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जीने का उसूल शक्ति- बल
शत्रु - मित्र
शराब
शक्ति के बल पर किसी सिद्धान्त और विश्वास को लम्बे समय तक दूसरों पर नहीं लादा जा सकता ।
शरीर
शत्रु के शत्रु को मित्र बना लेना शत्रु को शिकस्त देने की पहली शुरूआत है।
शराबी
शराब के प्याले में डूबकर अब तक जितने लोग मरे हैं, उतने कुएँ - तालाब में डूबकर नहीं ।
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जीवनभर शराब पीने वालों को मरते समय भी शराब ही 'हरि शरणम्' लगती है।
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शरीर साक्षात् मन्दिर है । उसे हम वही खान-पान समर्पित करें जो भगवान् को अर्घ्य - स्वरूप चढ़ाना चाहते हैं ।
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