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जीने का उसूल निन्दा-रस
औरों की बातों में वे लोग रस लेते हैं, जिनके स्वयं के जीवन में रस नहीं होता।
निभाना
एक-दूसरे को निभाते रहने की बजाय एक-दूसरे को जीना शुरू करें।
निःस्वार्थ सेवा
आशीर्वाद तब तक नहीं मिलता, जब तक यह पता न चले कि यह नि:स्वार्थ सेवा कर रहा है।
नियति
जहाँ बुद्धि और पुरुषार्थ दोनों पराजित हो जाते हैं, वहाँ नियति की रेखा ही सहारा बनती है।
नियम-विज्ञान
हम परम्परा और नियमों को वैज्ञानिकता के साथ स्वीकारें, अंध आदेश के रूप में नहीं।
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