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जीने का उसूल सहनशीलता-आत्मीयता
हमारी आत्मीयता उसके प्रति अधिक बढ़ती है जो हमारी बदनामी भी सहन कर जाता है।
सहयोग
सहयोग को उपकार मानने वाला ही समय पड़ने पर सहयोगी हो सकता है।
साकार-निराकार
भगवान्, जो निराकार कहलाते हैं, भावनाओं के स्वर में साकार हो जाते हैं।
सागर
सागर की सैर तभी सम्भव है जब हम अपने लंगर खोलने को तैयार हों।
सादगी
सादगी जितनी मीठी और सुहावनी लगती है, उतनी तड़कभड़क नहीं।
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