फल सेवा है और सेवा का फल परमात्मा है।
प्रेम
जहाँ सारे शस्त्र असफल हो जाते हैं, वहाँ प्रेम विजय दिला देता है।
प्रेम को सार्वजनिक रखिए, नहीं तो वह पाप बन जाएगा।
प्रेम और प्रवंचना
प्रेम पुण्य है, प्रवंचना पाप।
प्रेम और स्वर्ग
जब तक धरती पर प्रेम का एक भी अंश है, स्वर्ग की सम्भावना बनी रहेगी।
प्रेम और वासना
वासना की आग जब शान्त हो जाती है, तो पारस्परिक लगाव कम हो जाता है।
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जीने का उसूल
प्रेमदान
हमारा प्रेम उन्हें मिले, जो अब तक प्रेम के सुख से वंचित
रहे हैं।
प्रेम-पीड़ा
प्रेम मन को बहलाने की क्रीड़ा नहीं, हृदय को हिला देने वाली पीड़ा है।
प्रेम-प्रगाढ़ता
प्रेम जब अपनी प्रगाढ़ता में मौन हो जाता है तब वह बोलता नहीं है, वरन् करीबी को ही सुख का द्वार मानता है
1
प्रेम-व्यवहार
यदि बड़े और छोटे, दोनों ही प्रेम और सम्मान को महत्त्व दें, तो दोनों के बीच मर्यादा की गरिमा बनी रहेगी ।
प्रेम - शून्य
६९
प्रेम-शून्य जीवन बिना फूलों का उपवन है।
प्रेम-सम्बन्ध
जिन दिलों के बीच प्रेम का रिश्ता है, स्वर्ग का फूल वहीं
खिलता है।
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७०
प्रेम - हृदय
पवित्र प्रेम है जहाँ, सच्चा स्वर्ग है वहाँ ।
प्रेमोपहार
प्रेम और माधुर्य से बढ़कर उपहार क्या ?
प्रेरणा
जब महावीर और मुहम्मद, नोबल और नेल्सन महान हो सकते हैं, तो हम क्यों नहीं ? आखिर वे भी तो धरती के ही लोग थे ।
प्रेरणा-सूत्र
हम कर्मकांड की बजाय अध्यात्म-प्रधान जीवन जिएँ, भूतभविष्य की बजाय वर्तमान का चिन्तन करें, अंधविश्वास परम्परा-चुस्त
की बजाय विज्ञान पर ध्यान केन्द्रित करें, की बजाय इतिहास समझें और प्रेरणा लें ।
बचपन
जीने का उसूल
कोई कितना भी अच्छा वक्ता क्यों न हो, बचपन में तो
तुतलाता ही है।
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जीने का उसूल
बड़ा
बड़ा वह है, जो औरों को बड़ा माने।
बड़ा-छोटा
बड़े को पाकर छोटे की उपेक्षा नहीं करनी चाहिए। आखिर सुई की जगह सुई ही काम आएगी, तलवार नहीं।
बदनामी
तुम जितने छिपकर बदनामी के काम करोगे, रहस्य खुल जाने पर तुम्हारी इज्जत उतनी ही अपमानित होगी।
बन्धन
संसार में रहना बंधन नहीं, संसार को भीतर रखना बंधन है।
बन्धन और मुक्ति
तुम बन्धन में तभी हो, जब उसे बंधन मानो। तुम बन्धन में इसलिए हो कि तुमने खुद बँधना चाहा। तुम इसी समय मुक्त हो सकते हो, यदि मुक्त होने का सुदृढ़ संकल्प ले लो।
बल
निर्बल का बल राम है, पर राम का बल तो आत्मबल ही है।
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जीने का उसूल
बात
अपनी बात अवश्य कहिए, पर किसी भी बात को इतना बढ़ा-चढ़ा कर भी पेश मत करिये कि आप अपने मुँह अपनी क्षुद्रता सिद्ध कर बैठे।
बारहखड़ी
आप बारहखड़ी का भी सम्मान कीजिए, क्योंकि वह ज्ञान की पहली सीढ़ी है।
बारात
बारात की कीमत तब तक रहती है, जब तक फेरे न पढ़ें।
बालजगत्
बच्चों की दुनिया इसलिए पवित्र है, क्योंकि उनमें सरलता और सहजता होती है।
बाल-वृद्ध
बूढ़े जब बच्चों-सी हरकत करने लगें तो बच्चों को कैसे डाँट पिलाएँ?
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जीने का उसूल
बाह्याचार
बिम्ब-प्रतिबिम्ब
बुजुर्ग
बालों के लुंचन मात्र से अगर आत्म-दर्शन होता हो, तो लोग अपनी खाल नुचवाने को तैयार हो जाएँगे ।
बुढ़ापा
बेड़ी
बिम्ब को उस समय हीनता अनुभव होती है, जब वह प्रतिबिम्ब से ज्यादा मूल्यवान बन जाता है।
बुढ़ापा जीर्ण-शीर्ण जिल्द वाली किताब है ।
बुद्धि-विस्तार
बुजुर्ग व्यक्ति घर का रोशनदान है। कृपया उसकी अवहेलना मत कीजिए ।
७३
जिसकी बुद्धि जितनी विशाल है, उसका ब्रह्माण्ड उतना ही बड़ा है।
बेड लोहे की हो या सोने की, बन्धन ही कहलाएगी।
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जीने का उसूल बोलना
बोलने का हक सबको है, किन्तु मर्यादा की लक्ष्मण-रेखा को लाँघना स्वयं के लिए आत्म-घातक है।
बोलना
जिसका काम नहीं बोलता, उसके बोलने से क्या अर्थ है?
