Book Title: Jine ke Usul
Author(s): Chandraprabhsagar
Publisher: Jityasha Foundation

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Page 136
________________ जीने का उसूल हंस और कौआ हड़बड़ी हावी कौओं को हंस नहीं सुहाते, पर हंस कौओं को निभा देते हैं । हवा-पानी हिंसा जितनी हड़बड़ी, उतनी गड़बड़ी । जो हवा एक रूप में पानी सोखती है, वही दूसरे रूप में वर्षा भी करती है। १२९ किसी का काम करने का यह अर्थ नहीं होता कि तुम उस पर हावी रहो। एक हिंसा करता है, एक हिंसा में सहयोग करता है, एक हिंसा का संकल्प करता है, ये तीनों ही हिंसक हैं। हिम्मत आकाश में वे ही उड़ सकते हैं, जो घोंसले से बाहर निकल कर अपने पंख खोलने की हिम्मत करते हैं। Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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