Book Title: Jine ke Usul
Author(s): Chandraprabhsagar
Publisher: Jityasha Foundation

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Page 124
________________ जीने का उसूल सम्बन्ध वह सम्बन्ध प्रेम का उपहार है, जिसमें सदा अपनापन का अहसास रहता है। सम्बन्ध-संभावना इस अज्ञात संसार में न जाने कब किससे काम निकालना पड़े, कहा नहीं जा सकता। फिर किसी से वैर क्यों मोल लिया जाए? सम्बन्ध-शैथिल्य गहरे सम्बन्ध भी समय और स्थान की दूरी से ढीले पड़ जाते हैं। सम्यक् मन्दिर मन में शान्ति हो, तो असली मंदिर मनुष्य के अन्तर्मन में है। सर्वधर्म-सम्मान अच्छे लोग और अच्छी बातें हर धर्म में हैं। फिर क्यों न हम सब धर्मों का सम्मान करें? Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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