भयमुक्त
जीवन में सदा भयमुक्त रहिए, क्योंकि मृत्यु एक बार ही आती है और तय वक्त से पहले नहीं आती।
बोलना
बोलना जरूरी है, बकना गुनाह है।
भक्त और भगवान
भक्त प्यास है, भगवान जलधार है। भक्त को प्रणाम है, जो पत्थर में से भी जलधार ढूँढ़ निकालता है।
भक्ति
भक्ति हृदय की आँख है जिससे परमात्मा तक को पाया जा सकता है।
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जीने का उसूल भगवद्प्रेम
वह भगवान से क्या प्यार करेगा जो इन्सान की गोद में जन्म लेकर खुद इन्सान को ही प्यार नहीं कर पाया।
भगवद्भूमि
जब हम भगवान की भक्ति कर रहे होते हैं, तो निश्चय ही कुछ अच्छे होते हैं। बाकी तो वे श्वान अच्छे हैं, जो मालिक की रोटी खाते हैं और उसकी हाजरी भी बजाते हैं।
भरोसा
जिन्हें अपने पर भरोसा नहीं है, उन्हें औरों के भरोसे चलना पड़ता है।
भला-बुरा
बुरे लोग सतयुग में भी थे और भले लोग कलियुग में भी हैं। भलाई को जीना सतयुग में जीना है जबकि बुराई को जीना कलियुग में निवास करना है।
भलाई
अपने लिए तो हर कोई मरता है किन्तु औरों की भलाई के लिए मरने का सौभाग्य तो विरलों को ही मिलता है।
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जीने का उसूल भलाई-बुराई
प्यार भलाई से हो, भलों से नहीं, नफरत बुराई से हो, बुरों से नहीं।
भविष्य
यदि भविष्य समझ में आ जाता, तो वह भी वर्तमान हो जाता।
भव्य
दीन से दीन व्यक्ति के मन में भी भविष्य भव्य होता है।
भाग्य
भाग्य हमारे हाथ का लिखा हमारा ही हिसाब-किताब है।
भाग्य और पुरुषार्थ
भाग्य उन्हीं को फल देता है, जो उसका फल पाने के लिए पुरुषार्थ का उपयोग करते हैं।
भाग्य-क्रीड़ा
गिरे हुए को हर कोई ठोकर मारता है और चढ़ते हुए को हर कोई सहारा देता है। भाग्य का यही खेल है।
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जीने का उसूल
भाग्यवान
भार
भारत
ऐसे भाग्यवान विरले ही होते हैं जिनका सूरज उगने के बाद अस्त होने का नाम नहीं लेता ।
चन्दन हो या काठ, गधे के लिए दोनों ही सिर्फ बोझा हैं।
भारत का भाग्योदय तभी होगा जब यहाँ का हर नागरिक राष्ट्रीय - भावना को प्राथमिकता देगा |
भावना
भावना भीतर की भाषा है । भावना को जितना सकारात्मक रखेंगे, भाषा उतनी ही सुमधुर होगी।
भावना- प्रकट
७७
मनुष्य की भावना जब प्रगाढ़ होती है, तो जबान की बजाय आँख से ही प्रकट होती है ।
भावना-भड़ाँस
भावनाएँ पूरी कीजिए, पर भड़ाँस पर नियन्त्रण रखिए ।
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७८
जीने का उसूल
भावना-मरण
जिसकी भावना मर गई, उसके लिए संसार और सम्बन्ध दोनों ही मृत और नीरस हैं।
भाषा
जितनी भाषा मधुर होगी, सम्बन्धों में उतनी ही मधुरता और आत्मीयता आएगी।
भाषा-विवेक
कम बोलिये, पहले तौलिए, बिना काम के मत बोलिये।
भूख
हम मकान और कपड़े के बिना जी सकते हैं, पर भूख की आपूर्ति करना हमारी पहली आवश्यकता है।
भूल
भूलों पर शोक मनाना चिंता को बढ़ावा देना है जबकि उनसे सीख लेना स्वर्णिम भविष्य की ओर कदम बढ़ाना है।
भूलना
जीवन में आप कितने भी ऊँचे क्यों न उठ जाएँ, पर अपनी गरीबी और कठिनाई के दिन कभी मत भूलिए।
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जीने का उसूल भेंट-वार्ता
भोग
मदद
मिलो मगर सत्कार से, बोलो मगर प्यार से |
काम - भोग का सेवन खुजली को खुजलाना है। इसे जितना खुजलाएँगे, खुजली उतनी ही बढ़ेगी।
हमारे सुख - दुःख में किसी के हाथ न बँटाने का अर्थ यह नहीं है कि हम दूसरों के सुख - दुःख में सहभागी न बनें।
मधुर वाणी
वाणी की मधुरता लोकप्रिय होने का सबसे सरल उपाय है।
मन- प्रसन्नता
मन की प्रसन्नता से सारा संसार स्वर्ग दिखाई देता है।
७९
मनः शान्ति
ओ रे मन ! रुक जा । कब तक भटकता रहेगा? सयाने बालक की तरह आ, मेरे पास बैठ जा ।
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८०
जीने का उसूल
मनःशान्ति
कुछ भी पास नहीं, पर मन में शान्ति है, तो सब कुछ है। वहीं यदि जीवन में शान्ति नहीं, तो कुछ भी नहीं है।
मन:स्थिरता
मन का भटकाव मिटाने के लिए उसे ईश्वरीय चेतना में एकलय कीजिए।
मनस्-तमस्
___ मन का तमोगुण बाहरी दुनिया को भी विकृत कर डालता
मनोभाव
मन के भाव जब मुँह से व्यक्त नहीं हो पाते, तो आँखों से मुखर हो उठते हैं।
मन्दिर
मन्दिर मानवता का सन्देश देने वाले आध्यात्मिक प्रतीक
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जीने का उसूल मन्दिर-मस्जिद
मन्दिर-मस्ज़िद के कोई खिलाफ़ नहीं है, पर इन्सान का महत्त्व मन्दिर-मस्ज़िद से भी ज्यादा है।
ममता
माँ की ममता भरी गोद इस जीवन का स्वर्ग है।
मस्ती
प्रतिकूलताओं से विचलित होने की बजाय उसमें रहने की आदत डालिए।
महत्त्व
महत्त्व इस बात का नहीं कि और लोग क्या करते हैं। महत्त्व इस बात का है कि हम क्या करते हैं।
महान्
महान व्यक्ति उस बादल की तरह होते हैं, जो ऊँचे उठकर भी धरती के कल्याण की कामना करते हैं।
महान् कार्य
महान् व्यक्ति नहीं, उसके कार्य होते हैं। हम अपने कार्यों को महान् बनाएँ, व्यक्तित्व स्वत: महान् हो जायेगा।
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८२
जीने का उसूल महान् व्यक्ति
महान् व्यक्ति चाहे जिन परिस्थितियों से घिरा हो, वह जो कुछ भी करेगा, महान् ही होगा।
महिमागान
किसी के चले जाने के बाद उसकी भगवत्ता की महिमा गाना केवल स्तुतिकारों का काम है।
महिला-सम्पत्ति
महिला को पति की सम्पत्ति मानना पिछड़ापन और सामन्ती मनोवृत्ति है।
माँ का आँचल प्रेम का पनघट है और आँखें राहों की रोशनी। माँ की बातों में जीवन की गीता है, तो चरणों में संसार का स्वर्ग बसता है।
मांसाहार
मनुष्य अगर मांसाहारी होता, तो वह भी बिल्ली की तरह परिंदों पर झपटता, चीते की तरह दाँतों से चीर-फाड़ करता और गर्म खून पीना चाहता।
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८३
जीने का उसूल मातृत्व-कामना
हे प्रभु ! सबको माँ की तरह बना, ताकि सारा संसार प्यार और वात्सल्य पा सके।
मातृ-गोद
कोई कितना भी क्यों न थका हो, माँ की गोद में सिर रखकर सोने से हर थकान उतर जाती है।
मातृ-वात्सल्य
