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जीने का उसूल
हंस और कौआ
हड़बड़ी
हावी
कौओं को हंस नहीं सुहाते, पर हंस कौओं को निभा देते हैं ।
हवा-पानी
हिंसा
जितनी हड़बड़ी, उतनी गड़बड़ी ।
जो हवा एक रूप में पानी सोखती है, वही दूसरे रूप में वर्षा भी करती है।
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किसी का काम करने का यह अर्थ नहीं होता कि तुम उस पर हावी रहो।
एक हिंसा करता है, एक हिंसा में सहयोग करता है, एक हिंसा का संकल्प करता है, ये तीनों ही हिंसक हैं।
हिम्मत
आकाश में वे ही उड़ सकते हैं, जो घोंसले से बाहर निकल कर अपने पंख खोलने की हिम्मत करते हैं।
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