Book Title: Jine ke Usul
Author(s): Chandraprabhsagar
Publisher: Jityasha Foundation

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Page 126
________________ ११९ जीने का उसूल सहनशीलता-आत्मीयता हमारी आत्मीयता उसके प्रति अधिक बढ़ती है जो हमारी बदनामी भी सहन कर जाता है। सहयोग सहयोग को उपकार मानने वाला ही समय पड़ने पर सहयोगी हो सकता है। साकार-निराकार भगवान्, जो निराकार कहलाते हैं, भावनाओं के स्वर में साकार हो जाते हैं। सागर सागर की सैर तभी सम्भव है जब हम अपने लंगर खोलने को तैयार हों। सादगी सादगी जितनी मीठी और सुहावनी लगती है, उतनी तड़कभड़क नहीं। Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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