माता अपने दूसरे बच्चे को भी उतना ही प्यार देती है जितना पहले को। लड्डू में सारे दाने आखिर मीठे ही होते हैं।
माधुर्य
श्रद्धा के सागर की गहराई में माधुर्य के मोती चमकते हैं।
माधुर्य-कला
पीठ पीछे कोई कुछ भी कहे, पर यदि तुम्हारे पास मधुर बोलने की कला है, तो मुँह पर तुम्हीं सवासेर रहोगे।
मानवीयता
मानवता के गिरते मन्दिर को देखकर आँसू आना हमारी करुणा है, किन्तु उसका पुनर्निर्माण करना हमारा कर्तव्य है।
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८४
जीने का उसूल मानवीय सहयोग __ अपनी आमदनी का ढाई प्रतिशत मानवता के लिए निकालिए, आप मानवता के ऋण से उऋण हो जाएँगे।
माफ़ी
बुजुर्ग तुमसे माफ़ी माँगे, यह तुम्हारे लिए शर्म की बात है।
माल-मालिक
उम्रभर बटोरा हुआ माल उस समय व्यर्थ हो जाता है, जब उसका मालिक दुनिया से विदा हो जाता है।
मिज़ाज़
कड़क मिजाज भी सहा जा सकता है, बशर्ते उसकी अन्तरभावना सख़्त नारियल के बीच भी गिरी की तरह स्वच्छनिर्मल हो।
मिठास
जो काम मिठास से निपट सकता है, उसके लिए हो हल्ला क्यों किया जाए? ताला खोलने के लिए चाबी का उपयोग कीजिए, हथौड़े का नहीं।
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जीने का उसूल मित्र
सरवर के पंछी जैसा मित्र न बनाएँ जो दाना-पानी चुगकर उड़ जाए। मित्र हो मछली जैसा जो हर हाल में पानी के साथ ही एकरूप रहे।
मित्रता
यदि बड़े आदमी से मित्रता हो जाये, तो भी छोटे की मित्रता को भुलाना नहीं चाहिए।
मित्रभाव
जीवन में यदि हम किसी को मित्र न बना पाएँ, तो कम-सेकम किसी को शत्रु तो न ही बनाएँ।
मुक्ति
मुक्ति चाहिए तो माया की परतन्त्रता के मकड़जाल से स्वयं को छुड़ा लीजिए।
मुक्ति-सूत्र
हमारे भीतर जो भी चल रहा है, उसे देखो, बस देखोनिरन्तर। उसके साथ बहो मत, बस देखो और पार लगो।
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जीने का उसूल
मुस्कान
आपकी हर मुस्कान सर्दी के समय सुबह की खिली हुई धूप के समान है।
मुस्कुराना
सदा मुस्कराते रहिए। मुस्कान जीवन की सबसे बड़ी संपत्ति है।
मूल्यवान
यदि हर शैल में माणक होते, तो उसकी गणना भी कंकड़ों में ही होती।
मृत्यु
मृत्यु वह आवारा है, जो राजा-रंक सबके घर पहुँच जाता
है।
मृत्यु-उत्सव
तुम जीवन को इस तरह जिओ कि मृत्यु भी जीवन के उत्सव का एक चरण बन जाए।
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जीने का उसूल मृत्यु - निर्वाण
प्रभु, यह वर दे कि मृत्यु भी जीवन का महोत्सव बने, मरण से पहले हम निर्वाण वरें।
मृत्यु- बोध
मृत्यु - विकल्प
जो अभी तक घुटनों के बल भी नहीं चल सकता, उसे मृत्यु का बोध नहीं करवाया जा सकता ।
मेहनत
हम मच्छर के डंक से भले ही परहेज रखें, पर मृत्यु से न घबराएँ, क्योंकि उसका विकल्प नहीं है।
८७
मोहित
और
दान की चिकनी रोटी खाने की बजाय मेहनत की सूखी रोटी खाना ज्यादा अच्छा है ।
जो सौन्दर्य को देखकर मोहित नहीं होता, वह या तो योगी
है या रोगी ।
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जीने का उसूल
मौन
बोलने में यदि सात गुण हैं, तो न बोलने में नौ गुण हैं।
मौन और मुक्ति
वाणी के विराम से मौन की शुरूआत होती है, पर सच्चा मौन तो तभी है जब मन की चंचलता से मुक्ति मिले।
यांत्रिकी
हम यांत्रिकी का उपकार मानते हैं, जिसने कृषि में पशुओं के उत्पीड़न को बहुत कम कर दिया है।
युगधर्म
वह धर्म दुनिया का साथ कैसे निभाएगा, जो हवाओं के साथ बात करते ज़माने को पैदल चलने की सलाह देता है।
युग-विकास
युग के विकास के लिए उसका संस्कारित और समृद्ध होना आवश्यक है।
युद्ध
युद्ध के मैदान में जलने वाली मशालों से ज्योति कम किन्तु धुंआ ज्यादा उठता है।
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जीने का उसूल योग्य-अयोग्य
वह पारस नहीं, पत्थर है, जो लोहे का संस्कार न कर सके।
योजना
किसी भी कार्य को शुरू करने से पहले उसके बारे में योजना तैयार कर ली जाए, तो सफलता सुनिश्चित है।
यौवन
यौवन हमारे जीवन का सबसे महत्त्वपूर्ण पड़ाव है। अपनी सफलता के लिए उसका भरपूर उपयोग कीजिए।
रंग-बोध
चाहे काले आदमी की लाश जलाई जाए या गोरे आदमी की, राख तो दोनों की एक-सी ही होगी।
रंगभेद
आदमी के काले रंग से नफरत करने वाला चमड़ी से भले ही गोरा हो, पर स्वभाव से वह ‘हब्शी' ही है।
रवाना
रवाना होते हैं सौ, पहुँचते हैं दस।
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जीने का उसूल राज-नीति
राज्य मिलते ही नीति से दूर हो जाना आज की राजनीति है।
राजनीति
राजनीति झूठ की आँच पर साँच की सिकाई है।
राजनीति और दांत
सन्तों द्वारा आध्यात्मिक ज्ञान के प्रचार-प्रसार हेतु राजनीति के मंच का उपयोग करना तो कोई अर्थ रखता है, किन्तु सत्ता-सुख और प्रतिष्ठा के लिए उसका उपयोग करना सन्तजीवन का दुरुपयोग है।
राम-दुआरा
तू ऐसा भक्त बन कि तुम्हारे लिए हर दरवाजा राम-दुआरा' हो जाए।
राष्ट्र-गौरव
मेरा सौभाग्य है कि मैं उस देश में जन्मा हूँ, जिसने विश्व को प्रेम, शान्ति और अहिंसा का संदेश दिया है।
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जीने का उसूल राष्ट्र-भक्ति
अपने राष्ट्रीय कर्त्तव्यों को धर्म, पंथ और जाति से भी बढ़कर मानिये।
राष्ट्रीय-अपराध
किसी पूजास्थल या इबादतगाह को क्षति पहुँचाना किसी की श्रद्धा के साथ खिलवाड़ तो है ही, वह राष्ट्रीय अपराध भी है।
रिश्तेदारी
रिश्तों का महत्त्व जानने वाले ही रिश्तों की रक्षा के लिए कुर्बानी दे सकते हैं।
रूढ़ि
जिनका चित्त साम्प्रदायिक रूढ़ियों से भरा है, उनमें धर्म तो कम किन्तु धार्मिक होने का दम्भ अधिक होता है।
रूपान्तरण
संतों को उस कारागार में ले चलो, जहाँ लोग बेड़ियों में जकड़े हैं, ताकि उन्हें वे अपने जैसा बना सकें।
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जीने का उसूल लक्ष्योन्मुख
अपना चेहरा सदा सूरज की ओर रखें, ताकि हमें अपनी परछाईं दिखाई न दे।
लघुमार्ग
कभी-कभी पास का रास्ता दूर के रास्ते से ज्यादा दुर्गम बन जाता है।
लचीलापन
जिन धनुषों में लचीलापन नहीं होता, वे चटक कर टूट जाया करते हैं।
लड़ाई
दूसरों से लड़ना आसान है, पर अपने आप पर विजय प्राप्त करना कठिन है।
लत
लत से बढ़कर पराधीनता क्या होगी?
