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जीने का उसूल तारीफ़
बदनाम की तारीफ़ बदनामी दिलाती है, प्रशंसित की प्रशंसा सम्मान दिलाती है।
तिरस्कार
अतीत का तिरस्कार करने की बजाय वर्तमान के लिए उन संदर्भो को स्वीकार करें जो आज भी उपयोगी हैं।
तिलांजलि
पिता को जब पुत्र ही छोड़ देते हैं, तो गुरु को शिष्य छोड़ें, इसमें आश्चर्य की क्या बात है!
तृष्णा
अंग गल गए, दाँत गिर गए, कमर झुक गई, फिर भी तृष्णा कहाँ मरी?
तृष्णा-विस्तार
तृष्णा बढ़ रही है, पर खेद है कि उमरिया घट रही है।
तेजस्वी
ऊपर से शांत और गंभीर दिखाई देने वाले लोग भीतर से अधिक तेज हुआ करते हैं।
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