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जीने का उसूल स्व-पर-पीड़ा
दूसरों को कष्ट पहुँचाने से पहले खुद उस दु:ख से गुज़र कर देखिए।
स्वभाव
कोई कितना भी गरम हो जाये, आखिर पानी की तरह उसे ठण्डा होना ही पड़ेगा।
स्वभाव-दोष
कोई व्यवहार के कितने भी तर्क क्यों न दे, पर यदि अन्तर्मन में विष है, तो डंक मारना उसका स्वभावजन्य दोष है।
स्वरूप
खौलता पानी हाथ को जला सकता है, आग को नहीं।
स्वर्ग
जो अपने वर्तमान को स्वर्ग बना लेता है, उसके लिए मृत्यु के बाद भी स्वर्ग ही है।
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