लार
चूहा देखकर बिल्ली के मुँह में पानी आता है, तो पैसा देखकर इंसान के मुँह से लार टपकने लगती है।
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जीने का उसूल
लुभाना
फूल तो बगिया के सारे ही सुन्दर होते हैं, पर मन को कोईसा ही लुभाता है।
लेखन-सुख
नवोदित लेखक को उस समय सर्वाधिक सुख मिलता है, जब वह अपनी रचना को छपी हुई निहारता है।
लोभ
मल शरीर का कल्प है और लोभ मन का। शरीर के कब्ज़ को दूर करने के लिए त्रिफला लीजिए और मन के कब्ज़ को दूर करने के लिए उदारता का गुण अपनाइये।
वचन
एक वचन भी कभी-कभी किसी विशद शास्त्र के उद्देश्य की आपूर्ति कर दिया करता है।
वचनवीर
बातों के बहादुर उस समय घबराने लगते हैं जब उनके कणभर आचरण की पड़ताल की जाती है।
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जीने का उसूल
वधू
जो लोग अपनी बहू को प्रताड़ित करते हैं, उन्हें यह नहीं भूलना चाहिए कि उनकी बेटी भी किसी घर की बहू है।
वरण-हरण
अंगुलियों का कोमल स्पर्श किसी को प्राण-दान कर सकता है, वहीं उनका दबाव किसी के प्राणों के हरण का कारण भी बनता है।
वाक्य
मुँह से निकला हुआ वाक्य रिश्तों में दरार भी डाल सकता है, और इतिहास को नई दिशा भी दे सकता है।
वाचालता
वाचालता को सही दिशा मिल जाये, तो वही भाषण बन जाती है।
वाणी-नियंत्रण
वाणी पर इतना नियंत्रण अवश्य हो कि मन का हर शब्द होठों तक न आने पाए।
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जीने का उसूल
वाणी - माधुर्य
जो काम अपनी दादागिरी से भी पूरा न हो पाए, वह वाणी से सम्भव हो सकता है ।
की
मधुरता
वाणी-व्यवहार
वाणी ऐसी बोलिए कि जो चाँदनी की तरह सबके दिलों को शीतलता प्रदान करे ।
वापसी
इस हाथ का दिया हुआ कभी-न-कभी उस हाथ में वापस लौट आता है।
वासना
९५
ऐसे लोग विरले हैं, जिनके मन में वासना की तरंग ही नहीं उठती।
वासना और प्रेम
जिस प्रेम में वासना है, वह प्रेम की विकृति है । स्वार्थ और वासना - रहित प्रेम संसार का सर्वश्रेष्ठ धर्म है।
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९६
वास्तविक ज्ञान
विचार- पवित्रता
आत्मा पर व्याख्यान देना पांडित्य है किन्तु उसका अनुभव करना वास्तविक ज्ञान है ।
विकृत विचार
विकार मन का कीचड़ है, पवित्रता मन की सुवास ।
विकृत विचार मन का कैंसर है। इसका उपचार शुरूआत में ही कर दिया जाना चाहिए, वरना ऐसे विचार कभी भी भयावह रूप ले सकते हैं।
विकार और प्रेम
विचार
जीने का उसूल
विकार दीमक है जो प्रेम के सघन वृक्ष को खोखला कर देती है।
विचार बहते हुए पानी की तरह है। यदि आप उसमें गंदगी मिला देंगे तो वह नाला बन जाएगा और सुंगधि मिला देंगे, तो वही गंगोदक हो जाएगा।
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जीने का उसूल विचार-फल
गलत-विचार शुरू में भी दु:ख देते हैं, और फलीभूत होने पर भी, जबकि अच्छे विचार शुरू में भी सुख देते हैं और फलीभूत होने पर भी।
विचार-स्वतन्त्रता
जो विचारों की स्वतन्त्रता के पक्षधर हैं, वे पैसे वालों की पहुँच से दूर रहें।
विद्वान्
विद्वान् ऐसा चम्मच है, जो हलुवे में जाकर भी कोरा ही रहता है।
विध्वंस
जो अपनी छवि नहीं बना सकता, वह दूसरों की छवि बिगाड़ने में तत्पर रहता है।
विपर्यय
उल्टे घड़े पर सात समुन्दर पानी उड़ेल देने पर भी वह रीता ही रहेगा।
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९८
जीने का उसूल विरति-अनुरक्ति
जिसके बारे में तुम रात-दिन सोचते हो, सम्भव है वह तुम से विरक्त हो।
विराग-वीतराग
वैराग्य के पथ पर कदम बढ़ाने की बजाय वीतरागता की ओर कदम बढ़ाना निर्वाण-प्राप्ति के लिए अधिक श्रेयस्कर है।
विराटता
जितना बड़ा कैनवास होगा, कलाकार की तूलिका उतना ही बड़ा दृश्य उकेर सकेगी।
विवेक
विवेक ही जीवन की वह तीसरी आँख है जो हर विकट परिस्थिति से बाहर निकलने का रास्ता दिखा देती है।
विवेक-अविवेक
धन, यौवन और सत्ता के साथ यदि विवेक न हो, तो ये तीनों अनर्थ भी कर सकते हैं।
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जीने का उसूल
विवेक और गुरु
विवेक को अपना गुरु बनाइये और जैसा वह रास्ता दिखाए, वैसा ही चलिए ।
विवेकहीनता
बिना संयम और विवेक का मनुष्य अंधेर नगरी के चौपट राजा के समान है।
विश्व - प्रेम
पंथ-परम्परा के व्यामोह में उलझकर कुएँ के मेंढ़क न बनें। संसार तो सागर की तरह विराट् है अत: सारे संसार से प्यार करें ।
विश्वास
९९
जिस पर विश्वास हो, यदि वह ढोंगी निकल जाये, तो व्यक्ति उसका चेहरा देखना तो क्या, नाम सुनना भी पसन्द नहीं
करता ।
विश्वास और सत्य
तुम्हारा विश्वास चाहे जिस कर्म में हो, पर उसका सत्य तो तुम्हारे भीतर है।
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जीने का उसूल विश्वासघात
किसी का नमक खाकर उसके साथ विश्वासघात करना सबसे जघन्य पाप है।
विशद-दृष्टि
जिसकी दृष्टि विराट् है, उसके लिए तो संसार सागर की तरह विशाल है जबकि शेष के लिए तो वह नदी या तलैया ही है।
वृक्ष
वृक्ष दो घड़े पानी के बदले सौ-सौ फल लौटाता है।
वृत्ति-निवृत्ति-परावृत्ति
संसार की ओर गतिशील वृत्तियों पर रोक लगाना निवृत्ति अवश्य है, पर अध्यात्म तब आत्मसात् होता है, जब वे भीतर की ओर मुड़ें।
वीरता
बन्दूक का घोड़ा दबाना अगर वीरों का काम है, तो ऐसी वीरता बच्चों के बराबर है।
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जीने का उसूल
वृद्ध और युवा
वृद्ध व्यक्ति भी युवा रह सकता है बशर्ते उसका हृदय युवा
हो ।
वृद्ध-सेवा
यदि आप चाहते हैं कि बुढ़ापे में आपके बच्चे भी आपकी सेवा करें, तो कृपया आप भी अपने बूढ़े माता-पिता की सेवा का पुण्य कमाएँ ।
वेश - परिवर्तन
वे
बदलने मात्र से यदि भगवान मिल सकते हों, तो हम अपनी खाल नुचवाने को भी तैयार है ।
वेश्यालय
१०१
वेश्यालय वह नरक है, जिसका निर्माण पुरुष की कमजोरी ने किया है।
वैर-विरोध
हर व्यक्ति मधुमक्खी का छत्ता है। यदि आप उससे शहद पाना चाहते हैं, तो कृपया भूलकर भी उस पर डंडा न मारें ।
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१०२
वैराग्य
वैराग्य शास्त्रों के अध्ययन से नहीं, बल्कि हृदय पर लगने वाले घावों से उत्पन्न होता है।
व्यर्थता
गर्मी में गर्म कपड़े पहनना गधे की पीठ पर हाथी का बोझा लादना है।
व्यर्थ विचार
व्यवहार और धर्म
शक्ति
जीने का उसूल
उन विचारों को कौंधते रहना मानसिक पागलपन है, जिनका कोई लक्ष्य या अर्थ नहीं है।
व्यवहार में मिलजुल कर रहने वाले लोग धर्म - स्थानों में जाकर क्यों बँट जाते हैं ?
अपने आपको क्षुद्र और हीन मत समझिए । एक छोटी-सी दियासलाई में भी इतनी शक्ति होती है कि वह दावानल तक को जन्म दे सकती है।
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जीने का उसूल शक्ति- बल
शत्रु - मित्र
शराब
शक्ति के बल पर किसी सिद्धान्त और विश्वास को लम्बे समय तक दूसरों पर नहीं लादा जा सकता ।
शरीर
शत्रु के शत्रु को मित्र बना लेना शत्रु को शिकस्त देने की पहली शुरूआत है।
शराबी
शराब के प्याले में डूबकर अब तक जितने लोग मरे हैं, उतने कुएँ - तालाब में डूबकर नहीं ।
१०३
जीवनभर शराब पीने वालों को मरते समय भी शराब ही 'हरि शरणम्' लगती है।
-
शरीर साक्षात् मन्दिर है । उसे हम वही खान-पान समर्पित करें जो भगवान् को अर्घ्य - स्वरूप चढ़ाना चाहते हैं ।
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१०४
जीने का उसूल शरीर-मंदिर
शरीर के मंदिर की तभी शोभा है, जब उसमें रहने वाले देवता की प्रतिमा सुन्दर हो।
शाकाहार
शाकाहार भोजन का विवेक है, पर हर समय साग-सब्जियाँसलाद खाना शाकाहार की शिक्षा नहीं है। अन्न-दूध-मेवामिष्ठान्न भी स्वीकार किया जाना चाहिए।
शान्त मन
शांत मन के लिए सीमित साधन भी सुखावह हैं जबकि अशांत मन को अपार वैभव भी सुखदायी नहीं है।
शान्त-अशान्त
शान्त मन का स्वामी बनकर जीने से बड़ा कोई पुण्य नहीं, अशान्त मन का गुलाम बनकर जीने से बड़ा कोई पाप नहीं।
शान्ति
शान्ति चाहिए तो शांत रहिए। हर दिन की शुरूआत शांतिपूर्वक कीजिए। हर दिन का समापन भी शांतिपूर्वक ही सम्पन्न कीजिए।
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१०५
जीने का उसूल शान्ति और समाधि
उत्तेजना भरे वातावरण में स्वयं को शान्त बनाये रखना समाधि को जीना है।
शान्ति-सुख
शान्ति के सुख को शान्त व्यक्ति ही समझ सकता है।
शास्त्र
विरोध के भाव हों, तो शास्त्र भी लड़ने के शस्त्र बन जाते हैं। सहयोग के भाव हों, तो वे ही सेतु का काम करने लगते हैं।
शास्त्र-अनुभव
बिना शास्त्र ईश्वर मौन है और बिना अनुभव सत्य अंधकार में भटकता है।
शास्त्र-सत्य
शास्त्र सत्य के दरवाजों को खुलवाने वाला मेहमान है।
शुरूआत
ऊँची मंजिलों तक पहुँचने के लिए शुरूआत तो पहली सीढ़ी से ही करनी होगी।
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१०६
शून्य - साधना
शैतान
शैशव
शोध
वह
जिसे 'कोरी पुस्तिका' पढ़ने में नीरसता नहीं लगती, शून्य की साधना से विचलित नहीं हो सकता ।
हमारी प्रार्थना से परमात्मा प्रसन्न हों या न हों, पर शैतान जरूर नाखुश होता है ।
बचपन जीवन की नींव है । इमारत को लिए नींव को सुन्दर सुदृढ़ बनाइये ।
श्रद्धा और वासना
-
जीने का उसूल
'खूबसूरत
जो घर में खोई हुई सुई को बाहर ढूँढते हैं, वे स्वयं को दूर
कर रहे हैं।
यदि प्रेम का संस्कार श्रद्धा है तो प्रेम का विकार
वासना कहलाती है।
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जीने का उसूल
१०७
श्रम-फल
अपनी बनाई हुई रोटी कड़क भी हो जाए तो भी खाने में अच्छी लगती है।
श्री और ओम्
'श्री' श्रेय का प्रतीक है, 'ओम्' अध्यात्म का। 'श्री' को अध्यात्म का मार्ग दीजिए, श्रेय स्वत: हो जाएगा।
श्री और शत्रु
जो शत्रु के नाम के साथ भी 'श्री' का प्रयोग करता है, वह सबका श्रेय चाहता है।
श्रीगणेश
जब बीज जमीन में उतर ही गया तो समझो वृक्ष का श्रीगणेश हो गया।
संकट
संकट की घड़ियों में घबराने की बजाय धैर्य और शांति से उसका सामना करें। संकट की घड़ी में धैर्य, शांति और साहस ही सच्चे साथी होते हैं।
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१०८
संकल्प
संकल्प और सफलता
संगत
संकल्प जितना सुदृढ़ होगा, सफलता उतनी ही करीब होगी ।
संकीर्ण
संकल्प छोटा ही क्यों न हो, यदि वह पूर्ण है तो जीवन को नई दिशा, नई सफलता दे सकता है।
जीने का उसूल
कुएँ से सटकर बैठने वाले व्यक्ति गंगासागर की यात्रा का पुण्य नहीं कमा सकते ।
संगठन
केवल शिक्षा पर ही ध्यान मत दीजिए । संगत पर भी ध्यान दीजिए । शिक्षा अच्छी हो पर संगत बुरी हो तो अच्छी शिक्षा भी बुरे नतीजे दे बैठती है ।
संगठन में इतनी शक्ति है कि अगर तुम अपने आँसुओं को भी इकट्ठा कर लो तो उनमें भी दुश्मनों को डुबो देने की क्षमता है।
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जीने का उसूल
संगीत - श्रवण
संत
हर सांझ को पन्द्रह मिनट शांतिप्रधान संगीत सुनिए, दिन भर की मानसिक बोझिलता को दूर करने में वह चमत्कारी सहयोग करेगा ।
जो अन्त से पहले अनन्त को खोज लेता है, वही संत है।
संत और नदी
संत का जीवन नदी की तरह होता है, जो परोपकार के उद्देश्य से नहीं बहती, फिर भी उससे अनन्त लोगों का उपकार होता है।
संत और मस्ती
१०९
संत वह नहीं है जो औरों को प्रेरणाएँ देता रहे, वरन् संत वह है जो स्वयं की मस्ती में जिए ।
सन्तुलन
मानसिक सन्तुलन के अभाव में सही व्यवहार की आशा
नहीं की जा सकती ।
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जीने का उसूल संतुष्ट
जो प्राप्त को आनन्दपूर्वक जीना नहीं जानता, वह दुनिया भर की दौलत को पाकर भी असंतुष्ट ही रहता है।
संदेश-दान
कैदियों को उस संदेश का स्वामी बनायें, जिससे वे अपने अन्तर्मन के मैल को हटा सकें।
सन्देह और भ्रान्ति
रस्सी को सर्प मानना उतना खतरनाक नहीं है, जितना सर्प को रस्सी मान बैठना।
संन्यास
प्रत्येक व्यक्ति संन्यासी बने और संन्यासी इस अर्थ में कि वह अपने जीवन में पलने वाली बुराइयों और अंधविश्वासों का त्याग करे।
संयम
वाणी पर संयम रखने से मन पर अधिकार हो जाता है किन्तु मन पर संयम करने से सम्पूर्ण जीवन पर अधिकार हो जाता है।
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१११
जीने का उसूल संवाद
सितारों से बतियाने वाले लोग अदृश्य संकेतों को भी ग्रहण कर लेते हैं।
संसार-स्वर्ग
साफ-सुथरा घर और हँसता-खिलता परिवार - यही संसार का स्वर्ग है।
सकारात्मक
काँटों पर ध्यान दोगे, तो काँटों में ही उलझकर रह जाओगे। फूलों पर ध्यान दोगे तो काँटों से स्वत: ऊपर उठ जाओगे।
सकारात्मक दृष्टि
सकारात्मक दृष्टि स्वर्ग की निर्माता है, नकारात्मक दृष्टि नरक की आधारशिला का प्रवेश-द्वार है। अपनी दृष्टि को बेहतर बनाइये, आपका हर दरवाजा स्वर्ग का दरवाजा बन जाएगा।
सक्रिय-निष्क्रिय
काम करते हुए गलती होना पाप नहीं है, पर निठल्ले बैठे रहना सबसे बड़ा अपराध है।
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११२
जीने का उसूल सच-झूठ
दूसरे को हानि पहुँचाने वाले सत्य को बोलने से तो वह झूठ बेहतर है, जो दूसरे की सहायता करे।
सजाना
घर में बिखरे हुए साजो-सामान को सजाइये। यह अपनेआप में योगासन ही है।
सतर्कता
जो मित्रों और सम्बन्धियों से सँभल कर नहीं चलता, वह दुश्मन से भी मात खा जाता है।
सत्कार-दुत्कार
औरों की भावनाओं का सत्कार करना सीखें, उन्हें दुत्कारना नहीं।
सत्य
सत्य सदा मधुर होता है। कृपया उसे अपनी कड़वी जबान के कारण कड़वा मत बनाइये।
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जीने का उसूल
११३
सत्य और समझ
सत्य की जन्मपत्री न जाने किस विधाता ने लिखी है कि सौ बार समझाने पर भी वह समझ में नहीं आता।
सत्यजीवी
यह झूठी दुनिया सत्य के लिए जीने वालों को सलीब के सिवाय दे भी क्या सकती है?
सत्य-मैत्री
सत्य का कोई साथी नहीं है, परन्तु वह सबका साथी है।
सत्य-स्वीकृति
सत्य कितना भी कड़वा क्यों न लगे, उसे स्वीकारना ही होगा।
सत्यानुभव
न सूचनाओं का अन्त है, न सम्मान का। हम स्वयं को उस सत्य को जानने के लिए समर्पित करें जो कि सम्पूर्ण चराचर जगत् की आत्मा है।
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११४
जीने का उसूल सत्त्वभोजी
सदा सात्त्विक भोजन कीजिए, आपका स्वभाव स्वत: ही सात्त्विक रहेगा।
सद्व्यवहार
हो न स्वयं को जो स्वीकार, करें नहीं ऐसा व्यवहार।
सद्विचार
अच्छे विचारों के कारण बुरे अंजामों से बचा जा सकता है।
सन्त-पुरुष
वह पुरुष सन्त है, जो समाज में रहकर सबकी भलाई करे।
सफलता
सफलता के शिखर वही छू सकता है, जो लक्ष्य को पाने के लिए आत्मविश्वास के साथ कठिन मेहनत किया करता है।
सफलता और लक्ष्य
सफलता उन्हीं के हाथ लगती है, जिनका चरम लक्ष्य हर हालत में मंजिल को पाना है।
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जीने का उसूल
११५ सफल वृक्ष
आदमी उस वृक्ष की तरह बने, जो छोटा होकर भी फलफूल देता है।
समय-अपेक्षा
अतीत का निरीक्षण करें, वर्तमान की समीक्षा और भविष्य की अगवानी।
समयविद्
समय की कीमत उसके पास है, जिसने हाथ से निकलने से पहले समय का सदुपयोग किया है।
समरसता
परिवार के सभी सदस्य यदि हिल-मिलकर रहें, तो यही समरसता परिवार को स्वर्ग-समान बना सकती है।
समर्पण
लंगर खोलो, हवाएँ स्वयं तुम्हें ले जाएँगी।
समस्या
समस्या को देखकर ही समाधान तलाशने की प्रेरणा जगती है।
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११६
जीने का उसूल समाज-हित
निजी हितों से ऊपर उठकर ही समाज के हितों को साधा जा सकता है।
समाप्ति
हर मकान को सौ वर्ष बाद नया रूप दे देना चाहिये और हर धर्म को हजार वर्ष बाद।
समालोचना
दूसरों की समालोचना करने वाले, पहले खुद को आईने में देख लें।
सम्प्रदाय-उत्पत्ति
हर सम्प्रदाय का जन्म धर्म में प्रविष्ट राजनीतिक महत्त्वाकांक्षा का परिणाम है।
सम्प्रदाय और धर्म
सम्प्रदाय व्यवहार और व्यवस्था के लिए है जबकि धर्म साधना और सिद्धि के लिए।
सम्पत्ति
सम्पत्ति का अर्जन धनाढ्य व्यक्ति का लक्षण है, लेकिन उसका समर्पण महान् व्यक्ति की पहचान है।
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जीने का उसूल
सम्बन्ध
वह सम्बन्ध प्रेम का उपहार है, जिसमें सदा अपनापन का अहसास रहता है।
सम्बन्ध-संभावना
इस अज्ञात संसार में न जाने कब किससे काम निकालना पड़े, कहा नहीं जा सकता। फिर किसी से वैर क्यों मोल लिया जाए?
सम्बन्ध-शैथिल्य
गहरे सम्बन्ध भी समय और स्थान की दूरी से ढीले पड़ जाते हैं।
सम्यक् मन्दिर
मन में शान्ति हो, तो असली मंदिर मनुष्य के अन्तर्मन में है।
सर्वधर्म-सम्मान
अच्छे लोग और अच्छी बातें हर धर्म में हैं। फिर क्यों न हम सब धर्मों का सम्मान करें?
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११८
जीने का उसूल सलाह
बिना मांगे सलाह देना चलते आदमी को लंगड़ी मारना है।
सलाह/गलती
गलत काम कर चुकने वाले को सलाह मत दो, क्योंकि वह गलती खुद उसे सीख दे सकती है।
सहजता
जन्म और मरण हमारे हाथ में नहीं हैं अत: फिर जीवन की व्यवस्था भी क्यों न हम उसी के हाथ में सौंप दें, जिसके हाथ में जन्म और मरण हैं।
सहज प्रार्थना
संस्कृत के अबूझ स्तोत्र-पाठ से आत्म-समर्पित भक्त की सहज प्रार्थना अधिक सशक्त होती है।
सहनशीलता
सहनशीलता मनुष्य का सद्गुण है, किन्तु लाचार बनकर सब कुछ सहन करते जाना दुर्गुण है।
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११९
जीने का उसूल सहनशीलता-आत्मीयता
हमारी आत्मीयता उसके प्रति अधिक बढ़ती है जो हमारी बदनामी भी सहन कर जाता है।
सहयोग
सहयोग को उपकार मानने वाला ही समय पड़ने पर सहयोगी हो सकता है।
साकार-निराकार
भगवान्, जो निराकार कहलाते हैं, भावनाओं के स्वर में साकार हो जाते हैं।
सागर
सागर की सैर तभी सम्भव है जब हम अपने लंगर खोलने को तैयार हों।
सादगी
सादगी जितनी मीठी और सुहावनी लगती है, उतनी तड़कभड़क नहीं।
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१२०
साथ
भले के साथ तो बुरा भी भला ही कहलाता है।
साधुता
साधुता का अर्थ है : विपरीत परिस्थिति में भी अखंड शान्ति, सरलता और समता का स्वामी बने रहना ।
साधुता
किसी के द्वारा बुरा कहे जाने पर भी बुरा न लगना व्यक्ति की साधुता है।
सामन्ती प्रवृत्ति
मनुष्य कितना भी शिक्षित - सम्पन्न हो जाये, किन्तु सामंती प्रवृत्ति उसके मन से नहीं जा सकती।
सामीप्य
जीने का उसूल
जिनके लिए हृदय में स्थान है, वे दूर होते हुए भी पास ही हैं।
सार्थकता
हर नया दिन नये जीवन की शुरूआत है। जीवन की सार्थकता के लिए अपने प्रत्येक दिन को सार्थक कीजिए ।
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जीने का उसूल सार्थक मूल्य
बर्तन चाहे सोने-चांदी के ही क्यों न हों, उन्हें साफ करने के लिए राख ही काफी है।
सार्वभौम कर्म
उस कार्य को करने से बचें जिससे औरों का अहित होता है।
सावधानी
हर काम को इतनी सावधानी से कीजिए कि नाक पर बैठी हुई मक्खी को भी सावधानी से ही उड़ाया जा सके।
सिंचन
अंकुर को जितना पानी मिलेगा, उतना ही वह पनपेगा।
सिरखपाई
छोटी-छोटी बात पर सिरखपाई न करें। गलती हो जाए तो माफ करें और भूल जाएँ।
सुंदरता
तुम अपने जीवन को इतना सुंदर बनाओ कि उसके आगे तुम्हारे चेहरे की कुरूपता ढक जाए।
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१२२
सुई - तलवार
सुख - ईर्ष्या
जो काम सुई से निपट सकता हो, उसके लिए तलवार क्यों चलाई जाए?
भिखारी को चैन की नींद सोये हुए देखकर सम्राट् को भी ईर्ष्या हो जाती है।
सुख-दुःख
।
मनुष्य की एक आँख में खुशी है, तो दूसरी में आँसू । यदि आँसुओं को भी मुस्कराने की कला आ जाए तो दूसरी आँख में भी मुस्कान के फूल खिलाए जा सकते हैं।
सुखी बुढ़ापा
जीने का उसूल
सुनहरा
सुखी बुढ़ापे के लिए अपनी जिम्मदारियों को कम कीजिए, परिवार से अच्छे संबंध रखिए और बच्चों के निजी मामलों में हस्तक्षेप करने से बचिए।
भयंकर सर्दी हो या गर्मी, उगता सूरज तो हमेशा ही सुनहरा
लगता है।
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जीने का उसूल
सुषुप्ति - जागृति
सृजन
सेवा
'सो जा वत्स, सो जा' - हृदय में शान्ति का माधुर्य लिये; 'जाग वत्स, जाग' - हृदय में जागरण का आनन्द लिये।
सृजन - विध्वंस
हे परम सत्ता! मैं तुम्हारा सृजन हूँ। यह सृजन सदा सार्थक होता रहे ।
१२३
समय सृजन में लगता है, विध्वंस तो पलक झपकते हो जाता है।
सेवा से हमें मोक्ष या वैकुंठ न भी मिले, तब भी हमें मानवता की सेवा करनी चाहिये ।
सेवा और ध्यान
सेवा करना ध्यान से अधिक सुगम है, पर बिना ध्यान के स्वयं के सत्य की अनुभूति नहीं होती ।
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१२४
जीने का उसूल सेवाधर्म
मानवता की सेवा करने वाले हाथ उतने ही धन्य हैं, जितने परमात्मा की प्रार्थना करने वाले होंठ।
सेवाभाव
महत्त्व इसका नहीं है कि हमारे कितने सेवक हैं, महत्त्व इसका है कि हममें कितना सेवा-भाव है।
सेवा-समर्पण
किसी की सेवा करते समय स्वयं को इतना तल्लीन कर लो, मानो तुम परमात्मा की पूजा कर रहे हो।
सोच
जो सोच नहीं सकता, वह मूर्ख है। जो सोचना नहीं चाहता, वह अंधविश्वासी है और जिसमें सोचने का साहस नहीं है, वह गुलाम है।
सोचना
सोचना मनुष्य का स्वभाव है, पर सोचना भी कला है। हम जब भी सोचें- सही सोचें, सन्तुलित सोचें और समग्रता से सोचें।
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जीने का उसूल
सोचना और करना
सोचिए शांति से कीजिए तेजी से ।
9
सौन्दर्य
वेश-भूषा का सौन्दर्य घड़ी भर का है, बाकी तो अन्तर्मन की सुन्दरता ही काम आती है।
सौन्दर्य-दृष्टि
सुन्दरता वस्तु में कम; देखने वाले की नजरों में ही ज्यादा बसती है।
सौन्दर्य-प्रताड़ना
अतिरिक्त सौन्दर्य-प्रसाधनों से स्वाभाविक सौन्दर्य प्रताड़ित होता है।
सौम्य स्वभाव
१२५
काला गोरे को भी अपनी ओर आकर्षित कर सकता है बशर्ते उसका स्वभाव सौम्य हो ।
स्त्री-पुरुष
स्त्री पुरुष की सहचर है, उसके पैर की जूती नहीं ।
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१२६
जीने का उसूल स्त्री-विकास
स्त्री को अपना विकास करने का अधिकार है, पर वह पुरुष की सहचर बनकर आगे आए, विरोधी बनकर नहीं।
स्थिति
हमेशा याद रखो कि सदा एक ही स्थिति नहीं रहती।
स्थूल बुद्धि
जिनकी अक्ल हाथी जैसी मोटी होती है, वे नहाकर भी धूल-माटी में ही लोटते हैं।
स्नेह-दान
किसी को इतना स्नेह दो कि हमारा स्नेह ही उसके लिए यादगार तोहफ़ा बन जाए।
स्नेह और श्रद्धा
स्नेह जब देह-भाव से ऊपर उठ जाता है तो वह श्रद्धा और वात्सल्य बन जाता है।
स्वच्छता
स्वच्छता स्वर्ग की जननी है। आप स्वच्छता अपनाइये, प्रदूषण का रोग स्वत: ही मिट जाएगा।
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जीने का उसूल स्व-पर-पीड़ा
दूसरों को कष्ट पहुँचाने से पहले खुद उस दु:ख से गुज़र कर देखिए।
स्वभाव
कोई कितना भी गरम हो जाये, आखिर पानी की तरह उसे ठण्डा होना ही पड़ेगा।
स्वभाव-दोष
कोई व्यवहार के कितने भी तर्क क्यों न दे, पर यदि अन्तर्मन में विष है, तो डंक मारना उसका स्वभावजन्य दोष है।
स्वरूप
खौलता पानी हाथ को जला सकता है, आग को नहीं।
स्वर्ग
जो अपने वर्तमान को स्वर्ग बना लेता है, उसके लिए मृत्यु के बाद भी स्वर्ग ही है।
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१२८
जीने का उसूल स्वर्गिक जीवन
जो लोग अपने क्रोध को अपने काबू में रखते हैं, स्वर्ग उनके लिए है। स्वर्ग उनके लिए भी है, जो गलती करने वालों को माफ किया करते हैं। भगवान उन्हीं से प्यार करते हैं, जो दयालु और क्षमाशील होते हैं।
स्वर्गानन्द
स्वर्ग का आनन्द ‘स्वर्गीय' होकर नहीं, स्वर्ग को जी कर प्राप्त कीजिए।
स्वर्गावतण
घर-परिवार में पारस्परिक प्रेम और सुख-शान्ति होना ही स्वर्ग को जीना है।
स्वावलम्बन
बच्चों को काम कर-करके देने की बजाय उन्हें काम करना सिखाइये, वे सदा के लिए स्वावलम्बी हो जाएँगे।
स्वास्थ्य
बेहतर स्वास्थ्य के लिए अन्न को लीजिए आधा, सब्जी को दुगुना, हँसी को कीजिए तिगुना, और पानी पीजिए चौगुना।
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जीने का उसूल
हंस और कौआ
हड़बड़ी
हावी
कौओं को हंस नहीं सुहाते, पर हंस कौओं को निभा देते हैं ।
हवा-पानी
हिंसा
जितनी हड़बड़ी, उतनी गड़बड़ी ।
जो हवा एक रूप में पानी सोखती है, वही दूसरे रूप में वर्षा भी करती है।
१२९
किसी का काम करने का यह अर्थ नहीं होता कि तुम उस पर हावी रहो।
एक हिंसा करता है, एक हिंसा में सहयोग करता है, एक हिंसा का संकल्प करता है, ये तीनों ही हिंसक हैं।
हिम्मत
आकाश में वे ही उड़ सकते हैं, जो घोंसले से बाहर निकल कर अपने पंख खोलने की हिम्मत करते हैं।
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जीने का उसूल हीरा-मोती
छिदने वाला मोती बनता है, कटने वाला हीरा।
हृदय
शरीर के सौन्दर्य से बढ़कर है हृदय का सौन्दर्य। मिश्री के माधुर्य से बढ़कर है हृदय का माधुर्य।
हृदय-सामीप्य
घर भले ही दूर हों किन्तु हृदय हमेशा अपने पास रहे।
होना और खोना
खोए की चिंता मत कीजिए और जो अभी नहीं हुआ है, उसके बारे में सोच-सोचकर दिमाग को बोझिल मत बनाइए। जीवन को सहजता से जिएँ और हर हाल में मस्त रहें।
होश
जीवन में हर कदम पर होश का दीप थामे रखिए; अंधकार आप पर हावी नहीं होने पाएगा।
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________________ - श्री चन्द्रप्रभ एक ऐसे आध्यात्मिक गुरु के रूप में जाने जाते हैं जिनके प्रयोग और पैगाम आम जनमानस को स्वस्थ, सफा और ऊर्जावान जीवन जीने की दृष्टि प्रदान करते हैं / उनके वचन व्यक्ति की उसकी सच्ची क्षमता का अहसास करने के लिए अन्तर-प्रेरित करते हैं / उनके प्रवचन जितने वैज्ञानिक हैं, उतने ही जीवन की मधुर और काव्यमय बनाते हैं। उनके जीवन की महानता, सकारात्मक सोच, श्रेष्ठ चिन्तन और विश्वास भरा व्यवहार हर किसी इंसान के लिए शान्ति, शक्ति और सफलता की रोशनी के चिराग का काम करते हैं। 1- जीने के उसूल' पुस्तक श्री चन्द्रप्रभ की गीता है जो सफल और खुशहाल ज़िन्दगी जीने के लिए उत्तम विचारों के कारण अद्वितीय बन गई है। आप इसे किसी पवित्र डायरी की तरह सदा अपने पास रखिए और जब भी आपकी मानसिक शक्ति देने वाले टॉनिक की जरूरत हो, आप इसका कोई-सा भी पन्ना पढ़ लें, आपमें तत्काल नई ताज़गी, विश्वास और सकारात्मक चेतना का संचार होने लंग जाएगा। For Personal Snada